ये मानसिक दबाव तब शुरू होता है जब जेल प्रशासन जल्लाद को किसी की फांसी के सिलसिले में संपर्क करता है।

पवन जल्लाद को निठारी कांड के दोषी सुरेंद्र कोली के फांसी के लिए संपर्क किया गया था। बीबीसी हिंदी ने उनसे उसी वक़्त बात की थी। हालांकि बाद में अदालत ने उनकी फांसी पर रोक लगा दी थी।

उन्होंने कहा जिस दिन से जेल प्रशासन ने संपर्क किया उनकी दिनचर्या में बड़ा बदलाव आ गया था।

पूर्वाभ्यास

फांसी के पहले क्या चलता है जल्लाद के दिमाग़ में?

जल्लाद को फांसी के तख़्ते को ठीक-ठाक करना, फांसी वाली रस्सी की जांच से लेकर फंदा बनाने तक उन्हें हर चीज़ का पूर्वाभ्यास करना पड़ता है।

वो यूं ही जाकर ये काम नहीं कर सकता।

पवन ने कहा कि मसलन जिस शख़्स को फांसी दिया जाना है और उदाहरण के तौर अगर उसका वज़न 70 किलो है तो उन्हें इसी वज़न की रेत की बोरी को लटकाकर अभ्यास करना होता है।

किसी की जान लेना मानसिक और मनोवैज्ञानिक दबाव जल्लाद के अलावा जेल के दूसरे लोगों पर भी होता है और वो तनाव प्रशासन, क़ैदी सभी महसूस करते हैं, जल्लाद तो ज़ाहिर है सबसे अधिक तनाव में होता है।

जेल प्रशासन को लीवर से लेकर रस्सी को लटकाने वाली फिरकी की मरम्मत करवानी पड़ती है। उनका इस्तेमाल फांसी देने में होता है और इन सभी का वक़्त पर ठीक ठाक काम करना बेहद ज़रूरी है।

परिवार का पेट

फांसी के पहले क्या चलता है जल्लाद के दिमाग़ में?पवन का दावा है कि लगभग पांच ऐसे मौक़े आए जब उन्होंने अपने दादा का हाथ बंटाया था और अपराधियों को फांसी देने में उनकी मदद की थी।

लेकिन यह पहला मौक़ा है जब वो अकेले अपने बूते किसी को फांसी देंगे, "1988 में दादा को मैंने आगरा जेल में मदद की थी जब वो किसी अपराधी को फांसी दे रहे थे। उसके बाद दादा के ही साथ 1989 में इलाहाबाद और जयपुर और 1992 में पटियाला में फांसी देने का मौक़ा मिला।"

पवन ने सिर्फ़ आठवीं तक पढ़ाई की है। जल्लाद की नौकरी उनकी पक्की नौकरी नहीं है और वो जेल प्रशासन के साथ सिर्फ़ एक अनुबंध पर हैं जिसके तहत उन्हें महीने में सिर्फ़ तीन हज़ार रुपये ही मिलते हैं।

बाक़ी के दिन वो कपड़े बेचकर अपने परिवार का पेट चलाते हैं। यही वजह है कि उन्होंने अपने बच्चों को शिक्षा देने की ठान ली। अब उनका एक बेटा दिल्ली में ग्रैजुएशन की पढ़ाई रहा है।

नींद नहीं आती

पूछे जाने पर वो कहते हैं कि अभी तक अपने बेटे को उन्होंने जल्लाद का प्रशिक्षण नहीं दिया है जबकि यह उनका पुश्तैनी काम है।

उनके बेटे ने इस बार उनके साथ जाने की इच्छा भी जताई थी मगर पवन ने उन्हें यह कहकर मन कर दिया था कि इससे उसके दिमाग़ पर ख़राब असर पड़ेगा।

"दिमाग़ पर असर तो पड़ता ही है। मैं नहीं चाहता कि उसकी पढ़ाई पर इसका असर पड़े। किसी को मरते हुए देखने का असर दिलो दिमाग़ पर हमेशा रहता है। क्या आप किसी को मरते हुए देख सकते हैं?"

"मेरी बात और है, मैंने तो इसका प्रशिक्षण अपने पिता और दादा से लिया है। लेकिन मेरे दिमाग़ पर भी असर पड़ता है। मुझे खाना नहीं खाया जाता उसके बाद। मुझे भी नींद नहीं आती।"

सिलसिला

फांसी के पहले क्या चलता है जल्लाद के दिमाग़ में?

पवन के छोटे भाई भी हैं मगर न तो उन्होंने और न ही भतीजों ने कभी इच्छा जताई कि वो जल्लाद वाला अपना पुश्तैनी काम सीखना चाहते हैं।

पवन कहते हैं, "मैं सिखा सकता हूँ उन्हें। मगर किसी ने इच्छा ही नहीं ज़ाहिर की।"

यह माना जा रहा है कि जल्लाद के काम का यह सिलसिला पवन के परिवार में उनतक ही सीमित रह जाएगा।

बीबीसी हिंदी ने पवन जल्लाद से ये बातचीत सुरेंद्र कोली की फांसी के पहले की थी।

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