तेल की आपूर्ति बढ़ने के पीछे एक बड़ा कारण अमरीकी शेल तेल भी है.
यह एक विशेष किस्म का तेल है जिसे शीस्ट चट्टानों में हाइड्रोजिनेशन, पायरोलाइसिस और ताप विघटन से बनाया जाता है.
यही वजह है कि कच्चे तेल की क़ीमतें 50 डॉलर प्रति बैरल से नीचे गिर गई हैं.
फ़ायदा
इसकी क़ीमत जून 2014 की तुलना में आधी रह गई है. मई 2009 के बाद ऐसा पहली बार हुआ है.
भारत एक बड़ा तेल आयातक देश है तो क्या तेल की क़ीमतें कम होना भारत के लोगों के लिए अच्छी ख़बर है?
भारत अपनी ख़पत का 80 फ़ीसदी तेल आयात करता है. तो तेल की क़ीमत कम होने का सीधा मतलब है कि आयात पर कम खर्च होना. इससे व्यापारिक घाटा भी कम होगा.
टैक्स
पिछले साल केरोसीन तेल और गैस पर 24 बिलियन डॉलर की सब्सिडी दी गई थीं.
अब यह सब्सिडी कम होनी चाहिए जिससे सरकार का वित्तीय घाटा भी कम होगा.
तेल की क़ीमत कम होने से मुद्रा स्फीति भी तो कम हो गई है लेकिन सरकार ने पेट्रोल और डीज़ल पर टैक्स बढ़ा दिया है.
इसलिए ग्राहकों को इससे बहुत फ़ायदा नहीं हो पा रहा है.
माल भाड़े में कमी के कारण फलों और सब्जियों के दाम जरूर कुछ कम हुए हैं.
आर्थिक संकट
घरेलू गैस के दाम पर पहले से ही सब्सिडी मिली हुई है लेकिन इसकी खुदरा क़ीमत कम नहीं हुई.
तेल की क़ीमतों में कमी कई देशों में अर्थव्यवस्था के चरमराने के संकेत भी है.
भारत जैसे बड़े आयातक देश के लिए यह एक बुरी ख़बर भी है.
अगर अमरीका और रूस जैसे तेल उत्पादक देश आर्थिक संकट से गुजरेंगे तो वे उत्पादों की कम क़ीमत लगाएंगे.
इसमें भारत जैसे देशों में बने उत्पाद भी शामिल होंगे.
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