गांधीजी एक बार रेल द्वारा उत्तर प्रदेश का भ्रमण कर रहे थे। सदा की तरह वे तीसरे दर्जे में बैठे हुए थे। उनके पौत्र कांति गांधी भी उनके साथ थे। गाड़ी तेज गति से चल रही थी।
गांधी जी अपने साप्ताहिक पत्रों 'यंग इंडिया', 'नवजीवन' के लिए लेख लिखने में व्यस्त थे। सहसा उन्होंने कांति से पूछा, 'कितना बजा है?' घड़ी देखकर कांति ने कहा, 'पांच बजे हैं।' तब तक गांधीजी की दृष्टि भी घड़ी पर चली गई। उन्होंने देखा कि पांच बजने में एक मिनट शेष है। उन्हें यह लापरवाही बहुत अखरी।
उन्होंने कहा कि पांच बजने में एक मिनट बाकी है। यदि ऐसा है, तो घड़ी रखने से क्या लाभ? तीस करोड़ मिनटों को जोड़ कर देखो कितने महीने और कितने दिन होते हैं? अगर पांच की जगह एक मिनट पांच कहते, तो क्या हो जाता? तुमने सत्य की अवहेलना कर ठीक नहीं किया।
गांधीजी व्यर्थ में एक पल भी नहीं गंवाते थे। उनका कहना था कि समय और सत्य दोनों रेल की पटरियों जैसे हैं, जिन पर मानव जीवन दौड़ता है। इसलिए हमें सत्यतापूर्ण विधि से ही समय के महत्व को जानना चाहिए।
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