नई दिल्ली (पीटीआई)। 20 वीं सदी के सबसे प्रमुख लेखकों और कवियों में से एक, प्रीतम को उनकी पंजाबी कविता 'अज अखाखें वारिस शाह नू' ('ओड टू वारिस शाह') के लिए सबसे याद किया जाता है, जिसमें 1947 के भारत विभाजन के दौरान हुए नरसंहार को लेकर उनकी पीड़ा का अहसास होता है।
अविभाजित भारत के पंजाब प्रांत में जन्म
31 अगस्त, 1919 को अविभाजित भारत के पंजाब प्रांत के गुजरांवाला (अब पाकिस्तान में) में उनका जन्म हुआ, वह विभाजन के बाद भारत चली आईं।
डूडल में, कवयित्री लेखिका को एक पारंपरिक पंजाबी सलवार सूट पहने हुए दिखाया गया है, जो गुलाब के एक गुच्छे के साथ बैठी है और डायरी में कुछ लिख रही है।
साहित्य में विभाजन का दर्द
'अज अखाखें वारिस शाह नू' 18 वीं शताब्दी के कवि में, वह विभाजित हो रहे लोगों और देश की पीड़ाओं को पकड़ती हैं, कविता की एक पंक्ति हैं जिसमें वह लिखती हैं- 'उठो, पीड़ितों के दोस्त; पंजाब राज्य को देखें, लाशें खेतों पर बिखरी हुई हैं, और चनाब में बहुत खून बह रहा है'। उनके ढेरों उपन्यासों में से, विभाजन की पृष्ठभूमि में लिखे गए 'पिंजर' (कंकाल), एक यादगार चरित्र 'पूरो' के साथ, इस विषय पर लिखे गए सबसे अच्छी रचनाओं में से एक मानी जाती है। उपन्यास को बाद में 2003 में एक पुरस्कार विजेता फिल्म 'पिंजर' में रूपांतरित किया गया।
पद्म विभूषण से सम्मानित
1947 में विभाजन के समय वह नई दिल्ली चली आईं, जहां उन्होंने SAWNET (दक्षिण एशियाई महिला नेटवर्क) की वेबसाइट के अनुसार, हिंदी में लिखना शुरू किया। उनकी कई रचनाओं का अंग्रेजी में अनुवाद किया गया है, जिसमें उनकी आत्मकथात्मक रचनाएं 'ब्लैक रोज' और 'रसीदी टिकट' शामिल हैं। वह 1936 में एक प्रकाशित लेखिका बनीं, जब वह मुश्किल से 17 साल की थीं। और, वह अपने साहित्यिक कार्यों के माध्यम से लोगों को प्रेरित करने के लिए प्रगतिशील लेखकों के आंदोलन में शामिल हुईं। संस्कृति इंडिया वेबसाइट के अनुसार, साहित्यिक योगदान के लिए प्रीतम को साहित्य अकादमी पुरस्कार और पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया।
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