आगे की दिशा तय करने के पहले ब्रिटेन सरकार ने चुनाव कराने का निर्णय लिया।
ये चुनाव ब्रिटेन और यूरोपीय यूनियन के लिए तो अहम हैं ही, चुनाव नतीजों का ब्रिटेन-भारत संबंधों पर भी असर हो सकता है।
लेकिन ये असर कैसा और कितना होगा, ये जानने के लिए लंदन स्कूल ऑफ इकॉनॉमिक्स से जुड़ीं स्वाति ढींगरा के सामने बीबीसी ने पांच सवाल रखे।
भारत के लिए अहम क्यों?
'ग्लोबल ब्रिटेन' का नारा देने के बाद टेरीज़ा मे ने पहला दौरा भारत का किया था। भारत एक अहम ट्रेड पार्टनर है ब्रिटेन का।
लेकिन भारत-ब्रिटेन के बीच व्यापार काफ़ी कम है जिसे बढ़ाने की जरूरत है।
दोनों देशों को एक-दूसरे के सामान के आयात-निर्यात पर लगने वाले करों की कटौती करनी पड़ेगी। भारत को अपने कानून भी लचीले बनाने होंगे।
इसलिए भारत को ब्रेक्ज़िट की प्रक्रिया पर नज़र रखनी चाहिए कि ब्रिटेन के क्या विचार है।
अगर ब्रिटेन यूरोपियन यूनियन के कस्टम यूनियन में बना रहा तो भारत को ब्रिटेन की बजाए यूरोपीयन यूनियन से डील करनी पड़ेगी।
भारत-ब्रिटेन संबंधों पर असर?
भारत-ब्रिटेन रिश्ते पूरी तरह से चुनावी नतीजों पर निर्भर करता है क्योंकि ब्रिटेन की दोनों प्रमुख पार्टियों की राय अलग-अलग है।
लेबर या लिबरल डेमोक्रेट्स की जीत से ब्रिटेन यूरोपीय यूनियन के कस्टम यूनियन में बना रह सकता है। ऐसी सूरत में भारत-ब्रिटेन वार्ताओं की ज़रूरत ही नहीं पड़ेगी।
भारत को अपने हित का ख्याल रखना चाहिए। कई व्यापार संधियां ख़त्म हो रही हैं। आगे नए समझौतों में चौकन्ना रहना होगा।
भारत-ब्रिटेन व्यापार वार्ताएं आसान नहीं होंगी। ब्रिटेन चाहेगी कि कारों पर आयात कर कम किया जाए।
साथ ही वित्तीय सेवाओं और कानूनी फ़र्मों के भारत में प्रवेश की भी मांग हो सकती है।
पहले भी ये मांगें उठ चुकी हैं लेकिन भारत को अपने हितों का ख़ास ख़्याल रखना होगा।
व्यापार समझौतों पर असर?
ब्रिटेन अगर यूरोपीय यूनियन से निकलता है तो यूरोपीय यूनियन से व्यापार कम हो जाएगा। इसलिए ब्रिटेन को भारत से व्यापार करने की जल्दबाज़ी देखी जा सकती है।
ताकि यूरोपीय यूनियन से निकलने के बाद होने वाला नुकसान कम किया जा सके। लेकिन भारत-ब्रिटेन व्यापार वार्ता आसान नहीं है।
पिछली बार जब भारत यूरोपीय यूनियन वार्ता रुक गई थी तब टेरीज़ा मे ब्रिटेन की गृह मंत्री थीं और वो नहीं चाहती थीं कि भारत को अप्रवासन के मामले में कोई रियायत दी जानी चाहिए।
ब्रिटेन में अप्रवासन के ख़िलाफ़ लोगों की भावनाएँ हैं। भारत ने साफ़ किया है कि ये रवैया भारत के हित में नहीं है।
आप्रवासन पर असर?
कंज़र्वेटिव पार्टी यूरोपीय यूनियन के देशों से सिर्फ़ एक लाख तक आप्रवासियों को ही ब्रिटेन आने देना चाहती है।
इस वक्त ये संख्या दो लाख है और इसे कम करना काफ़ी बड़ी बात है।
इसका मतलब यह है कि इसका असर भारत, पाकिस्तान और और बांग्लादेश से आने वालों पर भी पड़ेगा।
लेकिन लेबर और लिबरल डेमोक्रेट्स आप्रवासन पर ढील देने को तैयार हैं।
भारत की तैयारी?
ब्रेक्ज़िट के बाद ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था धीमी पड़े जाएगी। यूरोपीय यूनियन पर ब्रेक्ज़िट का असर कम पड़ेगा क्योंकि वो एक बड़ी अर्थव्यवस्था है।
इसलिए भारत को ब्रिटेन और यूरोपीय यूनियन के रिश्तों पर नज़र रखनी चाहिए।
भारत और यूरोपीय यूनियन के बीच सबसे बड़ी अड़चन कृषि क्षेत्र की सब्सिडी को लेकर थी लेकिन भारत-ब्रिटेन रिश्तों में ये कोई अड़चन नहीं बनने वाली है।
हां, अप्रवासन को लेकर ब्रिटेन का रुख ज़रूर अड़चन पैदा करने वाला है। वहीं यूरोपीय यूनियन के लिए यह उतना अहम मुद्दा नहीं था।
(बीबीसी संवाददाता पवन सिंह अतुल से बातचीत पर आधारित)
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