रिटायरमेंट की उम्र क्या हो सकती है- कहीं 58, कहीं 60, कहीं 65 लेकिन क्या एक 91 साल के आदमी को नौकरी मिल सकती है?
अगर आपका जवाब नहीं है तो आप ग़लत हैं. कैंब्रिज विश्वविद्यालय में 91 साल के डेविड पॉलेक को कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के गाइड का काम मिला है.
उनसे कहा गया, “अगर आप एक बार में तीन घंटे तक खड़े रह सकते हैं तो आप आवेदन कर सकते हैं.”
प्रिंट कर्मचारी और शेफ़ के रूप में रिटायर हो चुके डेविड पॉलेक किंग्स कॉलेज के गिरजाघर के सबसे उम्रदराज़ स्वयंसेवी हैं. यह उनका “सपनों का काम” है.
पॉलेक कहते हैं, “जैसे ही मैं आया उप-डीन भी आ गए- शायद यह देखने के लिए मैं जिंदा हूं और सांस ले रहा हूं.” वहीं कॉलेज का कहना है, “वह एक शानदार स्वयंसेवक हैं, उनके साथ जुड़ने पर हमें नाज़ है.”
'101 साल के हों तो भी स्वागत है'
नौकरी के लिए आवेदन देने पर पॉलेक ने बताया, “मैंने कुछ हफ़्ते पहले ही विज्ञापन देखा था. मैंने सोचा की यह अच्छी नौकरी होगी लेकिन मुझे अपनी उम्र को लेकर चिंता थी. उनका फ़ोन आया तो उन्होंने पूछा कि क्या मैं कुछ घंटे खड़ा रह सकता हूं और फिर उन्होंने मुझे आने को कहा.”
किंग्स कॉलेज के पर्सनल मैनेजर जोआन प्रेस्टन बताती हैं कि कुछ साल पहले सभी कर्मचारियों के लिए रिटायरमेंट की उम्र को ख़त्म कर दिया गया था.
वह कहती हैं,“हमारे कई कर्मचारी 65 साल से ज्यादा उम्र के हैं.” हाँ 91 साल के पॉलेक सबसे अधिक उम्र के स्वयंसेवक हैं जिन्हें नौकरी दी गई है. हम ऐसे किसी व्यक्ति को भी ले सकते हैं जिनकी उम्र 101 साल हो और वह यह काम कर सकते हों. मैं इस दिशा में काम कर रही हूं.”
डेविड पॉलेक ने बता कि आवेदन करने से पहले वह 467 साल पुरानी इमारत के बारे में ज़्य़ादा नहीं जानते थे. लेकिन फिर देश के कॉलेजों के गिरजाघरों में सबसे ज़्यादा चिन्हित इस इमारत के बारे में उन्हें पाठ्य सामग्री दी गई.
वह कहते हैं, “मैं बाकायदा नीले बैज वाला गाइड नहीं हूं. मैं छतरी हिलाने जैसा कोई काम नहीं करता. यहां आने वाले लोग मुझसे कुछ पूछते हैं तो मैं उनसे बात करता हूं और थोड़ा-बहुत हंसी-ठट्ठा करता हूं. अगर मैं कोई जवाब नहीं जानता तो मैं हमेशा उन्हें बताता हूं कि कॉलेज की नींव 1441 में रखी गई थी. कोई भी इस बारे में नहीं पूछता और उन्हें ख़ुश रखने के लिए यह जानकारी पर्याप्त लगती है.”
अकेला काम नहीं
पॉलेक एक अस्पताल के लिए धर्मार्थ काम भी करते हैं और केयर होम्स में रहने वालों के लिए समूह में गाते भी हैं.
वह कहते है कि लंदन में “शोरडिच की झुग्गियों” में बीते उनके बचपन को देखते हुए अपने इस नए काम तक उन्होंने बहुत लंबी यात्रा की है.
अंत में वो इतना ही कहते हैं, “मैं देखता हूं कि बुजुर्ग लोग अपनी आरामकुर्सी में बैठे हुए हैं और बस निढाल हो रहे हैं. मैं ऐसा नहीं करने वाला. मैं रिरिया कर नहीं बल्कि धमाके के साथ जाना चाहूंगा.”
International News inextlive from World News Desk