नई दिल्ली (एएनआई)। मुस्लिम संगठन जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने सोमवार को एक याचिका दायर कर अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले की समीक्षा करने की मांग की है। 9 नवंबर को, सुप्रीम कोर्ट की पांच-न्यायाधीशों की पीठ ने सर्वसम्मति से राम लल्ला के पक्ष में फैसला सुनाया और कहा कि 2.7 एकड़ में फैली पूरी विवादित भूमि को सरकार द्वारा गठित एक ट्रस्ट को सौंप दिया जाएगा, जो उस जगह पर राम मंदिर के निर्माण की निगरानी करेगा। अदालत ने यह भी कहा कि केंद्र और राज्य सरकार के बीच परामर्श के बाद एक मस्जिद के निर्माण के लिए अयोध्या में एक प्रमुख स्थान पर पांच एकड़ जमीन आवंटित की जानी चाहिए।
Ayodhya Case Verdict 2019: फैसला नामंजूर, रिव्यू पिटीशन दाखिल करेगा मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड भी दायर करेगा समीक्षा याचिका
हाल ही में, उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने दावा किया था कि वह इस मामले में शीर्ष अदालत के फैसले के खिलाफ समीक्षा याचिका दायर नहीं करेगा लेकिन इस बारे में भी अभी तक कुछ नहीं कहा कि वह मस्जिद के लिए मिलने वाली पांच एकड़ जमीन स्वीकार करेगा या नहीं। इसके अलावा ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) भी 9 दिसंबर से पहले समीक्षा याचिका दायर करने जा रहा है। बता दें कि बोर्ड ने हाल ही में कोर्ट के फैसले के तीन बिंदुओं को विरोधाभासी बताया था और इसे आधार बनाकर रिव्यू पिटीशन दाखिल करने की बात कही थी। इसके साथ ही बोर्ड ने मस्जिद के लिये मिलने वाली पांच एकड़ जमीन को भी लेने से इनकार कर दिया है। बोर्ड के सचिव मौलाना उमरेन महफूज रहमानी ने तर्क दिया कि शरीयत के अनुसार हम मस्जिद के एवज में कोई वस्तु या जमीन नहीं ले सकते। लिहाजा, हम अयोध्या में बाबरी मस्जिद के बदले पांच एकड़ जमीन स्वीकार नहीं कर सकते।
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