Story by : Abhishek Kumar Tiwari
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राजनीतिक उठापटक :
भारत के स्वतंत्रता संग्राम में कई ऐसे नायक भी थे जिन्होंने चुपचाप अपने काम को पूरा किया। आजादी की लड़ाई में एक ऐसे ही सिपाही थे भारत रत्न गोविंद बल्लभ पंत। पंडित गोविंद बल्लभ पंत का नाम आते ही एक आदर का भाव उमड़ आता है। एक स्वंत्रता सेनानी के रूप में कहें या एक आदर्श राजनेता के रूप में देखें, पंडित जी का जीवन एक मिसाल के तौर पर देखा जाता रहा है। एक सक्रिय देशभक्त होने के नाते गोविंद बल्लभ पंत ने 1914 से ब्रिटिश राज के खिलाफ काम करना शुरू कर दिया था। वकालत में ज्ञान होने की वजह से पंत जी ने अंग्रेजों के नाक में दम कर दिया था। बात 1928 की है जब साइमन कमीशन के खिलाफ लखनऊ में गोविंद वल्लभ पंत अपने कई साथियों के साथ प्रदर्शन कर रहे थे। उस समय साइमन कमीशन के खिलाफ पूरे देशभर में लहर थी। विरोध प्रदर्शन के दौरान अंग्रेज सैनिकों ने गोविंद वल्लभ पंत को बुरी तरह से घायल कर दिया जिसकी वजह से वह पूरी जिंदगी पीठ के दर्द से कराहते रहे। इसके बावजूद उन्होंने संघर्ष करते हुए आजादी की लड़ाई में महत्वपूर्ण योगदान दिया। पंत जी राजनीति के एक माहिर नेता थे। उनके अंदर वह राजनीतिक क्षमता थी जिससे कई राजनेताओं ने उनसे प्रेरणा ली।
महत्वपूर्ण फैसले :
पंत जी का राजनीतिक जीवन साल 1937 में शुरु हुआ। पंत जी स्वतंत्र भारत के उत्तर प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री थे। उन्होंने 1946 से लेकर 1954 तक मुख्यमंत्री पद का कार्यभार संभाला। मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए पंत जी ने कई महत्वपूर्ण फैसले लिए थे। जमींदारी उन्मूलन कानून को प्रभावी बनाने में गोविंद वल्लभ पंत का अहम योगदान रहा। इसके अलावा पंत जी ने हिंदू विवाह कानून बदलने की पैरवी की। हिंदू व्यक्ित कानूनन सिर्फ एक ही स्त्री से शादी कर सकता है, पंत जी इसके पक्षधर थे। साथ ही हिंदू महिला के तलाक देने के अधिकार को लेकर पंत जी का समर्थन हमेशा रहा।
काम :
गोविंद वल्लभ पंत ने स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान ही देशहित में कई बड़े काम करने शुरु कर दिए थे। साल 1914 की बात है। पंत जी ने अंग्रेजों के उस कानून को चुनौती दी थी, जिसमें स्थानीय लोगों को कुली बनाकर ब्रिटिश अफसरों का सामान उठाने को मजबूर किया जाता था। आखिरकार पंत की मेहनत रंग लाई और उनका यह आंदोलन सफल रहा। बात अगर राजनीति की करें, तो यहां भी यूपी के मुख्यमंत्री बनने के बाद पंत ने राज्य हित में बहुत अच्छे काम किए। उस समय देश को आजाद हुए सालभर भी नहीं हुआ था, पंत ने उत्तर प्रदेश की आर्थिक स्थिति को मजबूती प्रदान की। यही नहीं गोविंद वल्लभ हिंदी भाषा के प्रचार-प्रसार के पक्षधर थे। पंत जी ने ही पहली बार हिन्दी को भारत की राष्ट्रभाषा बनाने का आंदोलन भी चलाया था।
व्यक्ितगत जीवन :
गोविंद बल्लभ पंत का जन्म 10 सितम्बर, 1887 ई. वर्तमान उत्तराखंड राज्य के अल्मोड़ा जिले के खूंट नामक गांव में ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनकी माता का नाम गोविंदी था जबकि पिता मनोरथ पंत थे। इस परिवार का संबंध कुमाऊं की एक अत्यन्त प्राचीन और सम्मानित परम्परा से है। गोविंद बल्लभ पंत ने 1905 में इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में प्रवेश लिया और 1909 में उन्होंने कानून की परीक्षा उत्तीर्ण की और वकालत करने लगे। काकोरी मुकद्दमे ने एक वकील के तौर पर उन्हें पहचान और प्रतिष्ठा दिलाई। पंत ने साल 1916 में कलावती से शादी की। जिनसे उन्हें एक बेटा (कृष्ण चंद्र पंत) हुआ जो बाद में राजनेता बना। इसके अलावा उनकी दो बेटियां भी थीं लक्ष्मी और पुष्पा।
पांच महत्वपूर्ण बातें :
1. गोविंद वल्लभ पंत 10 साल तक स्कूल नहीं गए। उनकी शुरुआती शिक्षा घर पर ही हुई। वह पढ़ने में बहुत ही तेज थे।
2. 14 साल की उम्र में उनके साथ एक ऐसी घटना घटी जिसकी वजह से उन्हें पढ़ाई में काफी बाधा पहुंची। उन्हें छोटी सी उम्र में ही हार्ट अटैक की बीमारी हो गई। पहला हार्ट अटैक उन्हें 14 साल की उम्र में ही आया था।
3. गोविंद वल्लभ पंत ने तीन शादियां की थीं। उनकी दो पत्नियों का निधन हो गया था, बाद में 1916 में कलावती से तीसरी शादी की।
4. पंत जी को वकील के तौर पर पहली फीस 5 रुपये मिली थी।
5. 1914 में काशीपुर में ‘प्रेमसभा’ की स्थापना पंत जी के प्रयत्नों से ही हुई। ब्रिटिश शासकों ने समझा कि समाज सुधार के नाम पर यहाँ आतंकवादी कार्यो को प्रोत्साहन दिया जाता है। फलस्वरूप इस सभा को हटाने के अनेक प्रयत्न किये गये पर पंत जी के प्रयत्नों से वह सफल नहीं हो पाये। 1914 में पंत जी के प्रयत्नों से ही ‘उदयराज हिन्दू हाईस्कूल’ की स्थापना हुई। राष्ट्रीय आन्दोलन में भाग लेने के आरोप में ब्रिटिश सरकार ने इस स्कूल के विरुद्ध मुकदमा दायर कर नीलामी के आदेश पारित कर दिये। जब पंत जी को पता चला तो उन्होंनें चन्दा मांगकर इसको पूरा किया।
6. भारत रत्न सम्मान उनके ही काल में आरम्भ किया गया। सन् 1957 में गणतन्त्र दिवस पर महान देशभक्त, कुशल प्रशासक, सफल वक्ता, तर्क का धनी एवं उदारमना पन्त जी को भारत की सर्वोच्च उपाधि 'भारत रत्न' से विभूषित किया गया।
7. 7 मार्च 1961 को गोविंद बल्लभ पंत का निधन हो गया।
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