अपनी नई रिपोर्ट में एमनेस्टी ने कहा है कि देश के पश्चिमोत्तर क्षेत्र के कबायली इलाकों में तालिबान और सेना, दोनों ही लोगों को आतंकित कर रहे हैं.

रिपोर्ट में दावा किया गया है कि मानवाधिकारों का हनन करने वालों को कोई सजा भी नहीं होती क्योंकि वहां संवैधानिक सुरक्षा उपाय लागू नहीं होते हैं. कुछ कबायली इलाकों से सेना ने चरमपंथियों को निकाल दिया है, लेकिन ये कबायली जिले अब भी पूरी तरह सुरक्षित नहीं हैं.

एमनेस्टी इंटरनेशनल की पॉली ट्रसकोट का कहना है, “एक दशक तक चली हिंसा, उथल पुथल और संघर्ष के बाद अब भी कबायली समुदाय हमलों, अपहरण और दहशत का शिकार बन रहे हैं. उन्हें सुरक्षा नहीं दी जा रही है.”

‘क्रूरता के हाथ’ शीर्षक वाली इस रिपोर्ट में बताया गया है कि कैसे इन इलाकों में 'कानून को लेकर फैली वीरानीयत' मानवाधिकारों से जुड़े संकट को हवा दे रही है.

हिंसा का चक्र

रिपोर्ट में बताया है कि सैनिक कबालयी पुरूषों और लड़कों को लंबे समय तक मनमाने तरीके से हिरासत में रखते हैं. उन्हें न तो अपनी सुरक्षा के उपायों के बारे में जानकारी होती है और न ही उन तक उनकी पहुंच होती है.

हिरासत में कई लोगों की मौत के मामले में भी सामने आते हैं. जिन लोगों को हिरासत में लिया गया, उनमें से बहुतों ने अपने साथ उत्पीड़न होने के आरोप लगाए हैं. इन आरोपों की शायद ही कभी जांच होती हो.

एमनेस्टी का कहना है कि चूंकि संवैधानिक सुरक्षा उपाय कबयाली इलाकों में लागू नहीं होते हैं, इसलिए सैन्य अफसर कई नए सुरक्षा कानूनों के नाम पर वहां हिंसा कर रहे है और उन्हें इसके लिए कोई दंड नहीं मिलता है.

ट्रसकोट कहती हैं, “सशस्त्र बलों को बिना रोकटोक मानवाधिकारों के हनन की अनुमति दे कर पाकिस्तानी अधिकारियों ने उन्हें उत्पीड़न और लोगों को गायब करने की खुली छूट दे दी है.”

एमनेस्टी ने पाकिस्तानी सरकार से आग्रह किया है कि वो कबायली इलाकों के लिए अपनी कानूनी प्रणाली में सुधार करे, ताकि वहां ‘हिंसा के चक्र’ को रोका जा सके.

 


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