36 साल बाद:
जी हां रियो ओलंपिक में भारतीय महिला हॉकी टीम के कप्तान की भूमिका निभाने वाली सुशीला के हौसले बुलंद हैं। सुशीला की कप्तानी में महिला हॉकी टीम 36 साल बाद रियो में क्वालीफाई कर पाई है। सुशीला आज क्रिकेटर धोनी की राह पर चलते हुए नजर आ रही हैं। वह जिस तरह से हॉकी के मैदान पर अपना प्रदर्शन करती हैं उसी तरह से रेलवे में भी अच्छे से करती हैं। 25 साल की सुशीला मुम्बई रेलवे में टिकट कलेक्टर के तौर पर अपनी ज़िम्मेदारी निभा रही हैं।
सैलरी भी कटती:
1992 में मणिपुर के इम्फाल में जन्मी सुशीला के पिता ड्राइवर और मां एक हाउसवाइफ हैं। सुशीला को तनख्वाह के तौर पर केवल 26,000 रुपये मिलते हैं। सबसे खास बात तो यह देश की ओर से इतने बड़े स्तर पर खेलने के बाद भी इस प्रतिष्ठा को सुशीला इसे अपनी नौकरी में नहीं लाती हैं। वह हमेशा समय से अपनी ड्यूटी पर जाती हैं। इतना ही नहीं अगर कहीं खेल आदि के लिए वह छुट्टी लेती हैं तो इस पर उनकी सैलरी भी कटती है।
मां की मदद:
सुशीला का कहना है कि वह महिला होकर टिकट कलेक्टर के रूप में कभी डरती नही हैं। साथ ही वह कहती हैं कि यह नौकरी उन्हे यह नौकरी मजबूरी में करनी पड़ रही हैं। इसके अलावा उनके पास आय कोई मजबूत साधन नही है। हॉकी आदि में क्रिकेट जैसा स्पॉन्सर्स और पैसा न होने से खिलाड़ियों को काफी परेशानी होती हैं। वहीं सुशीला अपने घर पर एक सामान्य लड़की की तरह रहना पसंद करती हैं। वह अपनी मां की मदद करती हैं।
अच्छा प्रद्रर्शन:
बता दें कि सुशीला चानू जब 11 साल की थीं तब से हॉकी खेल रही हैं। सुशीला ने 2013 में हुए जूनियर हॉकी वर्ल्ड कप में शानदार प्रदर्शन किया था। इस दौरान इन्होंने बॉन्ज मेडल जीता था। वहीं सीनियर नेशनल टीम में आने के पिछले साल हुए हॉकी वर्ल्ड लीग टूर्नामेंट में भी उनकी टीम ने अच्छा खेला था। इस दौरान उनकी टीम सेमीफाइनल तक पहुंची थी। वहीं ऑस्ट्रेलिया में हुए चार देशों के टूर्नामेंट में भी सुशीला ने भारतीय महिला हॉकी टीम का कुशल नेतृत्व किया।
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