धर्मिक कारण
व्रत-उपवास में अन्न जैसे गेहूं, चावल, दाल, विभिन्न सब्जियों आदि से परहेज किया जाता है। ऐसे समय में केवल फल मेवे और दूध दही को ही खाद्य माना जाता है। भगवान की भक्ति में अन्न आदि क्यों नहीं खाए जाते हैं, इसके पीछे धार्मिक कारण ये है कि इससे आध्यत्मिक शक्ति बढ़ती है। ज्ञान, विचार, पवित्रता बुद्धि का विकास होता है। इसी कारण व्रत को पूजा पद्धति को शामिल किया गया है। और स्वा्स्थ के नजरिए से देखें तो व्रत में सात्विकता से रहने और वासना से दूर रखने में मददगार फलाहार हमारे शरीर को सभी आवश्यक पौष्टिक तत्व तो देता ही है और बीमारियों से रक्षा भी करता है। हालाकि अन्न में काफी पौष्टिक तत्व होते हैं लेकिन साथ ही ये हमें आलसी भी बनाते हैं या हममें वासना जगाते हैं। अन्न खाने के पश्चात हम नींद व आलस्य महसूस करते हैं। जबकि भक्ति में अधिक ध्यान लगाने के लिए इस आदत से दूर रहना जरूरी होता है शायद इसीलिए व्रत-उपवास की परंपरा शुरू की गई। व्रत से शरीर तपा कर हम साधना कर पाते हैं और इच्छाओं का त्याग करते हैं ताकि हमारा मन भगवान में लग सके। अन्नह खाने के बाद हमारा मन इधर-उधर बहुत जल्दी भटक सकता है। जबकि फल खाने से हमारे शरीर को आवश्यक पौष्टिाक तत्व- तो मिलते ही हैं और हम ध्या न केंद्रित करना भी सीख जाते हैं।
वैज्ञानिक कारण
उपवास के दौरान अन्न न खाने के पीछे वैज्ञानिक कारण यह है कि हमारे शरीर के लिए कभी-कभी भूखा रहना भी फायदेमंद होता है। उपवास करने पर हम अन्नादि नहीं खाते हैं जिससे हमारे पाचन तंत्र को आराम मिलता है। व्रत के दौरान हम बहुत नियम से संतुलित खाना खाते हैं जो कि हमारी सेहत के लिए बहुत अच्छा रहता है। व्रत में नियम के अनुसार खाने से कब्ज, गैस, इनडाइजेशन, सिरदर्द, बुखार आदि बिमारियों का असर कम होता है। हम सही तरीके से कंसंट्रेट करना भी सीख पाते हैं। हमारा फिटनेस स्तर बढ़ जाता है जिससे हम एनर्जेटिक महसूस करते हैं।