पंडित राजीव शर्मा (ज्योतिषाचार्य)। Ganesh Chaturthi 2021 : भगवान गणेश का वर्तमान स्वरूप गजानन रूप में पार्वती-शिव पुत्र के रूप में पूजा जाता है, यह उनका द्वापर युग का अवतार है, सतयुग में भगवान गणेश महोत्कट विनायक के नाम से प्रसिद्ध हुये थे, जिनका वाहन सिंह था। त्रेता युग में मयूरेश्वर के नाम से जाने गये, जिनका वाहन मयूर था। द्वापर युग का प्रसिद्ध रूप गजानन है, जिसका वाहन मूषक है और कलयुग के अन्त में भगवान गणेश का धर्मरक्षक धूम्रकेतू प्रकट होगा। भगवान गणेश धनप्रदायक भी हैं। इसलिए गणपति का प्रवेश एवं स्थापना शुभ मुहुर्त में करना श्रेष्ठ रहता है। इस बार गणेश चतुर्थी पर 'चित्रा नक्षत्र' में ब्रह्म योग का अति शुभ योग बन रहा है।
गणेश चतुर्थी का ब्रह्म में आना अति शुभ
इस दिन दिनांक 10 सितंबर 2021,शुक्रवार को चतुर्थी तिथि सूर्योदय से रात्रि 9:58 बजे तक, चित्रा नक्षत्र मध्यान्ह 12:57 बजे तक,ब्रह्म योग सांय 5:41 बजे तक तदोपरांत ऐन्द्र योग पूर्ण रात्रि तक, वृश्चिक लग्न पूर्वाह्न 11:12 बजे से अपराह्न 1:31 बजे तक भद्रा पूर्वाह्न 11:18 बजे से रात्रि 09:57 बजे तक (गणेश जी का जन्म क्योंकि भद्रा काल में हुआ था। अत: भद्रा काल का दोष नहीं मान्य है।) इस बार 10 सिंतबर 2021शुक्रवार भाद्र पद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी 'गणेश चतुर्थी' का 'ब्रह्म' में आना अति शुभ है। यह योग शुभ फल देने वाला, सूर्य स्वामित्व वाला, लक्ष्मी प्रदायक, उद्योग-व्यापार के लिए श्रेष्ठ है। इस योग में श्री गणेश जी की पूजा, वन्दना, साधना एवं व्रत से विद्या, बुद्धि, सम्पदा, रिद्धी-सिद्धि की प्राप्ति एवं सभी विघ्न बाधाओं का नाश होता है।
दिनांक 10 सिंतबर 2021, को निम्न शुभ मुहूर्त में करायें गणपति का प्रवेश
1.मुहुर्त:-प्रात: 6:15 बजे से 10:46 बजे तक (चर, लाभ,अमृत के चौघडिय़ा में)
2.अभिजित मुहूर्त,वृश्चिक लग्न:- - पूर्वाह्न 11:12 बजे से अपराह्न 01:31 बजे तक(सर्व श्रेष्ठ मुहूर्त)
(वृश्चिक लग्न/शुभ का चौघडिय़ा एवं अभिजित काल में)
3.मध्यान्ह 12:24 बजे से अपराह्न 2:05 बजे तक
(शुभ के चौघड़िया में)
तिथि निर्णय
मध्याह्न-व्यापिनी चतुर्थी को भाद्र शुक्ल चतुर्थी का व्रत किया जाता है। 1. यदि चतुर्थी दोनों दिन पूर्णतया मध्याह्न व्यापिनी हो अथवा बिल्कुल स्पर्श न करे तो यह व्रत पहले दिन होगा। 2. यदि चतुर्थी दोनों दिन समान या असमान रूप से मध्याह्न को व्याप्त करे तो भी पहले ही दिन व्रत होगा। 3. यदि चतुर्थी तिथि पहले दिन मध्याह्न का स्पर्श न करे तथा दूसरे दिन ही स्पर्श करें तो यह व्रत दूसरे दिन होगा। 4. यदि चतुर्थी तिथि मध्याह्न काल के एक भाग को स्पर्श करें एवं दूसरे दिन मध्याह्न काल मे पूर्ण रूप से व्याप्त हो तो यह व्रत दूसरे दिन ही किया जाएगा।
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