मतदान के दौरान 127 सांसद इसके पक्ष में थे जबकि 31 सांसदों ने गर्भपात को क़ानूनी बनाने का विरोध किया. ज़्यादातर सांसदों ने इस बात पर सहमति जताई कि अगर डॉक्टर को ऐसा लगता है कि गर्भपात न कराने से गर्भवती महिला की जान जा सकती है, तो ऐसी स्थिति में गर्भपात की अनुमति दी जानी चाहिए.
दरअसल आयरलैंड एक कैथोलिक देश है जहाँ अब तक गर्भपात क़ानूनन एक जुर्म था.
लेकिन पिछले साल एक भारतीय मूल की गर्भवती महिला क्लिक करें सविता हलप्पनवार के गर्भ गिरने यानी मिसकैरेज से हुई मौत के बाद वहाँ गर्भपात से जुड़े क़ानून को लेकर बहस छिड़ गई थी.
31 वर्षीय सविता पिछले साल अक्तूबर में अस्पताल में भर्ती हुई थीं, जहां उनका गर्भ गिर गया था.
इसके एक हफ्ते बाद सेप्टिसेमिया के कारण उनकी मौत हो गई थी.
उनके पति ने अस्पताल पर आरोप लगाया कि अस्पताल ने उनकी पत्नी की गर्भपात की दरख्वास्त पर कोई सुनवाई नहीं की.
मामले में क्लिक करें जांच हुई, तो सामने आया कि उन्हें गर्भपात की इजाज़त इसलिए नहीं दी गई क्योंकि उनकी जान को ख़तरा नहीं था.
बहस
लेकिन जब तक डॉक्टरों को ये बात समझ में आई कि उनकी जान को वाकई ख़तरा है, तब तक बहुत देर हो चुकी थी.
सविता के पति का कहना है कि अगर गर्भपात समय रहते करवा लिया गया होता, तो उनकी पत्नी की जान बच सकती थी.
इस हादसे के बाद क्लिक करें भारत के साथ-साथ दुनिया भर में आयरलैंड के गर्भपात-विरोधी क़ानून को लेकर बहस छिड़ गई थी.
इस क़ानून के पक्ष में हुई वोटिंग पर कुछ लोगों ने आपत्ति जताते हुए कहा है कि इससे गर्भपात के चलन में तेज़ी आ सकती है.
हालांकि कुछ लोगों का कहना है कि ये विधेयक अब भी कमज़ोर है क्योंकि इसमें बलात्कार के कारण हुए गर्भ के मुद्दे को संबोधित नहीं किया गया है.
साथ ही इस विधेयक में उस स्थिति में भी गर्भपात की इजाज़त नहीं दी गई है, जिसमें भ्रूण के गर्भाशय के बाहर भी बचने की संभावना नहीं होती.
गर्भपात का विरोध करने वाले कार्यकर्ताओं का कहना है कि इस क़ानून के पारित हो जाने से आयरलैंड में पहली बार ऐसा होगा कि लोग जान बूझ कर गर्भ में बच्चा गिरवाने की कोशिश करेंगे.
धर्म बनाम मानवाधिकार
कार्यकर्ताओं के लिए ये केवल एक धार्मिक मुद्दा नहीं, बल्कि एक मानवाधिकारों से जुड़ा मुद्दा भी है क्योंकि उन्हें लगता है कि गर्भवती मां के साथ-साथ उनके गर्भ में पल रहे बच्चे का भी समान अधिकार होता है.
हालांकि गर्भपात का समर्थन करने वाले कार्यकर्ताओं का कहना है कि ये विधेयक अब भी इस बात को नज़रअंदाज़ करता है कि हर दिन 11 महिलाएं गर्भपात के लिए आयरलैंड छोड़कर ब्रिटेन जाती हैं.
1992 में एक 14 वर्षीय बच्ची के साथ बलात्कार किया गया था, जिसके बाद वो गर्भवती हो गई थी.
वह गर्भपात करवाना चाहती थीं लेकिन उन्हें आयरलैंड छोड़ कर ब्रिटेन जाने की इजाज़त नहीं दी गई थी.
तनाव में आकर इस बच्ची ने आत्महत्या करने की कोशिश की, जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि अगर गर्भ से महिला की जान को ख़तरा हो, तो उसे गर्भपात करवाने का संवैधानिक अधिकार दिया जाएगा.
हालांकि स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दों को इस आदेश में संबोधित नहीं किया गया था.
तब से आत्महत्या के ख़तरे को गर्भपात के लिए एक वैध कारण माना जाता है.
लेकिन अब अगर डॉक्टर को लगता है कि गर्भपात न करवाने से महिला के स्वास्थ्य को ख़तरा है, तो वे क़ानूनी कार्रवाई के डर के बिना ही ये फ़ैसला ले सकेंगे कि गर्भपात किया जाए या नहीं.
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