Story by : abhishek.tiwari@inext.co.in
@abhishek_awaaz
राजनीतिक उठापटक :
चंद्रभानु गुप्ता एक अलग ही नेचर के राजनेता माने जाते थे। उनका कहना था कि जो भी काम करो, वो हट कर करो। यही वजह है कि उत्तर प्रदेश की राजनीति में चंद्रभानु का नाम बार-बार सामने आता है। 17 बरस की उम्र में स्वतंत्रता आंदोलन में उतर आए चंद्रभानु ने ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ आवाज बुलंद करने के लिये, साइमन कमीशन का विरोध किया। देश की आज़ादी के लिये वे लगभग 10 बार जेल भी गये। चंद्रभानु एक अच्छे वकील भी थे। काकोरी काण्ड के क्रांतिकारियों के बचाव दल के प्रमुख वकीलो मे वे भी थे। काकोरी कांड के मुख्य हीरो जिसमे रामप्रसाद बिस्मिल, अश्फ़ाक़उल्लाखान, तथा चंद्रशेखर आज़ाद, व उनके साथियों को बचाने के लिए चंद्रभानु ने अंत समय तक प्रयास किया। गुप्ता जी के राजनीतिक करियर की शुरुआत साल 1926 से हुई, जब उन्हें उत्तर प्रदेश काँग्रेस और अखिल भारतीय काँग्रेस कमेटी का सदस्य बनाया गया।
महत्वपूर्ण फैसले :
चंद्रभानु ने राजनीति में आते ही बहुत कम समय में कांग्रेस पार्टी में अपनी खास पहचान बना ली थी। उत्तर प्रदेश मे कांग्रेस पार्टी के वे कोषाध्यक्ष, उपाध्यक्ष और संगठन के अध्यक्ष भी रहे। 1937 के निर्वाचन मे वे उत्तर प्रदेश विधान सभा के सदस्य चुने गए और बीच के कुछ समय को छोड़कर बराबर निर्वाचन मे सफल हुए। स्वतन्त्रता के बाद 1946 मे बनी पहली प्रदेश सरकार मे वे पंडित गोविंदबल्लभ पंत जी के मंत्रिमंडल मे सभा सचिव के रूप मे सम्मिलित हुए थे। फिर 1948 से 1959 तक उन्होने अनेक प्रमुख विभागों के मंत्री के रूप मे काम किया। चंद्रभानु तीन बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे थे। 1960 से 1963 तक उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहने के बाद “कामराज योजना“ मे उन्होने यह पद त्याग दिया। चंद्रभानु ऐसे नेता थे जिन्होने पार्टी को मजबूत करने के लिये व राष्ट्र को मजबूत आधारशिला प्रदान करने के लिये अपने मुख्यमंत्री पद का त्याग कर दिया। मुख्यमंत्री पद त्यागने के बाद भी राजनीति मे उनका प्रभाव बना रहा । 1967 के आम चुनाव मे विजयी होने के बाद वे फिर से मुख्यमंत्री बने, लेकिन सिर्फ 19 दिनों के लिए। बाद में साल 1969 में वह तीसरी बार मुख्यमंत्री बने और करीब एक साल तक इस पद पर बने रहे।
काम :
मुख्यमंत्री काल के दौरान चंद्रभानु ने सरकारी कार्यालयों मे हिन्दी मे काम करने की प्रथा की शुरुआत की। इसके अलावा उन्होंने उत्तर प्रदेश में कई मुख्य संस्थाओं की स्थापना करवाई जिनमें – मोतीलाल मेमोरियल सोसाइटी , आचार्य नरेंद्र देव स्मृति भवन, बाल विद्या मंदिर, बाल संग्रहालय और रविंद्रालय प्रमुख हैं। चंद्रभानु गुप्ता जी ने हमेशा मैत्री का ही भाव रखा और आवश्यकतानुसार सभी की सहायता करते रहे, चाहे वो विरोधी ही क्यों न हों।
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चंद्रभानु से जुड़ा एक किस्सा आज भी याद किया जाता है, जब चंद्रभानु गुप्त उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे। उनके खिला़फ चंद्रशेखर और उनके साथियों ने लखनऊ में प्रदर्शन किया। प्रदर्शन करते-करते शाम हो गई थी, लगभग दस हज़ार प्रदर्शनकारी लखनऊ में थे और किसी के खाने का इंतजाम नहीं था। चंद्रशेखर अपने कुछ साथियों के साथ गुप्ता जी से मिलने गए। गुप्ता जी ने कहा, आओ भूखे-नंगे लोगों, इनको ले तो आए, अब क्या लखनऊ में भूखा रखोगे। चंद्रशेखर जी ने कहा कि आपका राज्य है, जैसा चाहें कीजिए। गुप्ता जी खीज गए, लेकिन कहा कि मैंने कह दिया है पूड़ी-सब्जी पहुंचती होगी। मैंने पहले ही समझ लिया था कि बुला तो लोगे, लेकिन खाने का इंतजाम नहीं कर पाओगे। यह थी उस समय की राजनैतिक शिष्टता। दल कोई भी हो, लेकिन एक-दूसरे के प्रति इज्जत हमेशा बरकरार रही।
व्यक्ितगत जीवन :
प्रसिद्ध स्वतन्त्रता सेनानी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री स्वर्गीय श्री चंद्रभानु गुप्ता का जन्म 14 जुलाई 1902 ईस्वी को अलीगढ़ के बिजौली नामक स्थान मे हुआ था। उनके पिता हीरालाल की अपने समाज मे बहुत प्रतिष्टा थी। चंद्रभानु गुप्ता के चरित्र निर्माण मे आर्यसमाज का बहुत प्रभाव था और भावी जीवन मे आर्यसमाज के सिद्धांत उनके मार्गदर्शक रहे। उनकी शिक्षा लखीमपुर खीरी मे हुई और उच्च शिक्षा के लिए वे लखनऊ चले आए। यहाँ के विश्वविद्यालय से की परीक्षा पास की और फिर लखनऊ ही उनका कार्य क्षेत्र बन गया। गुप्ता जी ने लखनऊ मे वकालत आरम्भ की। और एक जाने-माने वकील में पहचान बना ली थी। चंद्रभानु आजीवन ब्रह्मचर्य का पालन करते रहे, उन्होंने कभी शादी नहीं की। 11 मार्च 1980 को वह दुनिया को अलविदा कह गए।
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