Harit Kranti in India: अगर कृषि वैज्ञानिक नार्मन बोरलॉग नहीं होते तो शायद देश में खाने के लाले पड़े होते। जी हां। उन्‍हीं की बदौलत भारत में अनाज का जरूरत से ज्‍यादा प्रोडक्‍शन होने लगा। एक आंकड़े के मुताअिक, पिछले कुछ दशकों में भारत के गेहूं के प्रोडक्‍शन में लगभग 1,000 फीसदी का इजाफा हुआ है। 25 मार्च 1914 को जन्‍मे एग्रीकल्‍चर साइंटिस्‍ट बोरलॉग को हरित क्रांति का जनक कहा जाता है।

अकाल पड़ने से लाखों लोगों की मौत

दरअसल, हरित क्रांति की शुरुआत से पहले देश में आजादी से पहले पश्चिम बंगाल में अकाल पड़ने से लाखों लोगों की मौत हो गई थी। दो दशक बीतने के बाद 1964-65 के आसपास भी देश में अन्न का संकट बरकरार था. फिर अकाल की नौबत आने लगी. इसके बाद भारत को बोरलॉग और गेहूं की नोरिन किस्‍म का पता चला। 1965 में गेहूं की नई किस्‍म के 18 हजार टन बीज आयात किए और कृषि क्षेत्र में कई बदलाव किए गए। देखते ही देखते अनाज का जरूरत से ज्‍यादा प्रोडक्‍शन होने लगा।

नोबेल शांति पुरस्‍कार

उन्हें इस असाधारण क्रांति के लिए 1970 का नोबेल शांति पुरस्कार के अलावा भारत में भी पद्मविभूषण से सम्मानित किया गया. 12 सितंबर 2009 को 95 वर्ष की उम्र में बोरलॉग का देहांत हो गया था।

दुनिया भर में ग़रीबी और भूख

वर्ष 2006 में फ़िलीपीन्स में एक सम्मेलन में उन्होंने कहा था कि दुनिया भर में अब भी बहुत से लोग ग़रीबी और भूख का सामना कर रहे हैं. इंसान की ये हालत विस्फोटक हैं और इन परेशानियों को हमें कभी भूलना नहीं चाहिए.


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