पाकिस्तानी सेना द्वारा प्रकाशित नए सैन्य सिद्धांत या सैन्य डॉक्ट्रिन में कहा गया है कि देश की पश्चिमी सीमाओं और कबायली क्षेत्रों में जारी गुरिल्ला युद्ध और तथा कुछ देश के भीतर लगातार बम हमले को देश के लिए सबसे बड़ा खतरा हैं.

सेना ने अपने नए दस्तावेज़ में पश्चिमी सीमा से उठे खतरे की बात कही है लेकिन अफगानिस्तान का नाम नहीं लिया है. इसी तरह से इस दस्तावेज़ में किसी चरमपंथी संगठन का नाम भी नहीं लिया गया है.

नीति नजरिया बदला

यह डॉक्ट्रिन सेना अपनी युद्ध तैयारियों की समीक्षा और योजनाओं को ज़रूरी दिशा में रखने के लिए प्रकाशित करती है. बीते कई दशकों से पाकिस्तानी सेना की ज़्यादातर तैयारियां और हथियारों की खरीद भारत से लड़ने के लिए की जाती रही हैं. लेकिन 11 सालों से लगातार देश के भीतर चरमपंथियों से लड़ने के बाद सेना के रणनीतिकारों को बदलती हकीकत का अहसास हुआ है.

पाकिस्तान सेना के सेवानिवृत लेफ्टिनेंट जनरल तलत मसूद ने बीबीसी से कहा " इससे तो लगता है कि सेना के अन्दर एक मूलभूत बदलाव आया है. जब से पाकिस्तान बना है सबसे बड़ा ख़तरा भारत को माना जाता रहा है .

वो ख़तरा अभी भी है लेकिन इतना बड़ा नहीं जितना की इन गुरिल्ला युद्ध लड़ने वालों से या उन लोगों और संगठनों से है जो अफगानिस्तान में पनाह लेते हैं और वह से पाकिस्तान पर हमला करते हैं." इस बार इसमें एक नया अध्याय जोड़ दिया गया है जिसे 'सब-कन्वेंशनल वारफेयर' या अर्ध पारंपरिक युद्ध का नाम दिया गया है.

हरी किताब

हरे रंग की किताब की शक्ल में छापा गया यह करीब 200 पन्नों का दस्तावेज़ पाकिस्तान में फौजी अफसरों केबीच में बांटा जाना शुरू हो गया है. जब इस बारे में सैन्य अधिकारियों से संपर्क किया गया तो उन्होंने कहा कि पाकिस्तानी सेना पारंपरिक और गैर पारंपरिक सभी प्रकार की चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार है.

पाकिस्तान में आज़ादी के बाद से कई नेताओं और सरकारों ने अलग-अलग समय पर भारत के साथ ताल्लुकात सुधारने के कोशिश की लेकिन पाकिस्तानी फ़ौज ने हमेशा भारत को देश के लिए सबसे बड़ा ख़तरा माना.

नवाज़ शरीफ के प्रधानमंत्रित्व काल में जब भारतीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई पाकिस्तान के दौरे पर गए तब तत्कालीन सेना अध्यक्ष जनरल परवेज़ मुशर्रन ने उन्हें सैल्यूट करने से इनकार कर दिया था.

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