इस सप्ताह की शुरुआत में इस्तांबूल में पीएचडी की एक छात्रा दुयगू कुमरू ने जब अपना ट्विटर अकाउंट देखने के लिए मोबाइल उठाया, तो उन्हें पता चला कि उनके हज़ारों सहपाठियों ने प्रधानमंत्री के ख़िलाफ़ व्यंगपूर्ण टिप्पणी कर रखी हैं.
कुमरू ने बीबीसी को बताया, "मैंने यह देखने के लिए इंटरनेट का रुख़ किया कि प्रधानमंत्री ने असल में कहा क्या था. इसके बाद मुझे भी ग़ुस्सा आ गया."
प्रधानमंत्री रिजेप तैयप एर्दोगन ने लड़कों और लड़कियों के एक ही छत के नीचे रहने पर सवाल उठाते हुए कहा था, "मां-बाप कभी इसकी इजाज़त नहीं देंगे."
अपनी शुरुआती टिप्पणी में उन्होंने ऐसे सरकारी छात्रावासों की आलोचना की, जिनमें लड़के और लड़कियां साथ रहते हैं. बाद में उन्होंने कहा कि निजी छात्रावासों पर भी लगाम लगाई जानी चाहिए.
कुमरू खुद ऐसे घर में नहीं रहतीं, लेकिन उनकी कई सहेलियां हैं, जो खुशी-खुशी लड़कों के साथ रहती हैं.
सोशल मीडिया
उन्होंने कहा, "यह बेहद निजी मामला है." एक लाख से ज़्यादा लोगों ने इस पर ट्वीट किया है, जिनमें अधिकांश ने व्यंग्यात्मक लहजे में अपनी बात रखी है.
हाल के महीनों में राजनयिकों के विवादास्पद बयानों पर अपनी प्रतिक्रिया देने के लिए युवाओं ने सोशल मीडिया का इस्तेमाल किया है.
मई में गेज़ी पार्क प्रदर्शनों के बाद यह प्रवृत्ति ज़्यादा उभरी है. मई में एक पार्क को ढहाने के सरकारी फ़ैसले के ख़िलाफ़ युवा लामबंद हो गए थे.
रुढ़िवादियों का कहना है कि युवाओं का ऐसा व्यवहार देश के परंपरागत मूल्यों और इस्लामी संस्कृति के अनुरूप नहीं है. प्रधानमंत्री एर्दोगन पिछले 11 साल से सत्ता में हैं और उनकी उदारवादी इस्लामी पार्टी एके पार्टी बहुमत में है.
उनके समर्थक भी सोशल मीडिया पर अपना पक्ष रखने के लिए टूट पड़े हैं. उन्होंने लिखा, "आप तब समझेंगे, जब आपकी बेटी होगी."
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