निशानेबाजी में नहीं लगता था मन
पूर्वी नेपाल के सीतलपट्टी गांव में जन्मे जीतू का बचपन धान के पौधे रोपते, आलू व मकई उगाते बीता। मगर किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। पिता की असमय मौत के बाद जीतू ने 2006 में भारत आने का फैसला किया। जहां वह भारतीय सेना की गुरखा रेजीमेंट का हिस्सा बन गए। नेपाल के अपने गांव से जिंदगी उसे नवाबों के शहर लखनऊ ले आई थी। पहले पहल निशानेबाजी में जीतू का मन नहीं लगा। फिर उन्हें प्रैक्टिस की आदत पड़ गई। निशाना अब सही जगह लग रहा था। वक्त बीतने के साथ जीतू को अहसास हो गया कि इसमें वह आगे निकल सकते हैं। उनका टैलेंट भी लोगों की निगाह में आ रहा था।
कई बार होना पड़ा था रिजेक्ट
एक दिन जीतू के प्रदर्शन से प्रभावित आर्मी अफसर उनके करीब आया। उसने उन्हें भारतीय सेना की मार्क्समैन यूनिट, महू का रास्ता दिखाया। बहरहाल कामयाबी यहां बांहे फैलाये उनका इंतजार नहीं कर रही थी। वह दो बार रिजेक्ट हुए। खराब प्रदर्शन के कारण कैंप से वापस भेज दिए गए। जीतू ने हार नहीं मानी। घरेलू टूर्नामेंटों में बेहतर प्रदर्शन करने के बाद उनकी वापसी हुई।
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अब गोल्ड मेडलिस्ट हैं जीतू
आखिरकार वह साल भी आया जब जीतू की किस्मत का सितारा चमक उठा। साल 2014, म्यूनिख आईएसएसएफ विश्व कप में जीतू ने नौ दिन के भीतर तीन मेडल जीते। हर कोई जानना चाह रहा था कि एक गोल्ड और दो सिल्वर मेडल जीतने वाला यह खिलाड़ी कौन है। उसी साल कॉमनवेल्थ गेम्स में भी जीतू ने गोल्ड मेडल जीता। 2014 में ही दक्षिण कोरियाई शहर इंचिओन में हुए एशियन गेम्स में जीतू ने एक सोने और एक कांसे का तमगा अपने नाम किया। 2016 में बाकू में आईएसएसएफ विश्व कप में सिल्वर मेडल जीतकर उन्होंने रियो ओलंपिक का टिकट कटा लिया। अपने पहले ही ओलंपिक में जीतू भारत की पदक की सबसे बड़ी उम्मीद हैं।
नोट: यह दास्तान जीतू राय से संबंधित विभिन्न साक्षात्कारों व समाचारों पर आधारित है।
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