नई दिल्ली (एएनआई)। जैसा कि नाम से पता चलता है, 'गण + ईश' सभी देवताओं में वह प्रथम पूजनीय हैं और माना जाता है कि वे किसी के जीवन में बाधाओं को दूर करते हैं, इसलिए, लोग सभी महत्वपूर्ण कार्यों को शुरू करने से पहले हाथी के सिर वाले भगवान की पूजा करते हैं। यहां कुछ किस्से हैं जो वर्णन करते हैं कि कैसे मोदक, मुख्य 'प्रसाद' के रूप में पेश किए जाते हैं, वह कैसे उनकी पसंदीदा मिठाई बन गए।
भगवान गणेश का एक नाम मोदकप्रिय
भगवान गणेश के 108 नाम हैं, जिनका उल्लेख गणेश अष्टोत्रम में किया गया है, जिन्हें सामूहिक रूप से अष्टोत्तार शतनामावली के नाम से जाना जाता है। गजानन, महागणपति, विघ्नहर्ता, शिवप्रिय, पुराणपुरुष, विष्णुप्रिय उनमें से कुछ हैं। चूंकि भगवान गणेश को मोदक बहुत पसंद हैं, इसलिए 108 नामों में से एक मोदकप्रिय भी है।
भगवान गणेश के मोदक प्रिय बनने की पहली कथा
भगवान गणेश के बचपन के बारे में कई किस्से हैं जो न केवल रोमांचक हैं बल्कि उन्हें शरारती बच्चे के रूप में भी चित्रित करते हैं। ब्रह्म वैवर्त पुराण में से एक कम ज्ञात कहानी भी उनके जन्म की कथा कहती है। एक लोककथा में बताया गया है कि वह अपनी दादी मैनावती, राजा हिमवान की पत्नी और देवी पार्वती की मां के तैयार लड्डुओं को कितना पसंद करते थे। गणेश के जन्म ने देवी पार्वती और उनकी मां मीनावती दोनों के जीवन में खुशी, प्रेम और मातृत्व का संचार कर दिया। उन्होंने उन्हें बेहद लाड़ प्यार से पाला पोसा। अपने प्रेम की भेंट के तौर पर मैनावती गणपति के लिए विशेष रूप से लड्डू तैयार कर उन्हें कैलाश पर्वत भेजती थीं। वह न केवल खुद को मिठाई खिलाते थे, बल्कि इसे अपने 'मूषक सेना' के साथ भी साझा करते थे, जो वहां उनके एकमात्र सहयोगी थे।
जैसे-जैसे गणेश बड़े होते गए, लड्डुओं के प्रति उनका अनुराग इतना बढ़ गया कि उनकी भूख उनके बिना बेकाबू और अतृप्त हो जाती। लड्डु गणपति को प्रिय हैं, वह अपने हाथ में लड्डुओं से भरा कटोरा पकड़े हुए नजर आते हैं, जो प्रतीकात्मक महत्व रखता है और एक आध्यात्मिक संदेश देता है कि प्रत्येक को अपनी आत्मा की मिठास का पता लगाना चाहिए। एक दिन, पार्वती ने पाया कि कैलाश पर लड्डू खत्म हो रहे हैं और गणेश को खिलाने के लिए लड्डू नहीं बचेंगे, घबराई हुई पार्वती ने स्थिति से निपटने के तरीकों की तलाश शुरू की, मैनावती के महल से कैलाश तक अधिक लड्डुओं को शीघ्र लाने का कोई रास्ता नहीं मिल रहा था। अंतत: माता गणेश के लिए कुछ नया तैयार करने का उपाय लेकर आईं, जो भगवान शिव के साथ खेलने में व्यस्त थे। कुछ समय बाद, वह एक मिठाई बनाकर लाईं जो कि रंग में सफेद थी और लड्डू की तरह दिखती लेकिन अलग थी। देवी पार्वती ने अपने बेटे के लिए मोदक तैयार किए थे, जिसे उन्होंने बड़े आनंद के साथ खाया और कहा कि मोदक वह पकवान होगा जो उन्हें प्रसन्न करने के लिए उन्हें अर्पित किया जाना चाहिए।
भगवान गणेश के मोदक प्रिय बनने की दूसरी कथा
एक और कथा है कि देवता एक बार शिव-पार्वती के पास गए और एक मोदक भेंट किया। इस मोदक को खाने वाला व्यक्ति सभी शास्त्रों, विज्ञान, कला और लेखन में जानकार हो जाएगा। मां चाहती थी कि उनके दोनों बेटे, गणेश और कार्तिकेय के उसे बांटकर खाएं, लेकिन वे साझा करने के लिए तैयार नहीं थे। पार्वती ने एक परीक्षा लेने का निश्चय किया कि जो कोई भी उनके बीच ईमानदारी और भक्ति का सही अर्थ साबित करेगा उसे ही मिठाई मिलेगी।
भगवान कार्तिकेय ने बिजली की गति के साथ, सभी लोकों में सभी आध्यात्मिक स्थानों का दौरा किया, जबकि भगवान गणेश अपने माता-पिता के पास चले गए, और अपने माता-पिता के प्रति बिना शर्त प्यार दिखाया। अपने छोटे बेटे की सच्ची भक्ति के विचार से प्रभावित होकर, देवी पार्वती ने उन्हें मोदक दिया और इस तरह से वह उनका पसंदीदा बन गया। तब से, गणेश चतुर्थी पर भगवान गणेश को मोदक चढ़ाए जाते हैं और पारंपरिक रूप से अनुष्ठान के अनुसार चढ़ाए जाने वाले मोदकों की संख्या 21 से अधिक नहीं हो सकती है। गणेश की कृपा प्राप्त करके, हम सभी देवताओं की कृपा प्राप्त करते हैं। उनका आशीर्वाद सबसे शक्तिशाली कहा जाता है और यही एक कारण है कि इस अद्भुत देवता के प्रति भक्ति भाव से हर साल लोग उत्साह और भव्यता के साथ उनके घर आने का जश्न मनाती रहती है।
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