गणेशोत्सव के इस महापर्व के निमित्त महाराष्ट्र के अष्टविनायक मंदिरों की महत्ता और बढ़ जाती है। अष्टविनायक यानी ‘आठ गणपति’। इनके आठों अति प्राचीन मंदिरों को महाराष्ट्र के शक्तिपीठ ही माना जाता है। गणेश बुद्धि के देवता हैं इसलिए इन्हें साक्षात बुद्धिपीठ कहें तो गलत नहीं होगा। अष्टविनायक की सभी प्रतिमाएं स्वयंभू मानी जाती हैं। इन आठों अत्यंत प्राचीन मंदिरों का विशेष उल्लेख गणेश और मुद़ल पुराण जो हिंदू धर्म के पवित्र ग्रंथों का समूह है, में किया गया है। इन मंदिरों में गणपति की 8 स्वयंभू प्रतिमाएं विराजित हैं तथा इन पवित्र प्रतिमाओं के प्राप्त होने के क्रम के अनुसार ही अष्टविनायक की यात्रा भी की जाती है।
श्री मयूरेश्वर, मोरगा
ओंश्री मयूरेश्वर मंदिर या यूं कहे कि श्री मोरेश्वर मंदिर भगवान गणेश को समर्पित एक हिन्दू मंदिर है। भगवान गणेश जो गजमुखी बुद्धि के देवता कहलाते हैं, उनकी यह मंदिर पुणे जिले के मोरगांव में बना हुआ है। यह मंदिर महाराष्ट्र राज्य के पुणे शहर से 50 किलोमीटर की दूरी पर है। बता दें कि यह खास मंदिर भगवान गणेश के अष्टविनायकों का प्रारंभ और अंत बिंदु दोनों ही है। ध्यान रहें कि अष्टविनायकों की यात्रा के अंत में अगर आप मोरगांव मंदिर नहीं आते हैं, तो आपकी यात्री को अधुरा ही समझा जाएगा। यह मंदिर भगवान गणेश के अष्टविनायकों में से एक ही नहीं बल्कि भारत से प्राचीनतम मंदिरों में से भी एक मानी जाती है।
श्री सिद्धिविनायक, सिद्धटेक
सिद्धटेक में भीमा नदी के तट पर बसा सिद्धिविनायक मंदिर अष्टविनायको में से एक माना जाता है। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि अष्टविनायको में यह एकमात्र ऐसा मंदिर है, जहां पारंपरिक रूप से मूर्ति की सूंढ़ दाहिनी तरफ होती है और उसे सिद्धि-विनायक कहा जाता है। भगवान गणेश के अष्टविनायक मंदिरों में प्रथम मंदिर मोरगांव के बाद सिद्धटेक का ही नंबर आता है, लेकिन श्रद्धालु अक्सर मोरगांव और थेउर के दर्शन करने के बाद ही सिद्धिविनायक मंदिर के दर्शन करते है।
श्री बल्लालेश्वर, पाली
बल्लालेश्वर रायगढ़ जिला जो महाराष्ट्र के पाली गांव में स्थित भगवान गणेश के ‘अष्टविनायक’ शक्ति पीठों में से एक माना जाता है। यह एकमात्र ऐसे गणपति हैं, जो धोती-कुर्ता जैसे वस्त्र धारण किए हुए हैं क्योंकि उन्होंने अपने भक्त बल्लाल को ब्राह्मण के रूप में दर्शन दिए थे।
बता दें कि इस अष्टविनायक की महिमा का बखान ‘मुद्गल पुराण’ में भी विस्तार से किया गया है। दरअसल, मान्यता यह है कि बल्लाल नाम के एक व्यक्ति की भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान गणेश उसी मूर्ति में विराजमान हो गए थे जिसकी पूजा बल्लाल किया करते थे। बता दें कि अष्टविनायकों में बल्लालेश्वर ही भगवान गणेश का वह रूप है, जो भक्त के नाम से जाना जाता है।
श्री वरदविनायक, महाड
वरदविनायक देवताओं में प्रथम पूजनीय भगवान श्री गणेश का ही एक रूप है। वरदविनायक जी का मंदिर गणेश जी के आठ पीठों में से एक है, जो कि महाराष्ट्र राज्य में रायगढ़ ज़िले के कोल्हापुर तालुका में एक सुन्दर पर्वतीय गाँव महाड में स्थित है।
श्री चिंतामणि, थेऊर
चिंतामणी का मंदिर महाराष्ट्र राज्य में पुणे जिले के हवेली तालुका में थेऊर नामक गांव में स्थित है। बता दें कि भगवान गणेश का यह मंदिर महाराष्ट्र में उनके आठ पीठों में से एक माना जाता है। यह मंदिर थेऊर गांव मुलमुथा नदी के किनारे स्थित है और यहां भगवान गणेश ‘चिंतामणी’ के नाम से लोगों के बीच प्रसिद्ध हैं, जिसका अर्थ है कि “यह गणेश सारी चिंताओं को हर लेते हैं और मन को शांति प्रदान करते हैं।
श्री गिरिजात्मजा, लेन्याद्री
गिरिजात्मज मंदिर भगवान गणेश के अष्टविनायको में छठा मंदिर है, जो महाराष्ट्र जिले के पुणे के लेण्याद्री में बना हुआ है। लेण्याद्री एक प्रकार की पर्वत श्रंखला है, जिसे गणेश पहाड़ी भी कहा जाता है। बता दें कि लेण्याद्री में 30 बुद्धिस्ट गुफाए बनी हुई हैं। यही नहीं, गिरिजात्मज मंदिर, अष्टविनायको में से एकमात्र ऐसा मंदिर है जो पर्वतो पर बना हुआ है… जो 30 गुफाओ में से सांतवी गुफा पर बना हुआ है। जान लें कि भगवान गणेश के आठो मंदिरों को लोग पवित्र मानकर पूजा करते हैं।
श्री विघ्नेश्वर, ओजार विघ्नेश्वर
अष्टविनायक मंदिर की बात करें तो यह मंदिर महाराष्ट्र में कुकड़ी नदी के किनारे ओझर नामक गांव में स्थित है। यह भगवान गणेश के ‘अष्टविनायक’ पीठों में से एक मानी जाती है। बता दें कि बाकी अन्य मंदिरों की तरह ही विघ्नेश्वर का मंदिर भी पूर्वमुखी है और यहां एक दीपमाला भी है जिसके पास द्वारपालक हैं। मंदिर की मूर्ति पूर्वमुखी तो है ही व साथ ही सिन्दूर तथा तेल से संलेपित है। इस खास भगवान की मूर्ति के आंखों और नाभि में हीरा जड़ा हुआ है जो बहुत सुंदर प्रतित होता है।
श्री महागणपति, राजणगांव
महागणपति महाराष्ट्र राज्य के राजणगांव में स्थित भगवान गणेश के ‘अष्टविनायक’ पीठों में से एक है। कहते हैं कि ‘महागणपति’ को अष्टविनायकों में गणेश जी का सबसे दिव्य और शक्तिशाली स्वरूप है। यह अष्टभुजा, दशभुजा या द्वादशभुजा वाले माने जाते हैं। जान लें कि त्रिपुरासुर दैत्य को मारने के लिए गणपति बप्पा ने यह रूप धारण किया था और इसलिए इनका नाम ‘त्रिपुरवेद महागणपति’ नाम से लोगों के बीच काफी प्रसिद्ध है।
-ज्योतिषाचार्य पंडित श्रीपति त्रिपाठी
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