Meerut : कड़वे प्रवचनों के लिए विख्यात क्रांतिकारी राष्ट्रसंत मुनिश्री तरुणसागर महाराज ने कहा कि धर्म रथ के दो पहिए हैं। एक श्रावक और दूसरा मुनि। मुनि-गुरु के बिना श्रावक ज्ञान पा नहीं सकता और श्रावक के बिना मुनि ज्ञान बांट नहीं सकता। उन्होंने समझाया कि जैसे गाड़ी को बनाने वाला तो कोई और होता है और गाड़ी को चलाने वाला कोई और मोक्षमार्ग की गाड़ी को बनाने वाले तीर्थकर हैं, उसे चलाने वाले संत-मुनि हैं और उसमें बैठने वाला श्रावक है। ध्यान रखना बस या गाड़ी में सफर बिना टिकिट लिए मत करना।
प्रभु की पूजा भी मोक्षमार्ग का टिकट
मुनिश्री ने असौड़ा हाउस, जैन मंदिर में शुक्रवार को मुक्ति मार्ग और श्रावक के धर्म की व्याख्या कर मधुर वर्षा की। उन्होंने कहा कि मोक्ष मार्ग का भी टिकट है। यह है नियम, मर्यादा यानि लाइन ऑफ कंट्रोल। रोज प्रभु की पूजा भी मोक्षमार्ग का टिकट है।
हम आसमान से ऊपर नहीं उठ सकते
मुनिश्री ने श्रावकों को जैन धर्म की बातों को सरल तरीके से समझाते हुए प्रवचन दिए। उन्होंने कहा कि अहंकार व्यर्थ है। अहंकार किस बात का, यहां सभी तो क्षण-भंगुर हैं। आसमान को देखो तो सोचना कि हम कभी आसमान से ऊपर नहीं उठ सकते और जमीन को देखो तो सोचना कि हमें एक दिन इसी मिट्टी में मिलना है। पर सच्चाई तो यह है कि जीवन मिट जाता है पर मनुष्य की इच्छाएं नहीं मिटतीं। इच्छाएं अनंत हैं, आकाश की तरह असीम हैं। इच्छाओं को नहीं, इच्छाशक्ति को बढ़ाओ। प्रवचन से पूर्व मंगलाचरण और मांगलिक पूजा समाज के लोगों ने की।
भोजन नीरस पर जीवन सरस
जैन मुनि ने कहा कि गृहस्थ और संत में एक अंतर है। गृहस्थ का भोजन तो सरस रहता है, पर जीवन नीरस रहता है और मुनि का भोजन तो नीरस होता है, पर जीवन सरस हुआ करता है। गृहस्थ तनाव में जीता है और संत स्वभाव में जीता है। गृहस्थ तनाव में जीकर हार्ट-अटैक का शिकार हो जाता है और संत स्वभाव में जीकर कर्माें पर अटैक कर भवसागर से पार हो जाता है। जो संसार में अनुरक्त है, उसका जीवन अस्त-व्यस्त है और जो भगवान का भक्त है, वह हर हाल में मस्त है। संत नहीं बन सकते तो संतोषी जरूर बन जाएं, यही सत्संग का फल है।