करीब 17 साल बाद 15 अगस्त को वह वापस अपने माता-पिता के घर वापस पहुंचा दी गई.
15 अगस्त की सुबह से छोटे लाल यादव के यहां जश्न का माहौल था. वह पटना के फुलवारीशरीफ इलाके के सबजपुरा मोहल्ले में रहते हैं.
छोटेलाल यादव की इकलौती बेटी गुड़िया के सत्रह साल बाद घर वापसी से घर पर यह ख़ुशी का माहौल था.
गुड़िया असम के गुवाहाटी में रहने वाले दंपति नीलाक्षी शर्मा और राजू सिंह की कोशिशों से अपने घर वापस पहुंच पाई है. नीलाक्षी असम राज्य बाल संरक्षण समिति के लिए काम करती हैं और उनके पति राजू व्यवसायी हैं.
गुड़िया के बिछड़ने के बारे में छोटे लाल यादव बताते हैं, "वह अपने मामा अजित के साथ ट्रेन से गुवाहाटी जा रही थी. अजित बरौनी स्टेशन पर उतरे तो उन्हें प्लेटफॉर्म पर ही नींद आ गई और गुड़िया ट्रेन के साथ गुवाहाटी पहुंच गई."
इसके बाद लगभग 15 साल का लंबा समय गुड़िया ने गुवाहाटी और नवगांव के सरकारी शिशु गृहों में बिताया. फिर वह 2012 में नीलाक्षी और राजू के परिवार का हिस्सा बनी.
गुड़िया नीलाक्षी के घर तो आ गई लेकिन वह गुमसुम, उदास रहती थी. ऐसे में नीलाक्षी और राजू ने गुड़िया के परिवार को ढूंढ़ने का फैसला किया.
एक नाम और बिस्कुट फैक्टरी
गुड़िया को अपने अतीत के बारे में कुछ ही बातें याद थीं. गुड़िया बताती थी कि उनके पिता का नाम सतन राय है, जो एक बिस्कुट फैक्टरी में काम करते है. उसके घर के पास से रेल गुजरती है और घर के सामने एक कुम्हार का घर है.
इतनी सी जानकारी के सहारे ही दंपति ने गुड़िया का परिवार ढूंढना शुरू किया. उन्होंने पहले गूगल सर्च के सहारे बिहार की बिस्कुट फैक्टरियों की सूची निकाली और उसके साथ पिछले महीने के अंतिम सप्ताह में पटना आ गए.
पटना में उन्होंने राज्य चुनाव आयोग कार्यालय जाकर सतन राय नाम के ऐसे लोगों का ढूंढना शुरू किया जो इन बिस्कुट फ़ैक्टरियों के पास रहते थे.
फिर नाम और पतों के साथ उन्होंने मोकामा और हाजीपुर जाकर नए-पुराने बिस्कुट फैक्टरियों वाले इलाके में जाकर गुड़िया के परिवार को ढूंढने की कोशिश की. लेकिन उन्हें वहां निराशा हाथ लगी. लेकिन दंपति ने हिम्मत नहीं हारी.
गूगल के सहारे आगे बढ़ी खोज
वापस गुवाहाटी पहुंचकर दंपति ने गूगल के सहारे नालंदा बिस्कुट फैक्टरी के निदेशक सुनील अग्रवाल का नंबर खोजा और उन्हें फोन किया. संजय ने पूरी बात धैर्य से सुनी और दस ही मिनट बाद उन्होंने वापस फोन कर बताया कि सतन राय नहीं लेकिन सत्येंद्र राय नाम का उनका एक कर्मचारी है.
साथ ही उन्होंने यह भी बताया कि सत्येंद्र का मकान मालिक छोटेलाल यादव भी उनकी ही फैक्टरी में काम करता है और छोटेलाल यादव की बेटी भी 1996 में गुम हो गई थी.
इसके बाद दंपति ने ई-मेल के जरिए छोटेलाल और उनकी पत्नी पंजीरिया देवी की तस्वीर मंगाई. और फिर चेहरा, घटना क्रम और छोटेलाल यादव के घर के आस-पड़ोस की तस्दीक करने के बाद उन्हें यह यकीन हो गया कि गुड़िया छोटेलाल की ही गुम हुई बेटी है.
गुड़िया इस तस्वीर में असम बाल संरक्षण समिति में काम करने वाली नीलाक्षी शर्मा के साथ दिख रही है.
इस सबके बाद अगस्त के शुरुआत में छोटे लाल अपनी पत्नी और बेटे के साथ गुवाहाटी जाकर गुड़िया से मिल भी आए.
मामा का कलंक धुला
गुड़िया की मां पंजीरिया देवी की आंखें 17 साल पहले के दर्दनाक वाकये को याद कर आज भी भर आती हैं. वह बताती हैं कि इस हादसे के बाद उनके छोटे भाई अजित ने उनके पैरों पर गिरते हुए कहा था कि उनसे बहुत बड़ी ग़लती हो गई है और हर सज़ा उन्हें कबूल है.
गुड़िया के भाई अजय बताते हैं कि इस घटना के बाद उनके मामा अशांत रहने लगे थे और बहुत दिनों बाद जाकर उनकी ज़िंदगी सामान्य हो पाई थी.
लेकिन अब जैसे ही गुड़िया के वापस मिल जाने की ख़बर उन्हें मिली तो उनके मुंह से बस इतना ही निकला कि उनके 'माथे का कलंक मिट गया'.
अजित बिहार के आरा में रहते हैं और अभी गुड़िया से मिलने नहीं आ पाए हैं.
वापस खींच रहा है गुवाहाटी का प्यार
गुड़िया टूटी-फूटी हिंदी में बात कर पाती हैं जिस पर असमिया लहज़ा साफ दिखाई देता है. वह बताती हैं कि सत्रह साल बाद भी उन्हें माता-पिता को पहचानने में परेशानी नहीं हुई लेकिन पांच भाइयों में से केवल वह सबसे बड़े भाई को ही पहचान सकीं.
गुड़िया को माता-पिता का घर मिला है तो उसका एक घर छूटा भी है. गुड़िया कहती हैं कि उन्हें माता-पिता से मिलने की ख़ुशी है तो गुवाहाटी का घर छूटने का दुख भी है.
बकौल गुड़िया वह पटना वाले घर पर आती-जाती रहेगी लेकिन वह गुवाहाटी में ही रहेगी.
गुड़िया की चाहत और उसे चाहने वालों की सोच के बीच यह देखना दिलचस्प होगा कि सत्रह साल बाद पुराने रिश्तों के साथ सहज रुप से जिंदगी शुरू करने में गुड़िया को कितना समय लगता है.