Story by : abhishek.tiwari@inext.co.in

@abhishek_awaazराजनीतिक उठापटक :

कांग्रेस पार्टी के कद्दावर नेताओं में से एक हेमवती नंदन बहुगुणा का राजनीतिक करियर काफी उतार-चढ़ाव वाला रहा। अपनी बात मनवाने के लिए नंदन बहुगुणा ने इंदिरा गांधी को भी नीचा झुका दिया था। अन्य नेताओं की तरह नंदन बहुगुणा ने भी स्वतंत्रता आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था, साल 1942 में महात्मा गांधी के आवाहन पर बहुगुणा आजादी के लिए अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई में कूदे। नंदन बहुगुणा की शख्सियत ऐसी थी कि अंग्रेजों के लिए वह बड़ी मुसीबत साबित हुए। आपको जानकर हैरानी होगी कि उस समय अंग्रेजों ने बहुगुणा को जिंदा या मुर्दा पकड़ने के लिए 10 हजार रुपये का ईनाम रखा था, जो कि एक खासी बड़ी रकम मानी जाती थी। इलाहबाद में रहते हुए स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन के दौरान बहुगुणा आनंद भवन में जवाहरलाल नेहरू और लाल बहादुर शास्त्री के संपर्क में आए। यहीं से उनकी असल राजनैतिक पारी की शुरुआत हुई। पहली बार वर्ष 1952 में करछना विधानसभा का टिकट मिला जहाँ से वे भारी मतों से विजयी हुए, वे सच्चे मायनों में मजदूरों के नेता थे, जिन्होंने विधानसभा में हमेशा मजदूरों की आवाज बुलंद की।

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महत्वपूर्ण फैसले :

नंदन बहुगुणा की कार्य कुशलता से प्रभावित होकर साल 1958-59 में उन्हें उत्तर प्रदेश राज्य सरकार में उपमंत्री बनाया गया। साल 1967-68 में उन्होंने बतौर वित्तमंत्री राज्य का शानदार प्रो पीपल बजट पेश किया और समाज के सभी वर्गों को न सिर्फ खुश किया बल्कि बेहद प्रभावित भी किया। इसके बाद साल 1971 के राष्ट्रीय चुनाव में देशभर में प्रचार कर उन्होंने कांग्रेस पार्टी को अपार बहुमत दिलवाई। कांग्रेस की शानदार जीत के उपरान्त बहुगुणा को उम्मीद थी कि पार्टी विभाजन और फिर राष्ट्रपति के विकट चुनाव में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका के चलते इंदिरा गांधी उन्हें केंद्र में ताक़तवर मंत्री बनाएंगी। लेकिन उन्हें मात्र संचार राज्य मंत्री बनाया गया, वह भी अधीनस्थ। क्योंकि वह पहली बार सांसद बने थे। इससे रूठ कर बहुगुणा कोप भवन में चले गए और 15 दिन तक चार्ज नहीं लिया। हार कर और कुढ़ कर इंदिरा गांधी ने उन्हें मंत्रालय का स्वतन्त्र चार्ज तो दे दिया पर मन में गाँठ पड़ गयी। इंदिरा और बहुगुणा के बीच यह दरार फिर कभी नहीं भर पाईं। नंदन बहुगुणा पहली बार 8 नवम्बर, 1973 से 4 मार्च, 1974 तथा दूसरी बार 5 मार्च, 1974 से 29 नवम्बर, 1975 तक उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद का कार्यभार सौंपा गया। बाद में वह 1977 से 1979 तक केंद्रीय मंत्री भी रहे।

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काम :

हेमवती नंदन बहुगुणा को अपनी कार्यकुशलता के चलते जाना जाता है। उन्होंने न सिर्फ खतरनाक पीएसी विद्रोह को सफलतापूरक कुचल दिया बल्कि उनके कार्यकाल में प्रदेश में कहीं शिया-सुन्नी झगड़े भी नहीं हुए और उत्तर प्रदेश का हर वर्ग और सम्प्रदाय उनका मुरीद बन गया। उनके जादुई नेतृत्व में उत्तरप्रदेश विकास की नयी बुलंदियों को छू रहा था वहीं राज्य के शिक्षक वर्ग को दिए गए फायदों जैसे लंबित प्रोमोशनो आदि के चलते उनकी चारों और वाह वाही होने लगी। उन्होंने कई महीनों से चल रहे शिक्षकों की हड़ताल को बखूबी हल किया। ऊपर से राज्य को विकास की पटरी पर लाये. फलस्वरूप मीडिया ने बहुगुणा की छवि एक सफलतम राष्ट्रीय नेता की बना दी।

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व्यक्ितगत जीवन :

25 अप्रैल 1919 को पौड़ी गढ़वाल के बगनी गांव में जन्मे हेमवती नंदन बहुगुणा का जीवन वास्तव में अत्यंत कठिनाइयों, संघर्षों, झंझावातों और राजनैतिक उठा पटक से ओतप्रोत रहा। बचपन से ही उनके भीतर नेतृत्व के गुण कूट कूट कर भरे थे। वे उच्च शिक्षा के लिए इलाहाबाद गए जहाँ उन्होंने बतौर मजदूर नेता गरीबी के आलम में जीवन काटने के साथ साथ बेहद संघर्ष किया। नंदन बहुगुणा ने दो शादी की थी। उनकी दूसरी पत्नी कमला बहुगुणा से उनके दो बेटे और एक बेटी हुई। बहुगुणा के पहले बेटे विजय बहुगुणा उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। वहीं उनकी बेटी रीता बहुगुणा जोशी कांग्रेस से जुड़ी थीं, फिलहाल वह अब बीजेपी में आ गई हैं। 17 मार्च 1989 को हेमवती नंदन बहुगुणा दुनिया को अलविदा कह गए।

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कुछ रोचक बातें :

1. साल 1984 में हेमवती नंदन बहुगुणा के खिलाफ अमिताभ बच्चन ने चुनाव लड़ा था। यही नहीं अमिताभ ने बहुगुणा को 1 लाख 87 हजार वोट से हराया। इसके बाद बहुगुणा कांग्रेस छोड़कर लोकदल में आ गए थे।

2. बहुगुणा की बाईपास सर्जरी फेल होने के चलते उनकी मृत्यु हुई।

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