जिन पाठ्यक्रमों में औरतों के दाख़िले पर प्रतिबंध लगाए गए हैं उनमें इंजीनियरिंग, नाभिकीय भौतिकी (न्यूक्लियर फ़िज़िक्स), कंप्यूटर साइंस, अंग्रेज़ी साहित्य और पुरातत्व शामिल हैं.

हालांकि सरकार ने नए नियमों पर कोई सफ़ाई नहीं दी है लेकिन नॉबेल पुरूस्कार विजेता शिरीन इबादी जैसे लोगों कहना है कि ये फ़ैसला हुकूमत की उन नीतियों का हिस्सा है जिसके तहत महिलाओं को शिक्षा से दूर रखने की कोशिश की जा रही है.

शिरीन इबादी ने बीबीसी से कहा, "ईरानी प्रशासन शिक्षा के क्षेत्र में महिलाओं की पहुंच को सीमित करने, समाज में उन्हें कम सक्रिय रखने और उन्हें घर की चाहरदीवारी तक सीमित करने के लिए बहुत सारे क़दम उठा रहा है."

ईरान के उच्च शिक्षा मंत्री कामरान दानिशजू का कहना है कि नए नियमों को बहुत महत्व नहीं दिया जाना चाहिए. उनका कहना है कि ईरान ने उच्च शिक्षा में युवाओं की शिरकत को हमेशा प्रोत्साहित किया है और नए नियमों के बावजूद विश्वविद्यालयों के नब्बे फ़ीसद कोर्सेस महिलाओं और पुरूष दोनों के लिए खुले हैं.

प्रोत्साहन

ईरान वो मुल्क है जिसने मध्य-पूर्व में सबसे पहले औरतों को विश्वविद्यालयों में शिक्षा हासिल करने की इजाज़त दी थी और 1979 के इस्लामी क्रांति के बाद से युवतियों को उच्च शिक्षा में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित किया जाता रहा है.

साल 2001 तक शिक्षा में औरतों की तादाद मर्दों से ज़्यादा हो चुकी थी. फ़िलहाल पूरे शिक्षा क्षेत्र में महिलाओं की संख्या लगभग 60 प्रतिशत के आसपास है यानी संख्या के आधार पर वो पुरूषों से अधिक हैं.

विश्वविद्यालयों में महिलाओं की संख्या दिनोंदिन बढ़ती जा रही है. लोगों का कहना है कि इसके पीछे उनकी ज़िंदगी अपनी तरह से जीने और अधिक आज़ादी की चाहत है जो आर्थिक स्वतंत्रता की वजह से हासिल होगी.

लेकिन साल 2009 में हुए विरोध-प्रदर्शनों के बाद मुल्क में रूढ़िवादी नेताओं की पकड़ मज़बूत हुई है. देश के प्रमुख नेता अयातुल्लाह अली खामेनेई ने विश्वविद्यालयों के 'इस्लामीकरण' की मांग की है और कई ऐसे विषयों की कड़ी निंदा की है जिनमें उनके मुताबिक़ पश्चिम की बहुत ज़्यादा छाप है.

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