फिर लग सकती है इमरजेंसी

आडवाणी ने एक अंग्रेजी अखबार को दिए साक्षात्कार में कहा कि भारत की राजनीतिक व्यवस्था अब भी आपातकाल के हालात से निपटने के लिए तैयार नहीं है। इसके साथ ही भविष्य में भी नागरिक अधिकारों के निलंबन की आशंका से इन्कार नहीं किया जा सकता है। वर्तमान समय में ताकतें संवैधानिक और कानूनी कवच होने के बावजूद लोकतंत्र को कुचल सकती हैं। आडवाणी ने कहा कि 1975-77 में आपातकाल के बाद के वर्षों में मैं नहीं सोचता कि ऐसा कुछ भी किया गया है जिससे मैं आश्वस्त रहूं कि नागरिक अधिकार फिर से निलंबित या नष्ट नहीं की जाएगी। उन्होंने कहा कि जाहिर है कोई भी इसे आसानी से नहीं कर सकता। लेकिन ऐसा फिर से नहीं हो सकता, कहा नहीं जा सकता है।

पॉलिसी स्तर पर कोई बदलाव नहीं

आडवाणी से यह पूछे जाने पर कि ऐसा क्या नहीं दिख रहा है जिससे हम समझें कि भारत में आपातकाल थोपने की स्थिति है, उन्होंने कहा कि अपनी राज्य व्यवस्था में मैं ऐसा कोई संकेत नहीं देख रहा जिससे आश्वस्त रहूं। नेतृत्व से भी वैसा कोई उत्कृष्ट संकेत नहीं मिल रहा। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र को लेकर प्रतिबद्धता और अन्य सभी पहलुओं में कमी साफ दिख रही है। आज मैं यह नहीं कह रहा कि राजनीतिक नेतृत्व परिपक्व नहीं है, लेकिन कमियों के कारण विश्वास नहीं होता। मुझे इतना भरोसा नहीं है कि फिर से आपातकाल नहीं थोपी जा सकती।

सुरक्षा कवच का अभाव

आपातकाल को एक अपराध के रूप में याद हुए आडवाणी ने कहा कि इंदिरा गांधी और उनकी सरकार ने इसे बढ़ावा दिया था। उन्होंने कहा कि ऐसा संवैधानिक कवच होने के बावजूद देश में हुआ था। आडवाणी ने कहा कि 2015 के भारत में पर्याप्त सुरक्षा कवच नहीं हैं। असंभव नहीं है कि एक दूसरे आपातकाल से भारत बच सकता है- 'ऐसा ही जर्मनी में हुआ था। वहां हिटलर का शासन हिटलरपरस्त प्रवृत्तियों के खिलाफ विस्तार था। इसकी वजह से आज के जर्मनी शायद ब्रिटिश की तुलना में लोकतांत्रिक अधिकारों को लेकर ज्यादा सचेत है। आपातकाल के बाद चुनाव हुआ और इसमें जिसने आपातकाल थोपी थी उसकी बुरी तरह से हार हुई। यह भविष्य के शासकों के लिए डराने वाला साबित हुआ कि इसे दोहराया गया तो मुंह की खानी पड़ेगी।

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