Story by : abhishek.tiwari@inext.co.in
@abhishek_awaaz

राजनीतिक उठापटक :

भारतीय राजनीति में ऐसे बहुत कम मुख्यमंत्री हुए जो बाद में प्रधानमंत्री पद तक पहुंचे। इस कड़ी में सबसे पहला नाम आता है देश के जाने-माने राजनेता चौधरी चरण सिंह का..राजनीति और कूटनीति में निपुण चरण सिंह का राजनीतिक जीवन काफी उतार-चढ़ाव वाला रहा। वह मुख्यमंत्री भी बने और प्रधानमंत्री भी लेकिन कार्यकाल कभी पूरा नहीं कर सके। चरण सिंह के राजनीतिक जीवन की शुरुआत 1937 में हुई जब कांग्रेस की तरफ से उन्होंने विधानसभा चुनाव लड़ा और जीता भी।

कभी चुनाव न हारने वाले यूपी के पहले मुख्‍यमंत्री जो प्रधानमंत्री भी बने
चरण सिंह को राजनीति इतनी पसंद आई कि कभी इससे मोहभंग नहीं हुआ। उन्होंने छत्रवाली विधानसभा सीट से 9 साल तक क्षेत्रीय जनता का कुशलतापूर्वक प्रतिनिधित्व किया। चौधरी चरण सिंह का राजनीतिक भविष्य 1951 में बनना आरम्भ हो गया था, जब इन्हें उत्तर प्रदेश में कैबिनेट मंत्री का पद प्राप्त हुआ। उन्होंने न्याय एवं सूचना विभाग सम्भाला। 1952 में डॉक्टर सम्पूर्णानंद के मुख्यमंत्रित्व काल में उन्हें राजस्व तथा कृषि विभाग का दायित्व मिला। 1960 में चंद्रभानु गुप्ता की सरकार में उन्हें गृह तथा कृषि मंत्रालय दिया गया और वह उत्तरप्रदेश की जनता के मध्य अत्यन्त लोकप्रिय नेता बन गए।
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महत्वपूर्ण फैसले :
पंडित जवाहर लाल नेहरू से मनमुटाव के चलते चौधरी चरण सिंह ने सन 1967 में कांग्रेस पार्टी छोड़ दी और एक नए राजनैतिक दल ‘भारतीय क्रांति दल’ की स्थापना की। राज नारायण और राम मनोहर लोहिया जैसे नेताओं के सहयोग से उन्होंने उत्तरप्रदेश में सरकार बनाई और 3 अप्रैल 1967 को उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री बने। 17 अप्रैल 1968 को उन्होंने मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया। मध्यावधि चुनाव में उन्होंने अच्छी सफलता मिली और दोबारा 17 फ़रवरी 1970 के वे मुख्यमंत्री बने। उसके बाद वो केन्द्र सरकार में गृहमंत्री बने तो उन्होंने मंडल और अल्पसंख्यक आयोग की स्थापना की। 1979 में वित्त मंत्री और उपप्रधानमंत्री के रूप में राष्ट्रीय कृषि व ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) की स्थापना की। 28 जुलाई 1979 को चौधरी चरण सिंह समाजवादी पार्टियों तथा कांग्रेस (यू) के सहयोग से प्रधानमंत्री बने।
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काम :
चरण सिंह को 'किसानों का मसीहा' कहा जाता था। इन्होंने पूरे सूबे के किसानों से मिलकर उनकी हर संभव मदद का प्रयास किया। कृषकों के प्रति प्रेम का ही नतीजा था कि चरण को किसी भी चुनाव में हार नहीं झेलनी पड़ी। साल 1938 में ही हो गई थी जब इन्होंने 'कृषि उत्पाद बाजार विधेयक' पेश किया। यह विधेयक किसानों के हित में था। आजादी के बाद चरण सिंह उत्तर प्रदेश के राजस्व मंत्री बने और किसानों के हित में काम करते रहे। इन्होंने 1952 में 'जमींदारी उन्मूलन विधेयक' पारित किया। जिसके चलते करीब 27 हजार पटवारियों ने त्याग पत्र दे दिया। चरण सिंह भी जिद्दी स्वभाव के थे उन्हें किसान के हित के आगे किसी की नहीं सुनी। किसानों को पटवारी के आतंक से आजाद दिलाने का श्रेय चरण सिंह हो ही जाता है। बाद में उन्होंने खुद लेखपाल पद का कार्यभार संभाला और नए पटवारी नियुक्त किए जिसमें 18 परसेंट सीट हरिजनों के लिए रिजर्व थी।
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व्यक्ितगत जीवन :
चरण सिंह का जन्म एक जाट परिवार में 23 दिसम्बर, 1902 को यूनाइटेड प्रोविंस (वर्तमान उत्तर प्रदेश) के नूरपुर गाँव में एक किसान परिवार में हुआ था। चौधरी चरण सिंह की प्राथमिक शिक्षा नूरपुर ग्राम में ही पूर्ण हुई, जबकि मैट्रिकुलेशन के लिए इन्हें मेरठ के सरकारी उच्च विद्यालय में भेज दिया गया। 1923 में 21 वर्ष की आयु में इन्होंने विज्ञान विषय में स्नातक की उपाधि प्राप्त कर ली। दो वर्ष के पश्चात 1925 में चौधरी चरण सिंह ने कला स्नातकोत्तर की परीक्षा उत्तीर्ण की। फिर कानून की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद उन्होंने गाज़ियाबाद में वक़ालत करना आरम्भ कर दिया। 29 मई 1987 को उनका निधन हो गया।

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रोचक बातें :

1. चौधरी चरण सिंह पहले ऐसे मुख्यमंत्री थे, जो बाद में प्रधानमंत्री भी बने।

2. चरण सिंह का विवाह साल 1929 में गायत्री देवी के साथ हुआ। इन दोनों के पांच संतानें हुईं। उनके पुत्र अजित सिंह अपनी पार्टी ‘राष्ट्रीय लोक दल’ के अध्यक्ष हैं।

3. एक राजनेता के साथ चौधरी चरण सिंह एक कुशल लेखक भी थे और अंग्रेज़ी भाषा पर अच्छा अधिकार रखते थे। उन्होंने ‘अबॉलिशन ऑफ़ ज़मींदारी’, ‘लिजेण्ड प्रोपराइटरशिप’ और ‘इंडियास पॉवर्टी एण्ड इट्स सोल्यूशंस’ नामक पुस्तकों का लेखन भी किया।

4. चौधरी चरण सिंह कभी भी चुनाव नहीं हारे।

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