कानपुर (इंटरनेट डेस्क)। प्रतिवर्ष कार्तिक शुक्ल अष्टमी को यह पर्व मनाया जाता है।इस बार दिनाँक 22 नवंबर 2020,रविवार को कार्तिक शुक्ल अष्टमी गोपाष्टमी के रूप में मनाई जाएगी।यह गायों की पूजा का पर्व है।गायें भारतीय संस्कृति की जीवन प्राण हैं और संसार का सबसे पवित्र पशु है तथा देवतुल्य इन्हें माना जाता है।गाय के शरीर में सभी देवताओं का निवास माना जाता है।गाय के गोवर और गौमूत्र से लिपी भूमि,देव पूजा व यज्ञ के लिए सर्वोत्तम मानी गयी है।भगवान श्रीकृष्ण का "गोविंद" नाम इसलिए पड़ा क्योंकि उन्होंने गोपालन-गोसंरक्षण-संवर्दन व गो सेवा के प्रति सभी लोगों को प्रेरित किया था।
भगवान श्रीकृष्ण के समय से हो रहा पूजन
ऐसा भी माना जाता है कि गोपाष्टमी भगवान श्रीकृष्ण के समय से ही मनाई जाती है। इंद्र के प्रकोप से गोप-गोपियों और गायों को बचाने के लिए भगवान श्रीकृष्ण कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा से अष्टमी तक गोवर्धन पर्वत को धारण किये रहे।अंत मे इंद्र ने अपने अहंकार को त्यागकर भगवान श्रीकृष्ण से छमा याचना की और कामधेनु नाम गाय ने भगवान श्रीकृष्ण का अपने दूध से अभिषेक किया।श्रीकृष्ण ने भी उस दिन कामधेनु गाय की स्तुति की और गायों की रक्षा एवं पालन करने की प्रतिज्ञा की।सभी ग्राम वासियों ने भगवान श्रीकृष्ण की और सभी गायों की पूजा की इस उपलक्ष्य में ब्रज में उत्सव मनाया गया जो बाद में गोपाष्टमी के रूप में मनाया जाने लगा।इस दिन गाय, गोवत्स(बछड़ों) तथा गोपालों के पूजने का विधान है।
सभी मनोकामनाएं होती पूरी
शास्त्रों में कहा गया है कि जो व्यक्ति इस दिन गायों को ग्रास खिलाए और उनकी सेवा करें तथा सांय काल मे गायों का पंचोपचार से पूजन करे,तो व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं।आधुनिक युग में यदि हम गोपाष्टमी पर गौशाला के लिए दान करें और गायों की रक्षा के लिए प्रयत्न करें,तो गोपाष्टमी का कृत्य पूर्ण होता है और उसका पुण्य प्राप्त किया जा सकता है।
कैसे करें गायों की पूजा:-
इस दिन गायों को स्नान कराकर पैरों में मेहंदी आदि लगाकर श्रृंगार करें।गायों के सींगों में मुकुट आदि धारण कराएं,गायों की परिक्रमा कर उनके पैरों की मिट्टी को अपने सिर पर लगाएं।इस दिन गौशाला में विशेष आयोजन होते हैं।
ज्योतिषाचार्य पं राजीव शर्मा
बालाजी ज्योतिष संस्थान,बरेली