कहानी :
हिंदी भाषी और थुलथुल माधव (अर्जुन कपूर) को स्पोर्ट्स कोटे में एक बड़े कॉलेज में एडमिशन मिलता है (लोल), उसको इंग्लिश नहीं आती, इसीलिए एक नज़र में उसे इंग्लिश की महाविद्वान रिया (श्रद्धा कपूर) से प्यार हो जाता है। रिया को खुद कुछ नहीं पता की वो क्या चाहती है, सच मानिए दर्शकों को भी फिल्म के अंत तक कुछ पता नहीं चलता की वो क्या चाहती है (दर्शक तो चैन से सो रहे थे)। माधव रिया का मेकअप बॉक्स बनकर उससे चिपक जाता है और रिया उसका खूब इस्तेमाल करती है, पर जब मेन मुद्दे (जिसके लिए अधिकतर भारतीय युवा, लड़के गर्लफ्रेंड या बॉयफ्रेंड बनाते हैं) पर बात पहुँचती है तो रिया वैसे ही काफूर हो जाती है जैसे गधे (माधव)के सर से सींग। रिया (जैसा की हमेशा होता है) गरीब लड़के को छोड़ कर अमीर एनआरआई से शादी कर लेती है और पगले माधव की मुलाक़ात कुछ साल बाद फिर रिया से होती है। अब फिर से सिंगल रिया उसकी हाफ गर्लफ्रेंड से फुल गर्लफ्रेंड बनती है? जानने की कोई ज़रुरत नहीं है!
Movie: Half Girlfriend
Genre : Unintentional Comedy
Director : Mohit Suri
Cast : Arjun Kapoor, Shraddha Kapoor and Vikrant Massey
Rating : 1- 1/2
स्क्रीनप्ले और निर्देशन :
उफ़ , ऐसी रेग्रेस्सिव फिल्में कब बनना बंद होंगी। फिल्म स्टीरियोटाइप किरदारों से भरी पड़ी हुई है। इश्क का मारा बेचारा हीरो, एक हेरोइन जिसने हीरो को फ्रेंडज़ोन किया हुआ है। एक सच्चा दोस्त जिसकी कोई भी बात हीरो को समझ नहीं आती , एक दुखियारी माँ (आपको राँझना याद आ गई होगी अब तक)। इस फिल्म की कहानी बिलकुल राँझना जैसी है, बस एक फर्क है। राँझना एक अच्छी फिल्म थी और ये फिल्म अझेल और महाबोर है। फिल्म में बे सर पैर की घटनाएं भरी पड़ी हुई हैं, जो आपने अब तक 300 फिल्मों में देख ली होंगी। फिल्म अजीब किस्म का टॉर्चर है। आप पैसे देकर हाल में बैठे होंगे और सीन बाई सीन फिल्म प्रेदिक्ट कर सकते हैं। किरदार बेहद छिछले हैं, उनमें कोई डेप्थ नहीं है और ना ही आपको इन किरदारों से प्यार होता है, और जब किरदारों से प्यार न हो तो ऐसा कभी नहीं हो सकता की आपको किसी भी कारण से फिल्म पसंद आ जाए। ये मोहित सूरी की अब तक की सब से वीक फिल्म है। फिल्म की सिनेमेटोग्राफी अच्छी है और एडिटिंग बेहद लचर।
अदाकारी :
जब जब बॉलीवुड पर 'नेपोटिज्म' (भाई भतीजा वाद) का इलज़ाम लगा है तब तब कुछ लोग उसके पक्ष में तो कभी विपक्ष में आये हैं। इस फिल्म को देख के लगता है की भाईभतीजावाद चरम पर है वरना अर्जुन कपूर को देख के कौन बोलेगा की वो एक ऐसे 'कॉलेजगोइंग' लड़के हैं, जो 'स्पोर्ट्स' कोटे से भर्ती हुए हैं तौबा ! ऐसे ही श्रद्धाकपूर हैं, रॉकऑन 2 के बाद से वो अपने आप को मडोना का अवतार समझने लगी हैं। उनकी एक्सेंट फेक लगती है और अदाकारी की तो पूछिए ही मत। मेरा दिल रो पड़ता है और आँख और कान से खून फूट पड़ता है, पहले मुझे लगा था की ये गर्मी की वजह से है, पर बाद में यकीं हो गया कि ये सब इस फिल्म में फेक-भोजपुरी और फेक-इंग्लिश सुन कर हुआ है। इस फिल्म में अगर किसी ने सच में अच्छी एक्टिंग की है तो वो हैं विक्रांत मेसी, उनहोंने मेसी स्क्रिप्ट के बावजूद ज़बरदस्त परफॉरमेंस दिया है। बाकी के किरदार बस ओके हैं।
हर मोहित सूरी फिल्म की तरह यही एक डिपार्टमेंट है जो फिल्म के हर एक डिपार्टमेंट से बेहतर है। संगीत बहुत अच्छा तो नहीं है पर हर मोहित सूरी फिल्म की तरह इस फिल्म में भी आशिकों के लिए गाने ही गाने हैं। आपका दिल टूटा हो तो आप भी 'मैं फिर भी तुमको चाहूँगा' को लूप पे लगा कर सुन सकते हैं और इंडियागेट पर आंसू बहा सकते हैं। रुदनक्रंदन करने के लिए ये एल्बम परफेक्ट है।
चेतन भगत जी, अगर ये सब जो इस फिल्म में दिखाया गया है, आपके साथ हुआ है। तो मुझे आपके साथ पूरी सहानुभूति है। पर ज़रूरी नहीं है की अपनी हर मूर्खतापूर्ण स्मृति पर आप किताब लिख डालें, और फिर उस किताब पर दर्शकों पर अत्याचार करती हुई एक फिल्म बनाई जाए। मेरे पास एक भी ऐसी वजह नहीं है, जिसके तहत मैं आपको ये फिल्म रीकोमेंड कर सकूं। पर फिर भी अगर आपके शहर में बिजली की समस्या है तो एसी हाल में सोने के लिए ये फिल्म कतई बुरी नहीं है, आपकी आँख सिर्फ तभी खुलेगी जब अरिजीत अपनी हाई पिच आवाज़ में रोना शुरू करेगा,यानि कि आप फिल्म के दौरान बिना डिस्टर्बेंस के आराम से सो सकते हैं।
Review by : Yohaann Bhaargava
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