इस प्रकार से अन्य पर्व व त्योहार यहां से जुड़े महत्वपूर्ण रहस्यों का उद्घाटन करते हैं। उसी प्रकार से 'बसंत पंचमी' का विशेष त्योहार भी अपने अंदर एक जीवन प्रेरणा लेकर आता है। माघ के महीने में मनाए जाने वाले इस त्योहार से हम अपने जीवन का सूक्ष्म कायाकल्प करना आरम्भ करते हैं।
शरीर के कार्यों का संचालन तो मन के विचारों पर निर्भर करता है इसलिए हमारे पूर्वजों ने भौतिक उन्नति से ज्यादा आध्यात्मिक व मानसिक
उन्नति को उत्तम समझा। इसलिए उन्होंने अपने मूल्यवान जीवन को इन्हीं खोजों में लगा दिया था कि मानव का मानसिक व आत्मिक विकास किस प्रकार से हो? इसीलिए बसंत पंचमी को मां सरस्वती का अर्थात विद्या का त्योहार कहा जाता है क्योंकि बिना विद्या और रुझान के मनुष्य पशु होता है। हमारे ऋषि- मुनियों के अनुसार उत्तम ग्रंथों के स्वाध्याय, सत्संग और रुझानोपार्जन के बिना विवेक की अनुभूति नहीं होती। बसंत के आगमन से जिस प्रकार से ऋतुु में परिवर्तन होना आरम्भ होता है, उसी तरह से हमारे जीवन में भी नवीन परिवर्तन का श्री गणेश होना चाहिए।
बसंत के दिन लोग पीले बसंती नए कपड़े पहनते हैं जो उज्ज्वल जीवन का प्रतीक है। इससे शोभा और सौंदर्य टपकता है और इसलिए ही सभी हर वर्ष अपने जीवन में सौंदर्य वृद्धि के लिए इस दिन विचार करते हैं और अपने भीतर की जो मलीनताएं हैं, उन्हें दूर करने का प्रयास करते हैं। इसी प्रकार से बसंत के दिन सरसों, अरहर व अन्य प्रकार के पीले फूल भी घर पर लाए जाते हैं जिनका अभिप्राय यही होता है कि हमारा जीवन भी इन फूलों जैसा आदर्श बनना चाहिए।
जिस प्रकार से फूल खिलता है, संसार को सुगंध देता है, वह किसी से कुछ मांगता नहीं है, निरंतर सिर्फ देने का स्वभाव बनाए रखता है, यहां तक कि जब मनुष्य उसके शरीर पर आघात करता है, तब भी वह दुखी नहीं होता। उसे क्षोभ नहीं होता है। तोड़ने वाले के ऊपर भी वह क्रोधित नहीं होता बल्कि शरीर त्यागने से पूर्व भी हंसते- हंसते देवताओं, महापुरुषों व विद्वानों के गले में सजावट का माध्यम बनता है। ठीक उसी प्रकार से हमारा जीवन भी फूलों जैसा तपोमय हो, उज्ज्वल हो, यही प्रेरणा बसंत पंचमी के इस महान त्योहार से हमें ग्रहण करनी है।
बसंत का त्योहार हमारे लिए पीले फूलों की जयमाला लिए खड़ा है किन्तु यह उन्हीं के गले में पहनाई जाएगी, जो लोग उस दिन से पशुता से मनुष्यता व अविवेक से विवेक की ओर बढ़ने का दृढ़ संकल्प करेंगे। स्मरण रहे, श्रेष्ठता का सम्मान करने वाला ही श्रेष्ठ होता है। आइए हम सभी बसंत के इस अवसर पर उत्तम मार्ग पर चलकर अपने जीवन को श्रेष्ठ बनाने का दृढ़ संकल्प करें।
- राजयोगी ब्रह्माकुमार निकुंजजी
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