कानपुर। बताते हैं कि थिएटर में एक अभिनेता के रूप में अपनी पहचान बनाने की कोशिश करते हुए, अमरीश पुरी को मुंबई में सरवाइव करने के लिए नौकरी की आवश्यकता थी तब उन्होंने कर्मचारी राज्य बीमा निगम (ESIC) में नौकरी की थी। बाद में एक सफल खलनायक के तौर पर फेमस हुए। अमरीश पुरी ने करियर के दूसरे फेज में करेक्टर एक्टर के रोल्स में भी अच्छी खासी पाप्युलैरिटी गेन की।उनके कई डायलॉग बेहद फेमस हुए जाने ऐसे ही 10 संवाद।
डायलॉग नंबर वन- अमरीश पुरी का सबसे फेमस डायलॉग है फिल्म मिस्टर इंडिया का "मोगैंबो खुश हुआ"।
डायलॉग नंबर टू- दूसरे नंबर पर सबसे प्रसिद्घ संवाद फिल्म दिल वाले दुल्हनिया ले जायेंगे का है "जा सिमरन जी ले अपनी जिंदगी"।
डायलॉग नंबर थ्री- तीसरा डायलॉग है फिल्म दामिनी का "ये अदालत है कोई मंदिर या दरगाह नहीं, जहां मन्नते और मुरादें पूरी होती हैं। यहां धूपबत्ती और नारियल नहीं, बल्कि ठोस सबूत और गवाह पेश किए जाते हैं"।
डायलॉग नंबर फोर- एक और मशहूर डायलॉग है फिल्म विश्वात्मा का "थप्पड़ तुम्हारे मुंह पर पड़ा है और निशान मेरे गाल पर छपे हैं"।
डायलॉग नंबर सिक्स- फिल्म इलाका का ये डायलॉग भी काफी दमदार है, "गलती एक बार होती है, दो बार होती है, तीसरी बार इरादा होता है"।
डायलॉग नंबर सेवन- झूठ बोले कौआ काटे का ये संवाद आज भी बेहद रेलिवेंट है और इसीलिए फेमस है " पाप्युलेशन, पाल्युशन और करप्शन ये तीनों बीमारियां कपूत बेटों की तरह इस देश को खा जायेंगी"।
डायलॉग नंबर एट- फिल्म हकीकत का ये फेमस डायलॉग भी एक कड़वी सच्चाई है, "चोला बदल लेने से आदमी का चरित्र नहीं बदल जाता"।
डायलॉग नंबर नाइन- तहलका का ये डायलॉग आज भी लोगों की जुबान पर है, "डांग कभी रांग नहीं होता"।
डायलॉग नंबर टेन- आखीर में फिल्म फूल और कांटे का ये डायलॉग याद करना तो बनता है, "जहां तक मेरी आवाज पहुंच सकती है वहां तक मेरी गोली भी पहुंच सकती है"।
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