भारतवर्ष में अनेक महापुरुषों का जन्म हुआ है और सभी की जयंतियां भी समय-समय पर मनाई जाती हैं। जैसे, श्रीकृष्ण जन्माष्टमी, श्री राम नवमी, बुद्ध जयंती, गांधी जयंती इत्यादि। अनेक महापुरुषों की जयंती हम वर्षानुवर्ष मनाते भी हैं और प्रत्येक की जयंती पर हम उन संबंधित महानुभावों के जीवन चरित्रों पर नाटिका या झांकियों द्वारा लोगों का ध्यान भी उनके जीवन की ओर खिंचवाते हैं। किंतु इन सभी के बीच बड़े आश्चर्य की बात है कि समस्त सृष्टि के रचयिता परमात्मा के दिव्य अवतरण के वास्तविक रहस्य को आज तक कोई भी नहीं जानता।
परमात्मा घोर कलियुगी अज्ञान अंधकारमयी रात्रि में अवतरित होकर हम सभी को सत्य ज्ञान का प्रकाश देते हैं एवं हमें सर्व मनोविकारों से मुक्त कर सदा सुख-शांति एवं संपत्ति का अधिकारी बनाते हैं। वे हम विषयविकारों से भरी हुई आत्माओं रूपी विषैले पुष्पों को अपना बनाकर फिर से दिव्य गुणों की खुशबू से भरपूर करते हैं। परमात्मा के अवतरण के समय इस धरा पर पवित्रता केवल नाम मात्र ही रह जाती है, अत: थोड़ी पवित्रता का प्रतीक थोड़ा दूध, अपवित्रता के प्रतीक पानी में मिलाकर हम प्रभु को अर्पित करते हैं। इसी प्रकार परमात्मा हमें मनोविकारों के त्याग का प्रण दिलाते हैं एवं आत्मा की वास्तविक स्थिति में स्थित रहने का अभ्यास भी कराते हैं, जिसके यादगार स्वरूप हम उपवास अथवा व्रत रखते हैं।
भक्तिमार्ग में जागरण का बड़ा महत्व होता है, किंतु बहुत कम लोग यह जानते हैं कि जागरण आध्यात्मिक जागृति का प्रतीक है। इसी प्रकार से परमात्मा हम बच्चों के जीवन को दिव्य अथवा कीर्ति योग्य बनाते हैं और उसी की यादगार में हम भगवान का कीर्तन करते हैं। उपरोक्त रहस्यात्मक रस्मों के अलावा परमात्मा के पूजन और विशेषकर भगवान शिव के पूजन में एक बहुत ही दिलचस्प रस्म है। वो है भांग प्रसाद रूप में सब भक्तों को पिलाने की रस्म। समाज में एक तरफ तो किसी भी नशीली वस्तु के सेवन को अवैध माना जाता है और दूसरी तरफ भक्ति की आड़ में खुलेआम भांग का सेवन किया एवं कराया जाता है। इसके लिए लोग हवाला देते हैं कि शंकर जी भी भांग पीते थे। अगर यही मान लिया जाए तो फिर भांग का सेवन अवैध क्यों? किंतु इसके पीछे छुपा हुआ आध्यात्मिक रहस्य कोई नहीं जानता है कि वास्तव में परमात्मा याद में खोई हुई आत्मा के लिए यह नशा भांग का नहीं अपितु अतीन्द्रिय सुख एवं प्रभु-मिलन की खुशी का है।
कहा जाता है- नाम खुमारी नानका चढ़ी रहे दिन रात; नशे भंग शराब दे उतर जे प्रभात! तो यह है वो खुमारी जिसे नारायणी नशा या मौलाई मस्ती भी कहा जाता है। यही है प्रभु-मिलन के दिव्य अनुभव का प्रभु प्रसाद जो योगी औरों को भी बांटता है, न कि भांग का नशा। हमें भी इस रहस्य को समझते हुए आध्यात्मिक तौर पर खुद को सुदृढ़ करना चाहिए और आत्मिक सुख के बजाय आध्यात्मिक जागृति की दिशा में बढ़ना चाहिए।
विश्व कल्याण में हों सहयोगी
वर्तमान घोर कलियुग अंत की वेला में परमप्रिय परमात्मा परिवर्तन का ईश्वरीय कार्य कर रहे हैं। तो आइए हम सभी अपने परमप्रिय परमपिता को यथार्थ रूप में पहचानकर उनकी दी हुई शिक्षाओं का पालन करके विश्व कल्याण के कार्य में सहयोगी बनें और प्रण करें कि हम एक हैं, एक के हैं और एक होकर विश्वकल्याण एवं विश्व शांति के कार्य को संपन्न कर सच्चे खुदाई खिदमतगार बनकर ही दिखाएंगे।
— राजयोगी ब्रह्माकुमार निकुंजजी
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