टेक्सस के एल पासो शहर में बने इस जेल या प्रोसेसिंग सेंटर में बिना काग़ज़ात के अमरीका पहुंचे लोगों को हिरासत में रखा जाता है और क़ानूनी प्रक्रिया के बाद उन्हें अपने देश भेज दिया जाता है.
कैलिफ़ोर्निया स्थित नॉर्थ अमेरिकन पंजाबी एसोसिएशन (नापा) के एक सदस्य सतनाम सिंह चहल ने बीबीसी को बताया कि इनमें से ज़्यादातर लोग पंजाब से हैं और ये मॉस्को, हवाना, एल सल्वाडोर, ग्वाटेमाला और मेक्सिको के रास्ते यहां पहुंचे हैं.
इन लोगों ने जुलाई 2013 में अपनी यात्रा शुरू की थी लेकिन जब वे अमरीका पहुंचे तो उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया.
मदद की गुहार
चहल का कहना है कि तीन दिन पहले भूख हड़ताल पर बैठे लोगों में से एक ने उन्हें टेलीफ़ोन पर अपनी हालत बताई और मदद की गुहार की.
"हम एल पासो प्रोसेसिंग सेंटर को तीन ईमेल लिख चुके हैं लेकिन उनका कोई जवाब नहीं आया है. वहां से जैसे ही कोई जवाब मिलेगा हम टेक्सास के लिए रवाना हो जाएंगे."
-सतनाम सिंह चहल, सदस्य, नॉर्थ अमेरिकन पंजाबी एसोसिएशन
चहल ने बताया, "उसके बाद से हम एल पासो प्रोसेसिंग सेंटर को तीन ईमेल लिख चुके हैं लेकिन उनका कोई जवाब नहीं आया है. वहां से जैसे ही कोई जवाब मिलेगा हम टेक्सस के लिए रवाना हो जाएंगे."
एल पासो प्रोसेसिंग सेंटर की मीडिया प्रवक्ता ने बीबीसी को बताया कि फ़िलहाल वो इस पर कोई बयान नहीं दे सकतीं लेकिन एक बयान बहुत जल्द जारी किया जाएगा.
सतनाम सिंह चहल का कहना है कि जेल में बंद इन लोगों ने अपना मामला कैलिफ़ोर्निया की अदालत में तबादले के लिए अदालत में अपील की थी लेकिन वो मुक़दमा हार गए.
उन्होंने बताया कि जेल में क़ैद ये भारतीय कोशिश कर रहे थे कि किसी तरह से वे बाहर निकल सकें और इसलिए वे अपने गिरफ़्तार होने की ख़बर भी मीडिया के सामने नहीं लाना चाह रहे थे.
"पिछले तीन महीनों में क़ानूनी चक्कर में उनके दोस्त और रिश्तेदारों ने 30,000 अमरीकी डॉलर खर्च कर दिए हैं और आगे का रास्ता नज़र नहीं आ रहा."
-सतनाम सिंह चहल, सदस्य, नॉर्थ अमेरिकन पंजाबी एसोसिएशन
चहल का कहना था, "लेकिन पिछले तीन महीनों में क़ानूनी चक्कर में उनके दोस्त और रिश्तेदारों ने 30,000 अमरीकी डॉलर ख़र्च कर दिए हैं और आगे का रास्ता नज़र नहीं आ रहा."
आक्रामक रुख़
ओबामा प्रशासन के दौरान अमरीका के आप्रवासन नियमों में सुधार की काफ़ी कोशिशें हो रही हैं लेकिन ग़ै-रक़ानूनी तरीक़े से प्रवेश करनेवालों के ख़िलाफ़ काफ़ी सख़्त रवैया अपनाया जा रहा है.
प्रशासन की इस बात के लिए आलोचना भी हुई है कि उन्होंने पकड़े गए लोगों को वापस उनके देश भेजने में कुछ ज़्यादा ही आक्रामक रूख़ अपनाया है.
गिरफ़्तार लोगों में ज़्यादातर लातिनी अमरीकी देशों से होते हैं लेकिन पहली बार भारत से आए लोगों की इतनी बड़ी संख्या सामने आई है.
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