पं राजीव शर्मा (ज्योतिषाचार्य)। श्रावण मास के शुक्लपक्ष की तृतीया को श्रावणी तीज कहते हैं, जन मानस में इसे हरियाली तीज,कजली तीज अथवा मधुश्रवा तीज के नाम से भी जाना जाता है।यह पर्व श्रावण शुक्ल तृतीया पराविद्दा तिथि को मनाया जाता है। इस त्योहार को माँ पार्वती के शिव से मिलन की याद में मनाया जाता है।ऐसी मान्यता है कि इस दिन ही विरहाग्नि में व्यथित देवी गौरां देवाधिदेव शिव से मिलीं थीं तथा आलिंगनबद्ध होकर प्रसन्नतापूर्वक झूम उठीं थीं।
मां पार्वती की पूजा
इस दिन महिलायें मां पार्वती की पूजा करती हैं नव विवाहिता महिलाएं अपने पीहर में आकर यह त्यौहार मनाती हैं,इस दिन व्रत रखकर विशेष श्रृंगार किया जाता है,नव विवाहिता वधुएं इस पर्व को मनाने के लिए एक दिन पूर्व से अपने हाथों एवं पावों में कलात्मक ढंग से मेहंदी लगातीं हैं,जिसे मेहंदी मांडणा नाम से जाना जाता है।इस पर्व पर विवाह के पश्चात पहला सावन आने पर नवविवाहिता लड़की को ससुराल में नहीं छोड़ा जाता है।हरियाली तीज से एक दिन पूर्व सिंजारा मनाया जाता है। इस दिन नवविवाहिता लड़की की ससुराल से वस्त्र,आभूषण,श्रृंगार का सामान,मेहंदी एवं मिठाई भेजी जाती है। इस दिन मेहंदी लगाने का विशेष महत्व है।
कैसे मनाएं तीज महोत्सव
इस दिन प्रातः काल आम एवं अशोक के पत्तों सहित टहनियां पूजा के स्थान के पास स्थापित झूले को सजाते हैं तथा दिनभर उपवास रखकर भगवान श्री कृष्ण के श्री विग्रह को झूले में रखकर श्रद्धा पूर्वक झुलाते हैं,साथ में लोक गीतों को मधुर स्वर में गाते हैं।इस दिन देवी माता पार्वती की ससज्जित सवारी धूम-धाम से निकाली जाती है।इस तीज पर तीन बातें तजने(त्यागने)का विधान है। 1.पति से छल -कपट। 2.झूठ एवं दुर्व्यवहार। 3.परनिन्दा। राजस्थान के जयपुर में तीज माता की सवारी निकाली जाती है और मेला लगता है।राजस्थान में घूमर आदि विशेष नृत्य किये जाते हैं।इस दिन कलात्मकता एवं विलासिता का भोगकारी ग्रह का विशेष प्रभाव रहेगा।