ऐसे ही कुछ लोगों ने बीते दिनों लंदन में प्रेस वार्ता कर प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी की संभावनाओं को लेकर चिंता ज़ाहिर की.
इनमें मशहूर मूर्तिकार अनीश कपूर और सुप्रीम कोर्ट की जानीमानी वकील वृंदा ग्रोवर के साथ कई अन्य बुद्धिजीवियों ने हिस्सा लिया और बताया कि मोदी उन्हें क्यों स्वीकार नहीं हैं.
अनीश कपूर ने कहा, "इतिहास की ज़िम्मेदारियों से बचा नहीं जा सकता. मैं 2002 की बात कर रहा हूं और उसके पहले की घटनाओं की भी. दूसरी बात यह कि हम आरएसएस के सांप्रदायिक विभाजन वाले इतिहास को जानते हैं, जिससे मोदी जुड़े रहे हैं. इन बातों को दरकिनार नहीं किया जा सकता."
मोदी क्यों अस्वीकार्य?
अनीश कपूर आगे कहते हैं, "जब हम अपने इस बेहद महत्वपूर्ण देश का प्रधानमंत्री चुनने जा रहे हैं तो हमें सोचना होगा कि वो व्यक्ति नैतिक हो और ज़िम्मेदार हो क्योंकि बिना नैतिकता के लोकतंत्र, बिना नैतिकता के राजनीति दरअसल हिंसा है. और ऐसी सोच के साथ सत्ता के शिखर पर बैठना हिंसा की संभावना पैदा करेगा और हमारे जैसे सोचने-समझने वाले लोगों को इसके ख़िलाफ़ खड़ा होना चाहिए. "
उसी आयोजन में सुप्रीम कोर्ट की जानी-मानी वकील वृंदा ग्रोवर ने कहा, "शुरू से ही भारत के धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र को आरएसएस की विचारधारा ने चुनौती दी है. उसका सबसे पहला नमूना 1948 में गांधी के क़त्ल के रूप में नज़र आया था. वो चुनौती बीच में दबी, लेकिन आज वह एक बार फिर से अपना खूंखार चेहरा सामने ला रही है."
इससे पहले ब्रिटेन के 75 बुद्धिजीवियों ने अपने हस्ताक्षर के साथ इंडिपेंडेंट अखबार में एक चिट्ठी प्रकाशित करवाई थी.
इसमें कहा गया था कि मोदी अगर भारत के प्रधानमंत्री बन जाते हैं तो ये लोकतंत्र, देश की बहुलता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए गंभीर चिंता की बात होगी.
ब्रितानी सांसद लॉर्ड मेघनाद देसाई नरेंद्र मोदी में एक नई संभावना देखते हैं.
इन बुद्धिजीवियों का तर्क है कि गुजरात में मोदी के शासन का अनुभव सबको साथ लेकर चलने का नहीं रहा है और यह प्रजातांत्रिक परंपरा को कमज़ोर करने वाला ही साबित होगा.
इनके अलावा जाने-माने लेखक सलमान रुश्दी ने भी फिल्मकार दीपा मेहता और अनीश कपूर के साथ मिलकर कुछ दिन पहले नरेंद्र मोदी के ख़िलाफ़ एक चिट्ठी लिखी थी जिसमें कहा गया था कि अगर नरेंद्र मोदी भारत के प्रधानमंत्री बनते हैं तो देश के भविष्य के लिए यह अच्छी बात नहीं होगी.
'मोदी में संभावना भी'
नरेंद्र मोदी का विरोध और उसकी वजहें अपनी जगह हैं, लेकिन देश के बाहर बैठे बुद्धिजीवियों में कई ऐसे लोग भी हैं, जिन्हें मोदी में एक नई संभावना नज़र आ रही है.
चाहे वो अमरीका की कोलंबिया यूनिवर्सिटी में पढ़ाने वाले प्रोफ़ेसर जगदीश भगवती हों या फिर लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से जुड़े रहे लॉर्ड मेघनाद देसाई.
लॉर्ड देसाई ने बीबीसी से कहा, "2002 के दंगों की बात को छोड़िए और उसके बाद के मोदी के करियर को देखिए. यह भी देखने वाली बात है कि हिंदू-मुस्लिम दंगों के मामले में सिर्फ़ बीजेपी दोषी नहीं बल्कि सब के सब हम्माम में नंगे हैं."
उन्होंने गुजरात दंगों के लिए केवल नरेंद्र मोदी को दोषी ठहराए जाने को भी सही नहीं माना और कहा, "अगर विकास के गुजरात मॉडल के लिए राज्य के लोगों को श्रेय दिया जाता है तो गुजरात के दंगों के लिए भी उन्हें ही दोषी ठहराया जाना चाहिए न कि केवल नरेंद्र मोदी को."
लॉर्ड देसाई का ये भी कहना है कि अगर अदालत मोदी को दोषी ठहराती है, तो वह सज़ा के हक़दार होंगे. लेकिन उससे पहले केवल गुजरात दंगों के आधार पर मोदी के शासनकाल की अच्छी बातों को ख़ारिज कर उनका विरोध करते रहना ठीक नहीं.
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