गोरखपुर (सैय्यद सायम रऊफ)। 2 अक्टूबर से सिगंल यूज प्लास्टिक पर बैन लग चुका है। गोरखपुर जंक्शन पर सिंगल यूज प्लास्टिक पर पाबंदी है। पैसेंजर्स को परेशानी न हो इसके लिए फिलहाल वॉटर बॉटल पर पाबंदी नहीं लगाई गई है। मगर जल्द ही यह नुकसान करने वाली पानी की बॉटल भी स्टेशन पर नजर नहीं आएगी। प्लास्टिक बॉटल के इस्तेमाल को रोकने के लिए इंडियन रेलवे कैटरिंग एंड टूरिज्म (आईआरसीटीसी) ने पहल की है। अब रेलवे पैसेंजर्स को बायो डिग्रेडेबल बॉटल में रेल नीर मुहैया कराने की कवायद शुरू कर दी गई है। इसकी पहल भी हो चुकी है। इसकी शुरुआत लखनऊ से नई दिल्ली के बीच चलने वाली तेजस एक्सप्रेस में हो भी चुकी है। सबकुछ ठीक रहा और जिम्मेदारों को कामयाबी मिली, तो देश के सभी स्टेशन और रेलवे ट्रेंस में बायो डिग्रेडेबल बॉटल में रेल नीर मिलेगा।

40 दिन का स्टॉक बाकी

बायो डिग्रेडेबल प्लास्टिक बॉटल्स सभी मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स तक पहुंच चुकी हैं। मगर इसका दीदार स्टेशन और यहां से दौड़ने वाली ट्रेंस में 40 दिन बाद हो सकेगा। ऐसा इसलिए कि अभी अमेठी स्थित आईआरसीटीसी के बॉटलिंग प्लांट में करीब 40 दिन का स्टॉक बचा हुआ है। इसके खत्म होने के बाद ही नई बॉटल्स को इस्तेमाल में लाया जाएगा। वहीं जो पैसेंजर्स इस नई पैकेज बॉटल का इस्तेमाल करना चाहते हैं, तो इसके लिए तेजस का सफर करना पड़ेगा, जहां इसका इस्तेमाल शुरू कर दिया गया है। इस स्टॉक की सप्लाई दिल्ली स्थित नंग्लोई रेल नीर बॉटलिंग प्लांट से की जा रही है।

यहां हैं रेल नीर बॉटलिंग प्लांट

- नंग्लोई, नई दिल्ली

- दानापुर, पटना

- पालूर, चेन्नई

- अंबरनाथ, महाराष्ट्र

- अमेठी, उत्तर प्रदेश

- परसल्ला, केरला

- बिलासपुर, छत्तीसगढ़

- हापुड़, उत्तर प्रदेश

- सानंद, अहमदाबाद

- मंडीदीप, भोपाल

- नागपुर

अमेठी से यहां होती है सप्लाई

गोरखपुर, लखनऊ, कानपुर, वाराणसी, प्रयागराज, अयोध्या, फैजाबाद, शाहजहांपुर के साथ आसपास के छोटे स्टेशन पर

स्टैटिस्टिक

- हर माह होती है 1.80 लाख पेटी की खपत

- एक पेटी में 12 बॉटल रहती हैं मौजूद

- गोरखपुर में रोजाना 12 से 1500 बॉटल की होती है सप्लाई

बायो डिग्रेडेबल बॉटल में क्या है खास

- फ‌र्स्ट टाइम यूज के बाद खुद ही ब्रस्ट कर जाती है बॉटल

- ब्रस्ट न होने की कंडीशन में दोबारा फिलिंग करने पर फट जाएगी बॉटल

- प्लास्टिक के साथ कुछ और सामान का है मिक्सचर

- कहीं फेक देने पर भी हो जाएगी ऑटोमेटिक डिग्रेड

- नुकसान से बच जाएगा एनवायर्नमेंट

होती है बड़ी परेशानी

पैसेंजर्स पानी पीने के बाद बोतलों को बोगियों में छोड़ देते हैं या प्लेटफार्मो पर ही फेंक देते हैं। अवैध वेंडर इन बोतलों में फिर से पानी भरकर पैसेंजर्स को बेचते हैं। गोरखपुर के प्लेटफॉर्म पांच से आठ तक यह धंधा जोरों पर है। अन्य स्टेशनों की भी यही स्थिति है। इसके अलावा कचरा उठाने वाले इन बोतलों के लिए रेल लाइनों पर दौड़ते रहते हैं। गंदगी तो फैलती ही है, स्टेशन पर संदिग्ध लोगों के घुसने की आशंका बनी रहती है। यही नहीं प्लास्टिक की बोतलों से नालियां भी चोक होती रहती हैं। बारिश के वक्त हर पल जल जमाव की आशंका बनी रहती है। अगर बॉटल का टाइमली और प्रॉपर डिस्पोजल हो जाएगा, तो इन चीजों की संभावना भी कम हो जाएगी। बायोडिग्रेडेबल होने की वजह से यह समस्या कम हो जाएगी और अगर कहीं बॉटल फेंक भी दी गई है तो वह वक्त बीतने के साथ ही ऑटोमेटिक डिग्रेड हो जाएगी।

पॉलीथिन फ्री कैंपस मुहिम

रेलवे एडमिनिस्ट्रेशन ने एनवायर्नमेंट को बचाने के लिए पॉलीथिन फ्री कैंपस की मुहिम छेड़ी है। इसको देखते हुए स्टेशन कैंपस और चलती ट्रेंस में सिंगल यूज वाली पॉलीथिन पर बैन किया गया है। नियम तोड़ने वालों पर सख्त कार्रवाई करने के साथ ही उनसे जुर्माना भी वसूल किया जाएगा। एनई रेलवे के सभी डिवीजन में इसे लागू कर दिया गया है। जंक्शन के साथ ही चलती ट्रेंस में भी सिंगल यूज वाली पॉलीथिन पर रोक रहेगी। प्लास्टिक के साथ ही खाने के लिए इस्तेमाल होने वाले थर्माकोल के प्लेट, ग्लास और सामान पर भी बैन लगाया गया है।

'पाइलट प्रोजेक्ट के तौर पर लखनऊ-नई दिल्ली-लखनऊ तेजस एक्सप्रेस में बायो डिग्रेडेबल वॉटर बॉटल अवेलबल कराई जा रही है। प्रयोग ठीक रहा तो सभी ट्रेंस और स्टेशन पर बायो डिग्रेडेबल बॉटल रेल नीर मुहैया कराया जाएगा।'

- अश्विनी कुमार श्रीवास्तव, सीआरएम, आईआरसीटीसी

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