मुंबई। बॉलीवुड की फेमस एक्ट्रेस आशा पारेख आज  77 साल की हो गई हैं। फिल्मों में उनकी शानदार भूमिकाओं ने नए स्टैंडर्स स्थापित किए थे।पारेख ने हिंदी सिनेमा में अपने करियर की शुरुआत बाल कलाकार के रूप में की थी। 1952 में बिमल रॉय की फिल्म मां से उन्होंने दस साल की उम्र में अपना सेल्युलॉयड डेब्यु किया था। फिल्म दर फिल्म आशा ने अपने आप को स्टैब्लिश तो किया ही अपनी वर्सटैलिटी और टैलेंट को भी प्रूव किया।

डेब्यु के साथ मिली पहचान

नसीर हुसैन की फिल्म दिल दे के देखो में लीड रोल में डेब्यू करने साथ ही वे एक सनसनी तौर पर सामने आईं। फिल्म में शम्मी कपूर के जबरदस्त क्रेज के साथ उनकी ताजगी से भरी खूबसूरती के कांबिनेशन ने लोगों को दीवाना बना दिया। ये झूठ, प्यार और मिस्टेकन आइडेंटिटी की मजेदार कहानी थी, जिसमें उनका रोल बेहद खास था।

गंभीर एक्ट्रेस के तौर पर किया साबित

इसके बाद 1966 में राज खोसला की दो बदन आई, जो क्लास और इकोनॉमिक डिविजन के प्यार के रास्ते में दीवार बनने की कहानी थी। फिल्म में आशा की मनोज कुमार के साथ जोड़ी बनाई गई, और उनके रोमांस की इस दिल छूने वाली स्टोरी ने लोगों को आशा के भावप्रवण एक्सप्रेशन का दीवाना बना दिया। पारेख ने साबित किया कि वह न केवल यहां रहने के लिए बल्कि हिंदी सिनेमा के बेहतरीन कलाकारों में से एक के रूप में अपनी पहचान कायम करने आयी हैं।

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एक बार फिर छाया आशा का अंदाज

मिड की रिपोर्ट के अनुसार उसी साल उनकी सबसे लोकप्रिय फिल्मों में से एक, तीसरी मंजिल रिलीज हुई, जो एक म्यूजिकल ड्रामा थी। आर डी बर्मन के जादुई संगीत से सजी फिल्म की कहानी और एक्टर्स का काम व्यूअर्स को काफी पसंद आया। फिल्म सुपर हिट रही और एक बार फिर आशा के अनोखा अंदाज फैंस के सिर चढ़ कर बोला।

कामयाब स्टार के सामने किया खुद को साबित

अपने दौर के सुपर स्टार राजेश खन्ना के साथ आशा पारेख  1970 की स्मैश हिट, कटी पतंग में दिखाई दी थीं। फिल्म में वे राजेश के आगे कतई फीकी नहीं पड़ीं बल्कि उनकी प्रतिभा और भी खूबसूरती से उभर कर सामने आई। इस फिल्म में उनकी एक्टिंग एक और पहलू , जो खासा गंभीर था, लोगों को नजर आया।

छोटा रोल बड़ा असर

1978 में, उन्होंने अपने पहले निर्देशक, राज खोसला के साथ मैं तुलसी तेरे आंगन की में फिर से काम किया। इस फिल्म में उनकी भूमिका बेशक छोटी थी पर उसका असर बहुत ज्यादा था। लीड एक्ट्रेस नूतन के कंपेरिजन में कम स्क्रीन समय मिलने के बावजूद, पारेख ने साबित किया कि उनके अभिनय में गजब की गहराई है और इसलिए किरदार मायने रखता है उसकी लंबाई नहीं। इस फिल्म के लिए उन्हें 1979 में फिल्मफेयर अवार्ड्स में बेस्ट सपोर्टिंग रोल (फीमेल) के लिए नामिनेट भी किया गया था।

कई अवॉर्डस से सम्मानित

आशा पारेख को कई सम्मान और पुरस्कार मिले हैं। 1992 में, उन्हें भारत सरकार ने पद्म श्री से सम्मानित किया था। वह अब फिल्मों में अभिनय नहीं करती हैं, लेकिन वह वास्तव में हिंदी सिनेमा के बेहतरीन कलाकारों में से एक रही हैं जिन्होंने अभिनय के सुनहरे दौर को देखा था।

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