सवाल अटपटे हैं। मगर इनके जवाब बेहद दिलचस्प। दुनिया में ऐसे बहुत से नामी लोग हुए हैं जिन्हें पहले कंपनी से निकाला गया या उन्होंने ख़ुद छोड़ दी। फिर कई साल बाद उन्हें फिर से उसी कंपनी ने वापस आने का बुलावा भेजा। कई मशहूर लोगों ने निजी ज़िंदगी में अपने साथियों को छोड़ा और कुछ वक़्त बाद उन्हें फिर अपनी ज़िंदगी में शामिल किया।
ऐसे नामों में मिसाल के तौर पर स्टीव जॉब्स और कलाकर फ्रीदा काल्हो के नाम सबसे ज़्यादा लिए जाते हैं। हॉलीवुड अभिनेताओं एलिज़ाबेथ टेलर और रिचर्ड बर्टन ने तो दो-दो बार शादी की और दो बार एक दूसरे से तलाक़ लिया।
वैसे भी किसी से दूर जाने पर, उसकी ख़ूबियों का एहसास, ज़्यादा होता है। कारोबार की दुनिया में वापस बुलाए जाने वाले ऐसे दिग्गज टीम लीडर्स को 'बूमरैंग सीईओ' कहा जाता है।
एलिज़ाबेथ टेल और रिचर्ड बर्टन ने दो बार एक दूसरे से शादी की।
आख़िर ऐसा क्यों होता है? और क्या इससे कामयाबी की, तरक़्क़ी की गुंजाइश बढ़ जाती है? चलिए पता लगाने की कोशिश करते हैं।
ब्रिटिश कारोबारी हैरी सोवर्बी की ही मिसाल लीजिए। अभी पिछले साल ही उन्हें ब्रिटिश मिलिट्री फ़िटनेस नाम की उस कंपनी का सीईओ फिर से बनाया गया। पंद्रह साल पहले हैरी ने अपने दोस्त के साथ मिलकर इस कंपनी को शुरू किया था।
अपनी बनाई कंपनी में फिर से लौटने का तजुर्बा कैसा रहा? ये पूछे जाने पर हैरी कहते हैं कि वो तो बहुत नर्वस थे। पंद्रह साल पहले जो कंपनी उन्होंने बनाई थी, उसकी हालत बदल चुकी थी। दुनिया बदल चुकी थी। ख़ुद हैरी बदल चुके थे। ऐसे में हैरी का नर्वस होना लाज़मी था।
हालांकि साल भर में ही हैरी की फ़िक्र दूर हो चुकी है। उन्होंने अपनी पुरानी कंपनी को तरक़्क़ी की नई रफ़्तार दे दी है। कंपनी के पुराने विज़न को लागू करके उन्होंने इसे फिर से कामयाबी की डगर पर ला खड़ा किया है। आज ब्रिटिश मिलिट्री फ़िटनेस, पूरे देश में हर हफ़्ते बीस हज़ार लोगों को फ़ौजी एक्सरसाइज़ की ट्रेनिंग देती है।
हैरी और उनके साथी ने 1999 में हॉलीवुड फ़िल्म, 'सेविंग प्राइवेट रेयान' में बहुत छोटे से रोल किए थे। वहां कलाकारों को फ़ौजी वर्ज़िश करते देख, उन्हें इसे कारोबार के तौर पर शुरू करने की सूझी। इसके बाद उन्होंने आम लोगों के लिए मिलिट्री ट्रेनिंग वाली वर्ज़िश देनी शुरू की। कंपनी का नाम रखा ब्रिटिश मिलिट्री फ़िटनेस।
आज की तारीख़ में हैरी की कंपनी पूरे ब्रिटेन में हर हफ़्ते क़रीब 140 ट्रेनिंग कैंप लगाती है।
कंपनी शुरू करने के तीन साल बाद उन्हें अफ़ग़ानिस्तान जाना पड़ा जंग लड़ने, फिर 2006 में उन्हें इराक़ के मोर्चे पर भी जाना पड़ा। उन्होंने कारोबार अपने साथी के हवाले किया और चल पड़े अपनी दूसरी ज़िम्मेदारी निभाने। एक फ़ौजी की ड्यूटी करने।
लेकिन 2014 में जब उनके साथी ने रिटायर होने का फ़ैसला किया। तो उनकी पुरानी कंपनी ने उन्हें फिर से आकर कमान संभालने की गुज़ारिश की। अपनी दूसरी पारी के बारे में हैरी कहते हैं कि कंपनी अपने मक़सद से भटक गई थी। मौज-मस्ती से काम करने की जगह बोरियत भरे रूटीन ने ले ली थी। दोबारा आने पर हैरी के पास असल जंग का भी तज़ुर्बा था। उन्होंने कंपनी का गेयर बदला। थोड़ी बहुत मरम्मत की और गाड़ी फिर दौड़ पड़ी।
पिछले कुछ सालों में अपनी पुरानी कंपनी में फिर से आने का ये चलन बढ़ा है। आख़िर इसकी क्या वजह हो सकती है? पुराने कर्मचारियों को फिर से क्यों बुलाया जाता है?
ब्रिटिश मैनेजमेंट कंपनी पीपुल अल्केमी के पॉल मैथ्यूज़ कहते हैं कि इसकी दो प्रमुख वजहें होती हैं। या तो कंपनियां अपने पुराने सीईओ के नए तजुर्बों का फ़ायदा उठाना चाहती हैं। या फिर वो उनके करिश्माई व्यक्तित्व की मदद से फिर से कामयाबी की राह पकड़ना चाहती हैं।
मैथ्यूज़ कहते हैं कि इस तरह की वापसी में ख़तरे भी हैं। वापसी करने वाले सीईओ को समझना चाहिए कि वक़्त बदल गया है। लोग बदल गए हैं। हालात बदल गए हैं। अब उनको ख़ुद को नए सिरे से साबित करना होगा। पुरानी चाल-ढाल और नुस्ख़ों से काम नहीं चलने वाला।
ट्विटर के प्रमुख जैक डोरसी को ऐसी ही चुनौती का सामना करना पड़ा था। ट्विटर की शुरुआत करने के बाद जैक को उसे छोड़कर जाना पड़ा था। शुरुआती कामयाबी के बाद कंपनी को फ़ेसबुक से तगड़ी चुनौती मिल रही थी। उसके कमाई के ज़रियों पर फ़ेसबुक क़ब्ज़ा कर रहा था। ऐसे ही चुनौती भरे माहौल में 2015 की शुरुआत में जैक को फिर से ट्विटर की कमान सौंपी गई थी। आज उन्होंने इसे फिर पटरी पर ला दिया है।
ऐसी ही मिसाल कंप्यूटर कंपनी लेनोवो के यान युआनकिंग की है जो 2009 में लेनोवो को छोड़कर चले गए थे। फिर कंपनी में उनकी वापसी हुई। 2011 में ऐसा ही गूगल के सीईओ लैरी पेज ने किया।
मगर सबसे अच्छी मिसाल तो एप्पल के सीईओ रहे स्टीव जॉब्स की है। जिन्हें अंदरूनी झगड़ों की वजह से 1985 में अपनी ही बनाई कंपनी एप्पल को छोड़कर जाना पड़ा था। फिर बारह साल बाद कंपनी को अपनी ग़लती का एहसास हुआ और स्टीव को सम्मान के साथ वापस बुलाया गया। अपनी दूसरी पारी मे जॉब्स बेहद कामयाब हुए। आज उन्हीं की वजह से एप्पल, दुनिया की सबसे नामी कंपनी है।
वैसे, घर वापसी करने वाले 'बूमरैंग सीईओ' सिर्फ़ आईटी सेक्टर में नहीं हैं। 2013 में कंज़्यूमर कंपनी प्रॉक्टर एंड गैम्बल ने अपने पुराने सीईओ एजी लैफ़्ले को फिर से बुलाकर कमान सौंपी थी। हालांकि अपनी दूसरी पारी में लैफ़्ले उतने कामयाब नहीं रहे, जितना पहली बार हुए थे।
ऐसे सीईओ की घर वापसी अक्सर अधूरे एजेंडे को पूरा करने के लिए होती है। ख़ास तौर से जब वो कंपनी की बुनियाद रखे जाने के वक़्त से ही उससे जुड़े रहे हों।
अक्सर इंसान अपनी पसंद की नौकरी या कंपनी को अलविदा कहकर जब आगे बढ़ता है तो आगे जाकर उसे कहीं न कहीं ये ख़याल भी आता है कि अगर पुरानी जगह पर होते तो शायद हालात बेहतर होते। अपनी पुरानी कंपनी में घर वापसी अच्छी ही लगती है। ख़ास तौर से जब पुराने साथी ही वापस आने की गुज़ारिश करें।
मगर इसमें ख़तरे भी हैं।
वापसी करने वालों को ये समझ लेना चाहिए कि जब वो कंपनी छोड़कर गए थे, तब से हालात बहुत बदल चुके हैं। अब कंपनी के भीतरी समीकरण बदल गए हैं। नए लोग आ गए हैं। चुनौतियां भी बदल चुकी होती हैं। ऐसे में घर वापसी करने वाले पुराने सीईओ को जल्द से जल्द बदले हुए हालात को समझ लेना चाहिए।
ऐसा ही अपना तजुर्बा बताती हैं अमरीकी कारोबारी ट्रैसी बिल्ड। उन्होंने बिल्ड एंड कंपनी के नाम से अपनी हेल्थकेयर कंपनी खोली थी। आठ साल तक ट्रैसी ने कंपनी की कामयाबी के लिए जान लड़ा दी। मगर, बाद में उन्हें थकान का एहसास होने लगा।
ऐसा लगने लगा कि वो ज़िंदगी के मज़े ही नहीं ले पा रही थीं। सो उन्होंने कुछ दिनों के लिए कंपनी से अलग होने का फ़ैसला किया। और 2014 में ट्रेसी ने किताब लिखने के लिए अपनी ही कंपनी को अलविदा कह दिया।
दो साल के ब्रेक के बाद ट्रेसी ने सीईओ के तौर पर कंपनी को फिर से ज्वाइन कर लिया। वो कहती हैं कि कंपनी के कर्मचारी और ग्राहक, दोनों को उनकी कमी महसूस हो रही थी। सो उन्होंने कंपनी में वापसी की। अपने साथियों और ग्राहकों से माफ़ी मांगी और ये वादा भी किया कि वो अब उन्हें छोड़कर कहीं नहीं जाएंगी।
न्यू साउथ वेल्स बिज़नेस स्कूल की असिस्टेंट प्रोफ़ेसर अलाना रैफ़र्टी कहती हैं कि कई बार कंपनी के संस्थापक टीम लीडर, अपनी कंपनी पर बहुत गहरी छाप छोड़ जाते हैं। उनके काम करने के तरीक़े, कंपनी का हिस्सा बन जाते हैं।
ऐसे में अगर वो कंपनी छोड़कर जाते हैं तो लोगों को उनकी कमी महसूस होती है। हालांकि वो ये भी कहती हैं कि वापसी करने वालों को बदले हुए हालात के हिसाब से ख़ुद में बदलाव कर लेना चाहिए, वरना नाकाम होने में देर नहीं लगती। ज़िंदगी भर की मेहनत से कमाई हुई शोहरत मिट्टी में मिल जाती है।
अलाना के मुताबिक़, अक्सर घर वापसी करने वाले सीईओ सोचते हैं कि वो वैसे ही काम कर सकते हैं जैसे पहले करते थे। मगर, वक़्त के साथ कामयाबी के नुस्ख़े भी पुराने पड़ चुके होते हैं। ऐसे में इन टीम लीडर्स को ख़ुद को नए सिरे से साबित करना होता है।
ब्रिटिश मिलिट्री फ़िटनेस के हैरी सोवर्बी ने इस बात को अच्छे से समझ लिया था। वापसी के वक़्त हैरी ने देखा कि बाज़ार में उनके मुक़ाबले में कई नई कंपनियां आ गई हैं। उनसे बेहतर फ़ौजी ट्रेनिंग दे रही थीं। सो हैरी ने अपनी कंपनी के बुनियादी उसूलों को फिर से ज़िंदा करने की ठानी।
मेहनत के साथ मौज मस्ती का पुराना फ़ॉर्मूला उन्होंने नए सिरे से लागू किया। इसके लिए उन्होंने पहले कंपनी के कर्मचारियों से बात की। उनकी राय लेकर उनका भरोसा जीतने की कोशिश की। इसमें उन्होंने छह महीने लगाए।
हैरी कहते हैं कि वापस आते ही नए कर्मचारियों को धमकाना और निकाल बाहर करना कोई अच्छी बात नहीं। इससे डर का माहौल पैदा हो जाता है। लोग दिल से काम नहीं करते। मगर जब आप कर्मचारियों से बात करके उनका भरोसा जीत लेते हैं तो आपकी राह आसान हो जाती है।
पुराने सीईओ को वापस आने का न्यौता देकर कई बार कंपनियां, अपनी ग़लती मानने का काम करती हैं। कामयाब टीम लीडर्स के लिए ये खोया हुआ सम्मान पाने जैसा है। जैसा एप्पल ने स्टीव जॉब्स के साथ किया था।
हैरी सोवर्बी ने ब्रिटिश मिलिट्री फ़िटनेस में आते ही सबसे पहले नौकरी छोड़कर जाने वालों को बेहतर भविष्य की शुभकामनाएं दीं थीं। मगर, बाक़ी कर्मचारियों से बात करके, उनका हौसला बढ़ाकर, हैरी ने कामयाबी की राह पकड़ी।
हालांकि सभी सीईओ की घर वापसी कामयाब ही हो, ये ज़रूरी नहीं। मसलन, ट्विटर के जैक डोरसी, अभी भी चुनौतियों से जूझ रहे हैं। प्रॉक्टर एंड गैम्बल के एजी लैफ़्ले के लिए भी वापसी उतनी कामयाब नहीं रही।
अब हर कोई तो स्टीव जॉब्स हो भी नहीं सकता। मैनेजमेंट गुरू मैथ्यूज़ कहते हैं कि अक्सर 'बूमरैंग सीईओ' के लिए राह मुश्किल ही होती है। क्योंकि उनसे अपनी पहले वाली कामयाबी दोहराने की उम्मीद की जाती है। इसके लिए उनके पास वक़्त भी कम होता है।
मगर, लोग नाकामी के डर से घर वापसी मतलब पुरानी कंपनी में वापसी तो नहीं बंद करेंगे।
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