कहानी
घर की बेटी विलायत से पढ़ कर वापस आती है, और उसका 'अपहरण' हो जाता है। केहरी सिंह को अपनी बेटी को वापस पाने के लिए अपने अतीत को खंगालना पड़ता है। क्या उसे अपनी बेटी वापस मिलती है या आस्तीन के सांप?

रेटिंग : ***१/२

 



दिल्ली के एनसीआर का एक अहम् हिस्सा है गुडगाँव जिसे पहले गुडगांवा कहते थे और आज इसका नाम गुरुग्राम है, नाम कुछ भी हो पर यहाँ का नज़ारा आज देखने लायक है, ऊँची ऊँची इमारतें और चमकती हुई ज़िन्दगी आज यहाँ एक अलग रंग में है।  पर हमेशा ऐसा नहीं था, कभी यहाँ लहलहाते हुए खेत थे और शहर और गाँव के बीच का ये हिस्सा एक नो मेंस लैंड की तरह हुआ करता था, रात का सन्नाटा यहाँ भयानक होता था, कहने को सब कुछ बदल गया। लोग अपनी ज़मीनें बेच कर अमीर हो गए पर कुछ ऐसा है जो नहीं बदला, यहाँ का काला सच। इस कहानी में एक अपहरण की आढ में एक ऐसे इंसान की कहानी है जिसका अपना ही ऐसा ही एक काला अतीत हैं। ये एक परिवार की कहानी है, जो फिल्म गॉडफादर की तरह शुरू होती है और फिर आपको रिश्तों,पैसे और पॉवर के बीच के द्वंद को दिखाती है। फिल्म का नैरेटिव अनुराग कश्यप स्कूल ऑफ़ फिल्ममेकिंग से इंस्पायर्ड लगता है। फिल्म का लुक एंड फील भी वैसा ही है। फिल्म डार्क है और काफी हार्ड हिटिंग भी है। ये थ्रिलर फिल्म, एक सोशल फिल्म है जिसने फॅमिली स्टोरी का चोगा पहना हुआ है।

अदाकारी
पंकज जी का क्या कहना,उनका काम तो हर फिल्म में ही अच्छा होता है, इस फल्म की भी वही जान हैं। अक्षय ओबेरॉय का काम भी बढ़िया है, रागिनी इस फिल्म का सरप्राइज़ पैकेज हैं । बाकी पूरी कास्टिंग बढ़िया है।

कुलमिलाकर अगर इस हफ्ते एक अच्छी फिल्म देखने का मन है, तो गुडगाँव एक अच्छा आप्शन हैं।

Review by : Yohaann Bhaargava
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