दरअसल क़तर पर इन देशों ने आरोप लगाया है कि वह चरमपंथ फैलाने वाले इस्लामिक संगठनों की मदद कर रहा है, हालांकि ऐसे आरोपों से क़तर ने इनकार किया है। एक दौर ऐसा था जब क़तर खाड़ी देशों में सबसे ग़रीब था, लेकिन आज ये इलाके के सबसे अमीर देशों में शामिल है। क़तर की आमदनी का सबसे बड़ा स्रोत उसके गैस भंडार हैं।इसकी बदौलत उसने इलाके में तेजी से अपनी जगह मज़बूत की है। अफ़ग़ानिस्तान में शांति स्थापित की कोशिशों में दखल दिया है और 2022 के फ़ुटबॉल वर्ल्ड कप के आयोजन के लिए दावेदारी पेश की है।

कतर-अरब देशों के विवाद में भारत किधर?

 

भारत पर असर
लेकिन इस पाबंदी के क्या मायने हैं और इसका असर भारत पर क्या होगा? लंबे समय से भारत और क़तर के रिश्ते मधुर रहे हैं। मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले साल जून में दोहा की यात्रा की थी। उन्हें क़तर के शासक (जिन्हें अमीर कहा जाता है) एचएच शेख तमीम बिन हमाद अल थानी ने आमंत्रित किया था। हमाद अल थानी मार्च, 2015 में भारत आ चुके हैं। उनके पिता भी कई बार भारत आ चुके हैं। क़तर में बड़ी संख्या में भारतीय समुदाय के लोग रहते हैं। अब तो हज़ारों लोग ऐसे भी हैं, जिनका जन्म क़तर में ही हुआ है। क़तर में मौजूदा समय में करीब साढ़े छह लाख भारतीय रह रहे हैं। ऐसे में इन लोगों के जीवन पर इस पाबंदी का असर तो पड़ेगा। यहां रहने वाले लोग पहले की तरह से आसानी से अब सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात नहीं आ-जा पाएंगे। हालांकि भारत से सीधे दोहा जाने वाली फ़्लाइट पर्शियन गल्फ़ रूट से बिना प्रभावित हुए आ-जा सकेगी। जहां तक आर्थिक संबंधों की बात है, दोनों देशों के बीच आपसी कारोबार 15।67 अरब डॉलर का है। भारतीय कंपनियां क़तर के अहम रोड प्रोजेक्ट, रेल प्रोजेक्ट और मेट्रो प्रोजेक्ट पर काम कर रही हैं।

कतर-अरब देशों के विवाद में भारत किधर?

 

भारत किधर है?
लेकिन बड़ा सवाल ये है कि क़तर पर इस पाबंदी पर भारत किधर है। ये सवाल इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि भारत के सऊदी अरब से बेहतर रिश्ते रहे हैं। सऊदी अरब दुनिया भर में कच्चे तेल का सबसे बड़ा निर्यातक है। अबू धाबी और संयुक्त अरब अमीरात भी कच्चे तेल के सबसे बड़े निर्यातकों में शामिल हैं।

 

उधर, दूसरी ओर क़तर लिक्विफ़ाइड नैचुरल गैस का सबसे बड़ा निर्यातक है। ऐसी स्थिति में ज़ाहिर है कि भारत को मौजूदा संघर्ष तुरंत किसी का पक्ष लेने से बचना होगा। जब तक क़तर में रह रहे भारतीयों के जीवन पर बहुत ज़्यादा असर नहीं पड़े तब तक भारत के लिए संतुलित रवैया रखना ही बेहतर होगा।

International News inextlive from World News Desk

 

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