आकलन के लिए बने एक कमेटी
गांधी का कहना था कि पूर्व न्यायधीशों और कानूनविदों से अलग कुछ महत्वपूर्ण लोगों की एक कमेटी बनाकर सजा-ए-मौत और उसकी वैधता का आकलन करना चाहिए.
तो जिंदा होते भगत सिंह
उन्होंने तर्क दिया कि संसद और 26/11 के हमलावरों को फांसी पर लटकाने पर गौर करने की बजाए हमें इस बात पर गौर करना चाहिए कि अगर सजा-ए-मौत चलन में नहीं होता तो भगत सिंह 1947 के बाद भी जिंदा होते. भारत में होते.
अंतिम शब्दों पर हो अध्ययन
'लास्ट वर्ड्स एज दोज एट डेथ्स डोर स्पीक' पर आयोजित एक सेमिनार में गांधी ने कहा कि इस कमेटी को उन लोगों के अंतिम शब्दों पर अध्ययन करना चाहिए, जिन्हें फांसी पर लटका दिया गया था. यह आयोजन भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद् ने किया था.
अपनी बात के समर्थन दिखाया स्लाइड
अपने तर्क के समर्थन में उन्होंने एक स्लाइड दिखाया. उन्होंने विभिन्न युग और ऐतिहासिक हस्तियों के कथनों का भी जिक्र किया. इनमें अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति रॉबर्ट कैनेडी, मदर टेरेसा, अल्बर्ट आइंस्टीन, सरोजिनी नायडू तथा मोहम्मद अली जिन्ना भी शामिल थे.
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