Happy Vasant Panchami 2020 : वसंत का मौसम नयेपन का प्रतिनिधित्व करता है और वसंत पंचमी पर देवी सरस्वती की पूजा करना हर काल के लिए उपयुक्त है। केवल ज्ञान के माध्यम से आप अपने आत्म तत्व को जान सकते हैं, जिसका अस्तित्व अनंत काल से है। ज्ञान, कला और ध्यान का सम्मान करने से जीवन में नई भावना का संचार होता है। सरस्वती ज्ञान की प्रतीक हैं और शिक्षा व्यक्ति का भीतर और बाहर दोनों ओर से पुनर्निर्माण करती है।
यही वजह है कि बच्चों को समग्र शिक्षा देनी चाहिए। यह वह प्रक्रिया नहीं होनी चाहिए, जिसमें दिमाग को केवल जानकारी से भर दिया जाता है। यदि शिक्षा ऐसे व्यक्तियों का निर्माण नहीं कर पाती है, जिनका व्यक्तित्व पूर्ण रूप से खिला हुआ है, जो शांत हों और जिनका संसार के प्रति एक दृष्टिकोण हो, तब शिक्षा का उद्देश्य पूर्ण नहीं हो पाता है। केवल कक्षा में आना और कुछ पाठ सीखना भर ही वास्तव में शिक्षा नहीं है, जो एक बच्चे को चाहिए। हमें बच्चे के शरीर एवम् मन के पूर्ण विकास की ओर ध्यान देना होगा क्योंकि ये आपस में जुड़े हुए हैं। मानव मूल्य, जैसे- अपनेपन की भावना, बांटना, प्रेम और देखभाल करना, अहिंसा एवम शांति को मन और शरीर के लिए पोषित करने की आवश्यकता है।
भारत में शिक्षक- विद्यार्थी या गुरु- शिष्य परंपरा के बारे में एक बहुत अजीब एवम् अद्वितीय विचार है जो हमारी प्राचीन शिक्षा पद्धति के आधार पर बना है। एक अच्छा गुरु शिष्य के लिए सदैव जीत की कामना करता है और एक अच्छा शिष्य, गुरु की विजय की कामना करता है, जो बड़े मन को दर्शाता है। गुरु केवल जानकारी नहीं देते हैं, बल्कि समग्र ज्ञान प्रदान करते हैं। ताकि शिष्य पूर्ण सामथ्र्य के साथ अपने जीवन को जी सके। शिष्य यह जानता है कि यदि उसका छोटा मन जीत जाता है, तो वह दुखी हो जाएगा लेकिन यदि गुरु जीत जाते हैं, तो यह बड़े मन की विजय होगी। ज्ञान की विजय होगी जो प्रत्येक व्यक्ति के लिए केवल भलाई और आनंद लेकर आएगी।तो शिष्य बड़े मन या गुरु की विजय की कामना करता है। यह अच्छा है, क्योंकि यदि शिष्य महसूस करता है कि वह गुरु से अधिक जानता है, तो इसका अर्थ है कि सीखना बंद हो गया है और वह अहंकार है, जिसने ज्ञान को नष्ट कर दिया है।
एक अच्छे शिक्षक में एक अन्य गुण होना चाहिए और वह है बहुत अधिक धैर्य।एक विद्यार्थी धीमी गति से सीखने वाला हो सकता है, लेकिन शिक्षक के धैर्य के कारण विद्यार्थी की प्रगति हो सकती है। माता- पिता को केवल एक या दो बच्चों को संभालना होता है लेकिन शिक्षक के सामने कक्षा में बहुत सारे बच्चे होते हैं। यह स्थिति अधिक परीक्षण वाली और तनावपूर्ण होती है। इस स्थिति को संभालने के लिए आपको केंद्रित होने की आवश्यकता है। आपको एक उदाहरण प्रस्तुत करना होगा, क्योंकि बच्चे आपको बहुत गौर से देखते हैं। वे अपने माता-पिता से केवल आधे ही मूल्य सीख पाते हैं और बाकी अपने शिक्षकों से सीखते हैं। आप जो भी कहते या करते हैं, बच्चे हर बात का निरीक्षण करते हैं। वे देखते हैं कि कब आप शांत होते हैं और कब आप तनाव में और क्रोधित होते हैं।
शिक्षकों को यह बात समझनी चाहिए कि विद्यार्थी कहां से आ रहे हैं और उनका कदम- कदम पर किस प्रकार से मार्गदर्शन करना है। उदाहरण के लिए भगवान कृष्ण बहुत अच्छे गुरु थे। वह अर्जुन को एक- एक कदम आगे बढ़ाकर अंतिम लक्ष्य तक ले गए। प्रारंभ में अर्जुन बहुत भ्रमित थे। जब एक विद्यार्थी का विकास हो रहा होता है, तो वह बहुत सारे भ्रमों से होकर गुजरता है, क्योंकि उसकी धारणाएं टूट रही होती हैं। आप सबसे पहले सीखिए कि सूर्य पूर्व दिशा से उदय होता है। फिर आपको ग्रहों और उनकी गति के बारे में बताया जाता है। तब आपकी धारणाएं टूट जाती हैं। एक अच्छा शिक्षक इस बात को जानता है और इस भ्रम में विद्यार्थी का मार्गदर्शन करता है और जब आवश्यकता होती है तो कभी- कभी भ्रम उत्पन्न भी करता है।
शिक्षक होने के नाते प्रेममय होने के साथ- साथ स त भी बनें। आप ऐसे शिक्षकों को देखेंगे जो प्रेममय हैं और ऐसे शिक्षकों को भी देखेंगे, जो केवल स त हैं। प्रेम का स ती के साथ मिश्रण - यह एक बहुत ही सुकोमल मेल है। कुछ बच्चे विद्रोही स्वभाव के होते हैं। उन्हें अधिक शारीरिक मौजूदगी, अधिक प्रोत्साहन और पीठ पर अधिक शाबाशी चाहिए होती है। उन्हें ऐसा महसूस कराने की आवश्यकता है कि उन्हें प्रेम किया जा रहा है, कि आप उनकी देखभाल कर रहे हैं, जिसकी उन्हें जरूरत है। दूसरी ओर वे बच्चे, जो बहुत डरपोक और शर्मीले हैं, उनके साथ आप थोड़ा स ती का प्रयोग कर सकते हैं, ताकि उन्हें खड़े होकर बोलने में मदद मिले। आप उनके साथ थोड़ा स ती बरत सकते हैं और आप प्रेमपूर्वक व्यवहार भी कर सकते हैं। प्राय: इसके विपरीत किया जाता है। शिक्षक विद्रोही स्वभाव वाले बच्चों से स ती से व्यवहार करते हैं और शर्मीले बच्चों के साथ उदार रहते हैं। फिर, वह व्यवहार बना रहता है। आपको स त और प्रेममय, दोनों बनने की आवश्यकता है, अन्यथा आप विद्यार्थियों का वहां तक मार्गदर्शन नहीं कर पाएंगे, जहां तक आप उन्हें ले जाना चाहते हैं।
- श्री श्री रविशंकर जी
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