संध्या टंडन। सावन का महीना अपने मनोहारी प्राकृतिक सौंदर्य के अलावा शिवजी की विशेष पूजा-अर्चना के लिए भी प्रसिद्ध है। वैसे तो देश के विभिन्न हिस्सों में निवास करने वाले शिव भक्त इस महीने में अपनी लोक प्रचलित मान्यताओं के अनुसार भोलेनाथ की आराधना करते हैं। ...पर झारखंड के देवघर जिले में स्थित बैजनाथ धाम नामक तीर्थ स्थल पर अपार संख्या में श्रद्धालु शिव जी को जल चढ़ाने के लिए एकत्र होते हैं।
प्रचलित कथा
एक बार रावण ने विचार किया कि यदि भगवान शंकर लंका में निवास करें तो उसका राज्य सदा ही संपन्न और शक्तिशाली रहेगा। इसी विचार से वह कैलाश पर्वत पहुंचा। वहां उसने कठोर तपस्या की, जिससे प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उसे एक लिंगाकार पत्थर दिया और कहा कि यदि रास्ते में किसी भी कारणवश तुमने इसे पृथ्वी पर रख दिया तो वह उसी स्थान पर अडिग हो जाएगा।
इसके बाद वह उसे हाथों में लेकर लंका की यात्रा पर निकल पड़ा। मार्ग में पडऩे वाले हरितकी वन में रावण को लघुशंका की तीव्रता का आभास हुआ। तभी उसे ब्राह्मण वेशधारी विष्णु भगवान मिले। रावण ने उस पथिक से आग्रह किया कि इस पवित्र लिंग को वह थोड़ी देर तक अपने पास संभाल कर रखें, मैं अभी आता हूं पर थोड़ी ही देर बाद विष्णु भगवान ने यह कहते हुए उसे धरती पर रख दिया कि मुझसे इसका भार संभाला नहीं जा रहा। वास्तव में यह विष्णु भगवान की ही माया थी, ताकि रावण उस लिंग रूपी शिव जी को अपने साथ लंका न ले जाने पाए। फिर ब्राह्मण वेशधारी भगवान ने उसी वन में शिवलिंग की स्थापना कर दी।
तभी शिवजी प्रकट हुए और उन्होंने रावण से कहा कि अब मैं तुम्हारे नाम के साथ यहीं स्थिर रहूंगा। इसी वजह से इस तीर्थ का मूल नाम रावणेश्वर बैजनाथ धाम है। वर्तमान समय में यहां एक भव्य मंदिर है। वैसे तो यहां श्रद्धालु साल भर आते हैं पर श्रावण मास में यहां शिव जी की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। यहां से 105 किमी की दूरी पर स्थित सुल्तानगंज से कांवड़ मे जल लेकर भक्तगण बैजनाथ धाम मंदिर तक पैदल जाते हैं। शिव और पद्म पुराण के पाताल खंड में भी इस ज्योतिर्लिंग की महिमा का वर्णन मिलता है।
शिव-शक्ति का संगम
पूरे देश में बैजनाथ धाम ही एकमात्र ऐसा स्थल है, जहां ज्योतिर्लिंग के साथ शक्तिपीठ भी स्थित है। इस शिवलिंग को 'मनोकामना लिंगÓ भी कहा जाता है। पुराणों के अनुसार, भगवान विष्णु के सुदर्शन चक्र के प्रहार से सती माता का हृदय कटकर यहीं गिरा था। यही कारण है कि इस स्थल को हृदयपीठ भी कहा जाता है। यह मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक है। ऐसी मान्यता है कि शिव-शक्ति के इस मिलन स्थल पर ज्योतिर्लिंग की स्थापना स्वयं देवताओं ने की थी।
अन्य दर्शनीय स्थल
देवघर से 42 किमी की दूरी पर स्थित वासुकिनाथ का मंदिर भी दर्शनीय है। ऐसी मान्यता है कि इसके दर्शन के बिना बैजनाथ धाम यात्रा अधूरी रह जाती है। महाशिवरात्रि के अवसर पर शिव और पार्वती के मंदिरों के शीर्ष का पीले या लाल धागे से गठबंधन भी किया जाता है, उतारे हुए पुराने धागे के टुकड़ों को श्रद्धालुओं के बीच प्रसाद के रूप में बांट दिया जाता है।
बाबा बैजनाथ के दर्शन के लिए वायुमार्ग से पटना या रांची पहुंचा जा सकता है। इसके बाद आप बस या टैक्सी द्वारा सुल्तानगंज या बैजनाथ धाम तक जाने मंदिर तक आसानी से जा सकते हैं। वैसे तो बाबा बैजनाथ के दर्शन के लिए आप यहां कभी भी आ सकते हैं लेकिन श्रावण मास में इस तीर्थ की यात्रा से विशेष पुण्य फल की प्राप्ति होती है तो फिर इस बार आप भी चलें बाबा बैजनाथ के दर्शन करने।