दरअसल सांगली ज़िले में शेटजाले गांव के रहने वाले 33 साल के आबासाहेब गायकवाड़ हाल ही एडिलेड में हुए ऑस्ट्रेलियन मास्टर गेम्स में तीन स्वर्ण पदक जीत कर लौटे हैं।

दो साल में एक बार होने वाले ऑस्ट्रेलियन मास्टर गेम्स में 25 देशों के खिलाड़ी भाग लेते हैं। आठ दिन तक चलने वाले इन खेलों में 30 साल या उससे अधिक आयु के खिलाड़ी ही भाग ले सकते हैं।

बस कंडक्टर जिसने दिलाए भारत को स्वर्ण

इस प्रतियोगिता में गोल्फ़, साइकिलिंग, तैराकी, एथलेटिक्स जैसी 60 से ज़्यादा खेल स्पर्धाएं होती हैं। इसमें क़रीब 19 हज़ार प्रतियोगी भाग लेते हैं।

आबासाहेब ने 30 से 35 वर्ष की श्रेणी में भाग लेते हुए डिस्कस थ्रो, शॉट-पुट और हैमर थ्रो में स्वर्ण पदक जीता।

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बीबीसी से उन्होंने कहा, "मुझे बचपन से ही खेलकूद में दिलचस्पी थी, लेकिन मेरे पिताजी के बाद घर की आर्थिक जिम्मेदारियां मुझ पर आ गई थी।"

आबासाहेब के पिता बस कंडक्टर थे। इस वजह से 18 साल की आयु पूरी होने पर सरकारी नियमों के तहत उन्हें वह नौकरी मिल गई।

आबासाहेब बताते हैं कि इन जिम्मेदारियों के बाद भी उन्होंने कभी खेल के प्रति लगाव को कम नहीं होने दिया।

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वो कहते हैं, "दिन में 9 घंटे कंडक्टर की नौकरी करने के बाद जो खाली समय मिलता है मैं उसमें अपनी ट्रेनिंग करता हूं।"

आबासाहेब ने 2013 में पहली बार मास्टर गेम्स में हिस्सा लिया था। उसमें उन्होंने दो स्वर्ण पदक जीते थे।

वो कहते हैं, "मैं पहले राज्य स्तरीय प्रतियोगिताओं में भाग लेता था फ़िर लोगों ने मुझे मास्टर गेम्स के बारे में बताया।"

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आबासाहेब को विदेश में हो रही प्रतियोगिताओं में भाग लेने के लिए उनके गांव के लोगों का भरपूर सहयोग मिला।

वो कहते हैं, "मैं ज़िंदगी भर लोगों के टिकट और छुट्टे पैसे काटता रह जाता अगर मुझे मेरे गांव वालों से प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए आर्थिक मदद नहीं मिलती।"

आबासाहेब के घर में उनकी पत्नी और दो बच्चों के अलावा कुल सात सदस्य हैं, जिनका उन्हें ख़्याल रखना होता है।

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इन अंतरराष्ट्रीय खेलों में भाग लेने के लिए आबासाहेब को कड़े प्रशिक्षण की ज़रूरत होती है लेकिन उन्होंने कभी किसी प्रोफेशनल कोच से प्रशिक्षण नहीं लिया।

वो कहते हैं, "मैंने इंटरनेट की मदद से अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ियों को खेलते देखा और वहीं से खेल की तकनीक भी सीखी।"

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आबासाहेब ओलंपिक और एशियन गेम्स में भारत का प्रतिनिधित्व करना चाहते हैं ताकि उन्हें लोग पहचान सकें।

उनका मानना है, "शायद तभी सरकार हमारे पास आएगी और हमारी कुछ मदद करेगी, हमें सही प्रशिक्षण के लिए आर्थिक मदद की बहुत ज़रूरत है।"

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