बेवजह का गुस्सा
कई बार पत्नी को समझ ही नहीं आता कि उनके पति को गुस्सा क्यों आता है। अक्सर अंतरग क्षणों में बेहद प्यार जताने वाले पति रोजमर्रा की जिंदगी में बेहद क्रूर हो जाते हैं। ये किसी भी पत्नी के लिए सबसे मुश्किल हालात होते हैं क्योंकि वो समझ ही नहीं पाती कि अब वो कैसे बिहेव करें और पति को कैसे डील करें क्योंकि जो इतना प्यार करता है वो इतना अलग व्यवहार कैसे कर सकता है। बल्कि यही समझ नहीं आता कि प्यार करता भी है या नहीं करता।
अपमान करना
कई बार पति ऐसा व्यवहार करते हैं जैसे उन्हें पत्नी का अपमान करके संतुष्टि मिल रही हो। खास कर अपने परिवार के सामने तो वो पत्नी को किसी गिनती में ही नहीं रखते भले ही अकेले में अपने बेडरूम में वे ये कहें कि मैं तुम्हें बहुत चाहता हूं पर ये बात उनके व्यवहार में नजर नहीं आती। पत्नी को डांटना, उनके काम में बुराई निकालना और उसे पारिवारिक निर्णयों से अलग थलग रखना या महत्वपूर्ण मामलों में उसकी राय ना लेना ये सब हिंसक व्यवहार के ही नमूने हैं क्योंकि इससे पत्नी अंदर ही अंदर टूटने लगती है। पर आप अगर अदालत में भी कहें कि आप को तलाक लेना है तो कोर्ट पूछती है कि क्या आपके पति मारते हैं, खर्चा नहीं देते। अब उपेक्षा की चोट का निशान कोई कैसे दिखाये।
मारपीट करना
ये तो हिंसा की चरम सीमा है। एक बार जिस पति का हाथ उठ गया फिर उसका रुकना बेहद मुश्किल है। मारपीट के बाद विकल्पों की तलाश लगभग खत्म हो जाती है। कई बार ऐसा होता है कि हिंसा करने के बाद पति बेहद अफसोस जाहिर करते हैं यहां तक कि रोते भी हैं कि उनसे गलती हो गयी पर अगली बार फिर वही होता है। क्योंकि ये एक मानसिक रोग या नशे की आदत जैसा हो जाता है।
फैसला करने से पहले खुद के बारे में जरूर सोचें
अक्सर महिलायें समाजिक और पारिवारिक दवाब के चलते या इमोशनल बांडिंग के चलते ऐसे इंसान के साथ समझौता करने को राजी हो जाती हैं। ऐसा वो कई बार करती हैं तब तक, जब तक या तो वो पूरी तरह बिखर जाती हैं या आगे बढ़ने के रास्ते बिलकुल बंद हो जाते हैं। ऐसे मामलों में विशेषज्ञों का कहना है कि कोई भी फैसला करते हुए एक बार अपने बारे में जरूर सोचें। जब परिवार या समाज आपके दर्द में आपका साथ नहीं दे पा रहा, आपको बचा नहीं पा रहा तो ऐसे दवाबों में अपनी सुरक्षा को नजर अंदाज करने में कहां की समझदारी है। याद रखिए आप दृढ़ता नहीं दिखायेंगी तो यातना का ये सिलसिला बंद नहीं होगा।
बच्चे को कमजोरी ना बनायें
अक्सर औरतें दलील देती हैं कि वो जब तक इन हालात को समझतीं तब तक वे प्रेगनेंट हो चुकी थीं और अब बच्चे के जन्म के बाद वो अपने बच्चे को पिता के प्यार से वंचित करने का अपराध नहीं कर सकतीं। ये एक कमजोर दलील है, जो इंसान अच्छा पति नहीं बन सका वो अच्छा पिता कैसे बनेगा और एक लाचार मां एक मजबूत व्यक्तित्व वाले बच्चे को कैसे विकसित करेगी। दूसरी बात आज आप पति के हाथें अपमानित हो रही हैं कल आप संतान के हाथों अपमानित होगी क्योंकि आपको अपमान सहने की आदत पड़ चुकी है और आपके बच्चों को आपको अपमानित होते देखने की। विशेषज्ञ कहते हैं कि ऐसी बोदी दलीलों से खुद को ना बहलायें सिंगल मदर हमेशा लाचार मां से बेहतर विकल्प है।
मनोवैज्ञानिकों और मैरिज काउंसलर की सलाह लें
यदि आपके पति आपसे एक मौके की मांग कर रहे हैं और उसके लिए दवाब भी बना रहे हैं तो बेहतर होगा कि आप उनसे मनोवैज्ञानिक और शादी के मामलों में सलाहकार के पास चलने के लिए कहें। क्योंकि हिंसा एक मानसिक विकार है और उसका इलाज जरूरी है। शादी बचाने की जिम्मेदारी भी अकेले आप की नहीं है बल्कि दोनों की है लिहाजा उन्हें कुछ एफर्ट डालने होंगे। इसके लिए मैरिज काउंसलर से बेहतर सलाह कोई नहीं दे सकता इसलिए उससे मिलें। याद रखें कि आप किसके पास जायेंगे ये फैसला आप करें क्योंकि आपके पति अपनी कन्वीनियंस के हिसाब से अपने चुने कांसलर या मनोवैज्ञानिक को फीडबैक पहले ही दे सकते हैं।
inextlive from Relationship Desk
Relationship News inextlive from relationship News Desk