कानपुर (इंटरनेट डेस्क)। भारत में मिशन मौसम प्रोजेक्ट के तहत एक क्लाउड चैंबर बनाया जा रहा है। ये क्लाउड चैंबर एक रिमोट कंट्रोल की तरह होगा, जिससे मौसम को कंट्रोल किया जा सकेगा। इस चैंबर की हेल्प से अपनी नीड के अकॉर्डिंग बारिश कम या ज्यादा की जा सकती है। केंद्र सरकार ने सितंबर में मिशन मौसम प्रोजेक्ट को अप्रूवल दी थी। दो हजार करोड़ रुपए की कॉस्ट वाला ये प्रोजेक्ट सिर्फ मौसम की जानकारी नहीं देगा बल्कि इस पर कंट्रोल भी करेगा। इसी प्लानिंग के साथ क्लाउड चैंबर बनाया जाएगा। बता दें कि चैंबर बनाने का काम पुणे के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मेटेरोलॉजिकल को दिया गया है।

क्या है क्लाउड चैंबर

मिशन मौसम के तहत बनने वाला क्लाउड चैंबर एक सिलेंडर या ट्यूब की तरह होगा। इसके अंदर स्टीम और एरोसोल फिल किया जाएगा। क्लाउड चैंबर में ह्यूमिडिटी और टेंपरेचर पर कंट्रोल करके बादल तैयार किए जाएंगे। वैसे तो कई देशों में बेसिक लेवल के क्लाउड चैंबर हैं। मगर भारत एक ऐसा क्लाउड चैंबर बनाने की कोशिश कर रहा है, जिससे बारिश के साथ-साथ क्लाउड्स की भी स्टडी की जा सके। इस क्लाउड चैंबर में एक कन्वेक्शन प्रॉपर्टी होगी। बादल बनने की एक प्रोसेस है, जिसमें गर्म हवा ऊपर की तरफ जाती है और ठंडी हवा नीचे जाती है। कन्वेक्टिव क्लाउड चैंबर में इसी प्रोसेस को आर्टिफिशियल तरीके से किया जाता है। इस तरह के एडवांस चैंबर बहुत ही कम देशों के पास हैं क्योंकि इनको बनाना और कंट्रोल करना काफी कॉस्टली होता है।

क्यों जरूरी है क्लाउड चैंबर

क्लाउड फिजिक्स में क्लाउड्स के बिहेवियर के बारे में समझा जा सकता है। बादल कैसे बनते हैं, काम करते हैं या फिर बादल कैसे फटते हैं। क्लाउड चैंबर से वेदर मोडिफिकेशन भी किया जा सकता है। ऐसा माना जा रहा है कि आने वाले दो सालों में सांइटिस्ट चैंबर के अंदर रखने लायक बेहद एडवांस सिस्टम तैयार कर लेंगे। बात करें क्लाउड सीडिंग की तो इस प्रोसेस में बादल बनाने पर फोकस किया जाता है। सीडिंग को लेकर देश में एक खास प्रोग्राम तैयार किया गया है। इसको क्लाउड एरोसोल एंड पार्टिसिपेशन एनहांसमेंट एक्सपेरिमेंट कहा जाता है। ये एक्सपेरिमेट महाराष्ट्र के सोलापुर में किया गया क्योंकि वहां पर कम बारिश होती है। क्लाउड सीडिंग की हेल्प से रेनफॉल 46 परसेंट तक इनक्रीज किया जा सकता है। हालांकि इसकी भी कुछ लिमिट्स हैं। बता दें कि मिशन मौसम प्रोजेक्ट के तहत नेक्स्ट जेनरेशन रडार और सेटेलाइट तैयार किए जाएंगे, जो मौसम को अल्टर करने के साथ ही कंट्रोल भी करेंगे।

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