असली नाम था बलराज दत्त
सुनील दत्त का जन्म 6 जून 1929 को ब्रिटिश भारत में पंजाब राज्य के झेलम जिला स्थित खुर्दी नामक गाँव में हुआ था। उनका असली नाम बलराज दत्त था। मुंबई आने से पहले सुनील काफी समय तक लखनऊ में भी रहे। नवाबों के शहर लखनऊ की अमीनाबाद की गलियों में उन्होंने काफी वक्त गुजारा। बाद में ग्रेजुएशन के लिए वह मुंबई चले गए। यहां जय हिंद कॉलेज में पढ़ाई के दौरान सुनील मुंबई बस में कंडक्टर की नौकरी किया करते थे।
मुस्लिम परिवार ने बचाई जान
सुनील जब पांच साल के थे, तभी उनके पिता की मृत्यु हो गई थी। 18 साल की उम्र तक आते-आते भारत-पाकिस्तान के बंटवारे की लड़ाई छिड़ चुकी थी। उस समय युवा सुनील दत्त को कुछ समझ नहीं आया कि इन मुसीबतों से कैसे निपटा जाए। हिंदू-मुस्लिम की इस लड़ाई में चारों ओर हाहाकार मचा था। सुनील का परिवार भी हिंदू था, ऐसे वक्त उनके पिता के एक मुस्लिम दोस्त याकूब ने सुनील और उनके परिवार को अपने घर में शरण दी। यही वजह है कि सुनील दत्त मुस्लिमों के प्रति हमेशा सद्भावना रखते थे।
फिल्मों से पहले रेडियो में काम करते थे
सुनील दत्त ने अपना करियर एक रेडियो जॉकी के रूप में शुरु किया था। रेडियो सीलोन पर, जो कि दक्षिणी एशिया का सबसे पुराना रेडियो स्टेशन है। वहां सुनील एक उद्घोषक के रूप में काम करते थे। यहां वह काफी मशहूर भी हुए। उनकी आवाज के लोग दीवाने थे। एक सफल उद्घोषक में अपनी पहचान बनाने के बाद सुनील कुछ नया करना चाहते थे। बस फिर क्या था रेडियो की नौकरी छोड़, वह एक्टर बनने मुंबई चले आए। 1955 में बनी 'रेलवे स्टेशन' उनकी पहली फिल्म थी।
मदर इंडिया ने बना दिया स्टार
1957 की 'मदर इंडिया' ने उन्हें बालीवुड का फिल्म स्टार बना दिया। डकैतों के जीवन पर बनी उनकी सबसे बेहतरीन फिल्म मुझे जीने दो ने वर्ष 1964 का फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार जीता। उसके दो ही वर्ष बाद 1966 में खानदान फिल्म के लिये उन्हें फिर से फ़िल्मफ़ेयर का सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार प्राप्त हुआ। 1950 के आखिरी वर्षों से लेकर 1960 के दशक में उन्होंने हिन्दी फिल्म जगत को कई बेहतरीन फिल्में दीं जिनमें साधना (1958), सुजाता (1959), मुझे जीने दो (1963), गुमराह (1963), वक़्त (1965), खानदान (1965), पड़ोसन (1967) और हमराज़ (1967) प्रमुख रूप से उल्लेखनीय हैं।
हीरोईन को आग से बचाया और कर ली शादी
सुनील दत्त की शादी से जुड़ा एक रोचक किस्सा है। साल 1957 में महबूब खान की फिल्म मदर इण्डिया का शूटिंग चल रही थी। तभी वहां अचानक आग लग गई। फिल्म एक्ट्रेस नरगिस इस आग में झुलस गईं, तभी सुनील दत्त ने अपनी जान की परवाह न करते हुए नरगिस को बचा लिया। इस घटना से प्रभावित होकर नरगिस की माँ ने अपनी बेटी का विवाह 11 मार्च 1958 को सुनील दत्त से कर दिया।
पांच बार सांसद भी रहे
एक सफल अभिनेता और निर्देशक की पारी खेलने के बाद सुनील ने 1984 में राजनीति ज्वॉइन कर ली। वह कांग्रेस पार्टी के टिकट पर मुंबई उत्तर पश्चिम लोकसभा सीट से चुनाव जीतकर सांसद बने। वे यहाँ से लगातार पाँच बार चुने जाते रहे। उनकी मृत्यु के बाद उनकी बेटी प्रिया दत्त ने अपने पिता से विरासत में मिली वह सीट जीत ली। भारत सरकार ने 1968 में उन्हें पद्म श्री सम्मान प्रदान किया। इसके अतिरिक्त वे बम्बई के शेरिफ़ भी चुने गये। 25 मई 2005 को 76 साल की उम्र में सुनील दुनिया को अलविदा कह गए।
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