लेकिन इस लोकसभा के सिर्फ़ 53 फ़ीसदी सदस्य 55 साल से कम उम्र के हैं, इस तरह यह देश की सबसे बूढ़ी लोकसभा बन गई है।
लेकिन इस तथ्य से पहली बार सांसद बनने वाले नेताओं का उत्साह कम नहीं होता।
बीबीसी संवाददाता इक़बाल अहमद ने अलग-अलग पार्टियों और अलग-अलग क्षेत्र के तीन युवा सांसदों से बात की।
पढ़िए युवा सांसदों की बात उन्हीं की ज़ुबानी-
चिराग़ पासवान, लोजपा, जमुई (बिहार)
पहली बार सांसद बनने की वजह से उत्साह बहुत ज़्यादा था, संसद में जाने और क़ायदे समझने का।
संसद अध्यक्ष ने तीन दिन की एक कार्यशाला आयोजित की जिसमें संसद के नियम और क़ायदे हमें सिखाए गए- सवाल कैसे पूछने हैं, तारांकित प्रश्न (स्टार्ड क्वेश्चन) क्या होते हैं, अतारांकित प्रश्न (अनस्टार्ड क्वेश्चन) क्या होते हैं, यह बताया गया।
संसद में एक क्षेत्र है जहां सारे सांसद ख़ाली समय में बैठते हैं, चाय नाश्ता करते हैं।
वहां पर अलग-अलग प्रदेश से, क्षेत्र से आए लोगों से आपका जो संवाद होता है, उससे बहुत कुछ सीखने को मिलता है।
संसद मेरे लिए एक लघु भारत की तरह है और इसका अहसास वहां होता है।
सुष्मिता देव, कांग्रेस, सिल्चर (असम)
संसद में हमारी दो दिन की एक कार्यशाला हुई थी जिसमें बताया गया था कि आप पार्टी के ज़रिये क्या प्रावधान उठा सकते हैं और व्यक्तिगत रूप से क्या कर सकते हैं, फिर पार्टी के और पार्टी से इतर वरिष्ठ सांसद भी आपका मार्गदर्शन करते हैं।
चूंकि मैं राज्य की राजनीति से आई हूँ इसलिए यह देखकर भी अच्छा लगता है कि यहां पूरे भारत की छवि आपके सामने होती है- विभिन्न राज्यों की क्या ज़रूरतें हैं, क्या समस्याएं हैं।
यह एक बहुत सीखने वाला अनुभव होता है।
यह नीति निर्माण का सबसे बड़ा मंच है इसलिए अपने क्षेत्र की तरफ़ से हम देश के लिए बनने वाली नीतियों पर बहस कर सकते हैं और यह बहुत अच्छा अनुभव होता है।
सदन से बाहर आने के बाद हम पहली बार बने सांसद एक स्तर पर होते हैं और हम एक-दूसरे की मदद भी लेते हैं और सहायता भी करते हैं, एक-दूसरे के भाषण की तारीफ़ भी करते हैं।
संसद की ख़ास बात यह है कि यहां के कर्मचारी बहुत मित्रवत हैं।
जब आप संसद में क़दम रखते हैं तो आपको यह महसूस होता है कि मैं जनप्रतिनिधि हूँ और मेरा सम्मान है। लेकिन शुरुआत में कुछ समस्या तो होती है।
जैसे कि एक बार मैंने संसद के पूरे दो चक्कर लगा लिए लेकिन मैं कमरा संख्या 68 ए नहीं ढूंढ पाई।
आप अपने से वरिष्ठ सांसदों को देखते हैं जिन्हें आप टीवी पर देखते रहे हैं, अख़बार में पढ़ते रहे हैं, अलग-अलग विचारधारा के नेताओं से मिलते हैं तो यह बहुत अच्छा अनुभव होता है।
दुष्यंत चौटाला, आईएनएलडी, हिसार (हरियाणा)
पहली बार सांसद बनने वालों में उत्साह तो बहुत होता है। वह सोचते हैं कि जो दूसरे सांसद नहीं कर पाए, वह हम करेंगे।
अगर आप आउटपुट देखें तो सबसे ज़्यादा आउटपुट युवा सांसदों का ही है, चाहे वह बहस की बात हो, चाहे सवालों की बात हो, चाहे विधेयकों की बात हो।
यह हिचक तो रहती ही है कि आपको पूरा देश देख रहा है और ख़ासकर वह वरिष्ठ सदस्य देख रहे हैं जिन्हें देखकर आप बड़े हुए हैं।
यह घबराहट भी होती है कि कहीं कुछ ग़लत न हो जाए। उम्र और अनुभव ऐसी चीज़ है जिससे कोई पार नहीं पा सकता।
एक दूसरी बात यह है कि ज़्यादातर सांसद आज कम से कम मास्टर्स डिग्री लेकर आए हैं और उन्हें ज़मीन पर मौजूद समस्याओं के बारे में भी पता है क्योंकि वह लोगों के बीच आते-जाते रहते हैं।
एक मज़ेदार वाक़या है। मैं जब पहली बार संसद में गया तो जींस पहनकर चला गया था। तो गेट पर गार्ड ने मुझे रोक दिया और पूछा कि सांसद कहां हैं?
वह लोग भी चकरा गए थे कि यह सांसद है जो धोती-कुर्ता नहीं जींस पहनकर आया है।
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