1. सबसे पहले जांच-पड़ताल :-
आम आदमी से नागा साधु बनने तक का सफर आसान नहीं होता है। जब कोई इंसान नागा साधु बनने के लिए आता है, तो अखाड़ा अपने स्तर पर उसके व उसके परिवार के बारे में जांच-पड़ताल करता है। अगर अखाड़े को ये लगता है कि वह साधु बनने के लिए सही व्यक्ित है तो ही उसे अखाड़े में प्रवेश की अनुमति मिलती है।
2. ब्रह्मचर्य है पहली सीढ़ी :-
अखाड़े में आने के बाद आदमी के ब्रह्मचर्य की परीक्षा ली जाती है। इसमें 6 महीने से लेकर 12 साल तक लग जाते हैं। अगर अखाड़ा और उस व्यक्ित का गुरु यह सुनिश्चित कर लें कि वह दीक्षा लायक हो चुका है। तभी उसे अगली प्रक्रिया में ले जाया जाता है।
3. अब आती है महापुरुष बनाने की बारी :-
अगर व्यक्ित ब्रह्मचर्य का पालन करने की परीक्षा में सफलतापूर्वक गुजर जाता है। तो उसे ब्रह्मचारी से महापुरुष बनाया जाता है। उसके पांच गुरु बनाए जाते हैं। ये पांच गुरु पंच देव या पंच परमेश्वर (शिव, विष्णु, शक्ित, सूर्य और गणेश) होते हैं।
4. स्वंय का पिंडदान व श्राद्ध :-
महापुरुष के बाद नागाओं को अवधूत बनाया जाता है। इसमें सबसे पहले अपने बाल कटवाने होते हैं। अवधूत रूप में साधक स्वंय को अपने परिवार और समाज के लिए मृत मानकर अपने हाथों से अपना श्राद्ध कर्म करता है। ये पिंडदान अखाड़े के पुरोहित करवाते हैं।
5. नपुंसक किया जाता है :-
इस प्रक्रिया में साधु को नग्न अवस्था में 24 घंटे तक अखाड़े के ध्वज के नीचे खड़ा होना पड़ता है। इसके बाद वरिष्ठ नागा साधु लिंग की एक विशेष नस को खींचकर उसे नपुंसक कर देते हैं। इस प्रक्रिया के बाद वह नागा दिगंबर साधु बन जाता है।
6. गुरुमंत्र में ही आस्था :-
दीक्षा के बाद गुरु से मिले गुरुमंत्र में ही उसे संपूर्ण आस्था रखनी होती है। उसकी भविष्य की सारी तपस्या इसी गुरु मंत्र पर आधारित होती है।
7. भस्म और रुद्राक्ष :-
नागा साधुओं को भस्म एवं रुद्राक्ष धारण करना पड़ता है। भस्म और रुद्राक्ष ही एक तरह से इनके वस्त होते हैं। रोजाना सुबह स्नान के बाद नागा साधु सबसे पहले अपने शरीर पर भस्म रमाते हैं। यह भस्म भी जाती होती है।
8. पहले सकते हैं गेरुआ वस्त्र :-
नागा साधुओं को वस्त्र धरण करने की भी अनुमति नहीं होती। अगर वस्त्र धारण करने हों, तो सिर्फ गेरुए रंग के वस्त्र ही नागा साधु पहन सकते हैं। वह भी सिर्फ एक वस्त्र, इससे अधिक गेरुए वस्त्र नागा साधु धारण नहीं कर सकते।
9. एक समय भोजन :-
नागा साधु दिन में केवल एक ही समय भोजन करते हैं, वो भी भिक्षा मांग कर। एक नागा साधु को अधिक से अधिक सात घरों से भिक्षा लेने का अधिकार है। अगर सात घरों में कोई भिक्षा ना मिले तो उसे भूखा रहना पड़ता है।
10. जमीन पर ही सोना :-
नागा साधुओं को जमीन पर ही सोना होता है। पलंग, खाट या अन्य किसी साधन का उपयोग करना सख्त मना है।
11. किसी की निंदा न करना :-
बस्ती से बाहर निवास करना, किसी को प्रणाम न करना और न किसी की निंदा करना नागा साधुओं की दिनचर्या में शामिल है। यह केवल संन्यासी को ही प्रणाम कर सकते हैं।
12. नागाओं के पद एवं अधिकार :-
एक बार नागा साधु बनने के बाद उनके पद और अधिकार भी बढ़ जाते हैं। नागा साधु के बाद महंत, श्रीमहंत, तमातिया महंत, थानापति महंग, पीर महंत, दिगंबरश्री, महामंडलेश्वर और आचार्य महामंडलेश्वर जैसे पदों तक जा सकते हैं।
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