प्रत्येक जीवित प्राणी सुखी रहना चाहता है। सुखी रहने के लिए हम किसी वस्तु की खोज करते हैं, परंतु उसे प्राप्त करने के बाद भी हम सुखी नहीं रहते। विद्यालय जाने वाला छात्र सोचता है कि यदि उसे नौकरी मिल जाए, तो वह सुखी होगा। जो व्यक्ति अपने व्यवसाय या नौकरी में लगा है, सोचता है कि सुखी रहने के लिए जीवनसाथी हो। फिर सुखी रहने के लिए बच्चों की आवश्यकता होती है। जिनके बच्चे हैं, उनसे पूछो कि क्या वे सुखी हैं? उन्हें कैसे चैन मिल सकता है, जब तक उनके बच्चे बड़े न हो जाएं, अच्छी शिक्षा न प्राप्त करें और अपने पैरों पर खड़े न हो जाएं।
जो लोग सेवानिवृत्त हैं, वह उन दिनों को याद कर, उन्हें अच्छा कहते हैं, जब वे नौजवान थे। एक व्यक्ति का पूरा जीवन भविष्य में कभी प्रसन्न व सुखी रहने की तैयारी करने में बीत जाता है। आंतरिक रूप से प्रसन्न होने के लिए हमने अपने जीवन के जितने मिनट, घंटे या दिन बिताए हैं, केवल उन्हीं क्षणों में हमने जीवन को सही मायने में जिया है। जीवन को देखने के दो तरीके हैं, पहला- किसी उद्देश्य की प्राप्ति के पश्चात मैं सुखी होऊंगा। दूसरा- जो भी हो, मैं सुखी हूं। तुम इनमें से किस तरह से जीना चाहते हो?
जीवन 80 प्रतिशत आनंद और 20 प्रतिशत दु:ख है। लेकिन हम उस 20 प्रतिशत को पकड़कर बैठ जाते हैं। यह जानबूझकर नहीं होता, बस हो जाता है। आनंद, सजगता, सतर्कता और दया के क्षणों में जीना दिव्यता की प्राप्ति है। दूसरे तुम्हारे बारे में क्या सोचते हैं, इस बारे में मत सोचो और इसके अनुसार निर्णय मत करो। वे जो कुछ भी सोचते हैं, वह स्थायी नहीं है। दूसरे व्यक्तियों तथा वस्तुओं के बारे में तुम्हारी खुद की राय हर समय बदलती रहती है, तो फिर दूसरे तुम्हारे बारे में क्या सोचते हैं इसके लिए चिंता करने की क्या आवश्यकता है? चिंता करने से शरीर, मन, बुद्धि और सजगता पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। यह वह बाधा है जो हमें अपने आपसे बहुत दूर ले जाती है। यह हमारे अंदर भय पैदा करती है। भय प्रेम की कमी के अलावा कुछ नहीं है, यह अलगाव की तीव्र चेतना है।
हमेशा वर्तमान क्षण में जिएं
श्वसन क्रियाओं द्वारा विश्राम से, डर को नियंत्रित किया जा सकता है। तब तुम्हें अपने चारों तरफ एकरूपता मिलेगी। एकरूपता पाने के लिए तुम्हें शारीरिक रूप से कई वर्षों तक साधना नहीं करनी है। जब भी तुम प्रेम में हो और आनंद का अनुभव करते हो, तो तुम्हारा मन वर्तमान में होता है। किसी स्तर पर प्रत्येक व्यक्ति अनजाने में ध्यान करता है। ऐसे क्षण होते हैं, जब तुम्हारे शरीर, मन और श्वास में एकरूपता होती है, तब तुम योग को प्राप्त करते हो।
गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर
निर्भरता महज भ्रम के सिवा कुछ नहीं
ध्यान से तनाव होता है दूर, ऐसे प्राप्त होगा चेतना का उच्च स्तर
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