प्रोफेसर डॉक्टर दिनेश शर्मा
जन्म: 12 जनवरी,1964
मां: स्व. शांती शर्मा
पिता: स्व. केदारनाथ शर्मा
वाइफ: जय लक्ष्मी शर्मा
असिस्टेंट प्रो. लविवि
एजुकेशन: बीकॉम, एमकॉम,
डीपीए, पीएचडी
करियर के अहम पड़ाव
पूर्व प्रभारी गुजरात प्रदेश भाजपा
पूर्व महापौर लखनऊ, दो कार्यकाल
पूर्व उपाध्यक्ष पर्यटन निगम यूपी
पूर्व राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बीजेपी
पूर्व उपाध्यक्ष भाजयुमो
पूर्व अध्यक्ष भाजयुमो-तीन कार्यकाल
संयोजक बीेजेपी सदस्यता अभियान
प्रदेश अध्यक्ष यूपी मेयर काउंसिल-दो कार्यकाल
पूर्व सदस्य राष्ट्रीय युवा आयोग
पांच पुस्तकों के लेखक, तीन दर्जन शोध पत्रों का प्रकाशन
अटल बिहारी वाजपेयी की प्रेरणा से सियासत की दुनिया में उतरे
यूपी सरकार के डिप्टी सीएम, शिक्षा मंत्री और बेहद मृदुभाषी डॉक्टर दिनेश शर्मा के पिता वैसे तो संघ से जुड़े थे लेकिन बेटे के राजनीति में आने के धुर विरोधी थे। मगर, भविष्य को तो कुछ और ही मंजूर था। वरिष्ठ भाजपा नेता कलराज मिश्र और भगवती शरण शुक्ल के सानिध्य और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की प्रेरणा से सियासत की दुनिया में उतरे डॉक्टर दिनेश शर्मा कदम दर कदम सियासत में आगे बढ़ते गए। मौजूदा जिम्मेदारियों को निभाते हुए उन्होंने फीस संशोधन अधिनियम बनाकर जहां अभिभावकों को राहत दी, वहीं अब सरकारी स्कूल और कॉलेजों के एजुकेशन सिस्टम को भी रोजगारपरक बनाने की ओर कदम बढ़ा दिए हैं।
सवाल: शिक्षक, फिर संगठन में लंबा काम और अब डिप्टी सीएम, इस जर्नी को कैसे देखते हैं?
जवाब: शुरुआती शिक्षा के बाद उच्च शिक्षा लखनऊ यूनिवर्सिटी में हुई। तमाम कंप्टीशन में सेलेक्शन भी हो गया था लेकिन इच्छा थी कि मैं टीचर बनूं। 1988 में पार्टटाइम लेक्चरर बना, तब 1150 रुपये मिलते थे। तब मेरे घर में बिजनेस होता था और 150 लोग काम करते थे। मेरे पिताजी मेरी हंसी उड़ाते थे। वे नहीं चाहते थे कि मैं नौकरी करूं। वे चाहते थे बिजनेस संभालूं। यही वजह है कि वे ड्राइवर को मेरे सामने खड़ा कर उससे पूछते थे कि तुझे कितनी तनख्वाह मिलती है। वो कहता था कि दो हजार रुपये मिलते हैं, तब मेरे पिताजी कहते थे ये मेरा बेटा है और इसे 1150 रुपये मिलते हैं। यही वजह थी कि मैं कभी कार से यूनिवर्सिटी नहीं गया। शुरुआत में मैं साइकिल से एलयू जाता था। 3000 रुपये जमा कर सेकेंड हैंड स्कूटर खरीद ली। इत्तेफाक था कि पहले परमानेंट लेक्चरर हुआ, फिर रीडर और फिर सबसे कम उम्र का प्रोफेसर। 1989 में मैं युवा मोर्चा का उपाध्यक्ष बना फिर 1992 में युवा मोर्चे का प्रदेश अध्यक्ष बन गया। अटलजी प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने मुझे युवा आयोग का सदस्य बना दिया। जिस दिन मैं सदस्य पद से हटा और लखनऊ का मेयर बन गया। मुझे माननीय प्रधानमंत्री जी व माननीय अमित शाह ने सदस्यता महाअभियान का राष्ट्रीय प्रभारी बना दिया। 12 करोड़ 26 लाख सदस्य बने, यह विश्व रिकॉर्ड बना।
सवाल: आपकी जिंदगी का लक्ष्य क्या था?
जवाब: मेरे पिताजी संघ के स्वयंसेवक थे। आदरणीय दीन दयाल जी का सानिध्य उन्हें प्राप्त था। मेरे प्रेरणास्रोत अटल जी रहे हैं। लोग मुझे अटलवंशी कहते थे। छात्र राजनीति में लोग मुझे राजनीति का चाणक्य भी कहने लगे थे। उनका भ्रम था कि मैं जिसे चुनाव लड़ाऊंगा वो जीत जाएगा। मुझे राजनीति में लाने वाले कलराज मिश्र और भगवती प्रसाद शुक्ल थे। एक दिन अटल जी का फोन आया, बोले-डॉक्टर तुझे चुनाव लडऩा है। मैंने कहा दो दिन नामांकन के बचे हैं, न मेरे पास पैसा है और न समय। अटलजी बोले कि मेरा आदेश है तुम्हें चुनाव लडऩा है। प्रचार के लिए अटल जी लखनऊ आए, उस वक्त उनके तेज बुखार था। सभा हुई, नारा लगा हमारा नेता कैसा हो, अटल बिहारी जैसा हो। अटलजी ने कहा कि अटल बिहारी ऐसा नहीं जो धीरे-धीरे खड़ा होता हो, ऐसा अटल हो जो दिनेश की तरह खड़ा होता हो। बोले, मुझे सांसद बनाकर कुर्ता दे दिया, अब दिनेश को मेयर बना पजामा दे दो। तब अटल जी ने कहा कि मैं खुद को इसमें देखता हूं।
सवाल: अपने सफल सफर का श्रेय किसे देते हैं आप?
जवाब: सामूहिक श्रेय है, लेकिन प्रेरणापुंज अटल जी ही थे बिलकुल एकलव्य की तरह। राजनीति में मुझे कलराज जी लाए और गुरु के रूप में मां को मैं मानता हूं। पिताजी मेरे सर्वेसर्वा थे, वे नहीं चाहते थे कि मैं राजनीति में आऊं। जब मैं युवा मोर्चा का प्रदेश अध्यक्ष बना तो पिता जी ने मुझसे एक सप्ताह बात नहीं की। उन्होंने कहा कि मेरा सबकुछ किया धरा बेकार हो गया क्योंकि मेरा लड़का लालची हो गया। इस पर कलराज जी और भगवती शुक्ला को सफाई देनी पड़ी। मेरा एक करियर था, मैं थ्रूआउट फर्स्ट क्लास आया। अच्छा बिजनेस था इसलिए पिताजी नहीं चाहते थे कि मैं राजनीति में आऊं।
सवाल: डिग्री कॉलेजों में पद बहुत खाली हैं, कैसे सुधरेगी उच्च शिक्षा?
जवाब: मैंने लोकसेवा आयोग के चेयरमैन से बात की है। जो राजकीय डिग्री कॉलेज में पद खाली हैं, उनकी भर्ती नवंबर तक वो कर लेंगे। नवंबर-दिसंबर तक उच्च शिक्षा चयन आयोग के भी पद भर जाएंगे। इस वर्ष के आखिर में माध्यमिक व उच्च शिक्षा के विद्यालयों में खाली पद भर दिये जाएंगे।
सवाल: सरकारी कॉलेजों में क्वालिटी एजुकेशन का क्या प्लान है?
जवाब: माहौल बदल रहा है। दो साल के आंकड़े देखिए जब से सरकारी कॉलेजों में पढ़ाई होने लगी तब से छात्रों की संख्या बढ़ी है। पिछले वर्ष 18 प्रतिशत छात्रों की बढ़ोत्तरी हुई थी, इस वर्ष आंकड़ा 24 प्रतिशत तक पहुंच चुका है। सरकारी कॉलेजों में जितने छात्र बढ़े हैं उतने प्राइवेट में घटे हैं।सरकारी कॉलेजों में शिक्षा का स्तर और अच्छा हो, इस ओर बढ़ रहे हैं।
सवाल: आपको गुरुजी कब से कहने लगे लोग ?
जवाब: गुरुजी का किस्सा बड़ा अजीब है। मैं करीब पांच साल का था, लेकिन इस उम्र में ही हाईस्कूल और गणित के सवाल हल करने का शौक हो गया था। घर के पास वाले गुप्ता जी के परिवार में हाईस्कूल में पढ़ने वाले बच्चे थे। ये सब मुझे गोद में उठाकर ले जाते थे और मुझसे सवाल हल कराते थे और मुझे गुरुजी गुरुजी कहते थे। तब से ही ये 'पदवी' मिल गई।
सवाल: कोर्सेस को रोजगारपरक कैसे बनाएंगे?
जवाब: कई प्लान बनाए हैं। मसलन लखनऊ मंडल की बताता हूं, अगर कोई विज्ञान वर्ग का छात्र है, इंटरमीडिएट उसने माध्यमिक शिक्षा परिषद से पास किया हो और वह 75 प्रतिशत माक्र्स लाया हो। अगर छात्र सीबीएससी या आईसीएससी से 80 प्रतिशत मार्क्स लाया हो तो एचसीएल में सीधे उसका एनरोलमेंट हो जाएगा और उसे 15 महीने तक 10 हजार रुपये महीने मिलेंगे। एमएससी कंप्यूटर साइंस, बीटेक, एमटेक में बिट्स पिलानी के कोर्स शेड्यूल में एडमिशन हो जाएगा और उसे 2.20 लाख रुपये पैकेज मिलेगा। पढ़ाई की आधी फीस एचसीएल देगा जबकि, आधी फीस में बिट्स पिलानी कंसेशन देगा। इस तरह 2.20 लाख रुपये का पैकेज मिल रहा है। एडमिशन मिल रहा है। प्रोफेशनल पढ़ाई भी हो रही।
सवाल: अपने लिए क्वालिटी टाइम कैसे मैनेज करते हैं?
जवाब: खाली न रहना। चौबीस घंटे तक व्यस्त रहना। मेरी चाहत होती है कि मैं जब तक थक न जाऊं तब तब घर न पहुंचूं। शाम को पत्नी के साथ भोजन करता हूं। खाने की टेबल पर राजनीति की बात कतई नहीं करता। वहां सिर्फ एकेडमिक या आध्यात्म पर ही चर्चा होती है। इसी चर्चा में भोजन खत्म हो जाता है। मैंने न घर लिया है और न ही नौकर लिया है। पैतृक घर में रहता हूं। मुझे कोई भी चीज अच्छी लगती है तो उसे कंप्यूटर में सेव कर लेता हूं। जेब में डायरी में बुलेट प्वाइंट्स तैयार कर लेता हूं। ड्राइवर व गनर से पूछता हूं कि मुझमें क्या कमी रह गई।
सवाल: आपके करियर की सफलता का मूलमंत्र क्या है?
जवाब: मेरे जीवन का मकसद है समाज सेवा। यही वजह है कि मैंने अपना परिवार पति-पत्नी तक सीमित रखा है। मुझे चिंता नहीं करनी कि मुझे अपनी औलादों के लिये कमा कर रखना है। यह इसलिए है कि जब तक काम करूं पूरी ईमानदारी से करूं। यह एक मन की अभिलाषा है कि खुद को मैं पूर्णत: दे सकूं। मैं पद के पीछे कभी नहीं भागता। यह नहीं देखता कि काम छोटा है या बड़ा है।
सवाल: आप युवाओं को क्या संदेश देना चाहेंगे?
जवाब: काम कोई कठिन नहीं है। लक्ष्य बनाकर काम करना चाहिये। उस लक्ष्य के पीछे पूरी जी जान से जुट जाना चाहिए। जब तक लक्ष्य पूरा न हो जाए उसे चैन की नींद नहीं आनी चाहिये। हर कठिन काम को सरल बनाने के लिये परिश्रम की पराकाष्ठा करनी होती है। परिश्रम की पराकाष्ठा ही मूल मंत्र है। जिनसे यह कर लिया उसे सफलता मिली। इसकी वजह यह नहीं कि मेरी हाथ की रेखाएं प्रबल हैं। भाग्य की रेखा उसी की प्रबल होती हैं जो विश्वास करता है। मैं ईश्वर में भी विश्वास करता हूं और बड़ों पर भी।
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